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Sarita Malik Berwal
वो अगर चाहता तो जाति को बनाता ढाल तब देश था जकड़ा हुआ अंधकार का था जाल जब था मगर उसने चुना सत्य के प्रकाश को न मंदिर-मस्जिद को न झूठ के आकाश को वो दिखाता ही गया जो रास्ता वीरान था कोई न था केवल वहाँ ईश्वर का ही वितान था उसने मिटाया हिंद से पाखंड के हर ख़्वाब को काँटों को था कुचला खिलाकर ज्ञान के गुलाब को आज भी है ढूँढता भारत उसी विद्वान को इंसानियत के देवता एक पुरुष महान को जिसने सिखाई देश को औरत की मान वंदना नारी के स्वाभिमान के लिए की सिंह गर्जना उस दयानंद की ज़रूरत आज फिर वतन को है वो आए तो समझाए कि देश बढ़ रहा पतन को है बस जात-पात धर्म-क्षेत्र मूर्तियों के नाम में कोई कहाँ अब ढूँढता इंसान को इंसान में ©Sarita Malik Berwal #महर्षिदयानंद
Divyanshu Pathak
ब्रह्मचर्य का पालन करते होता नैतिक व्यवहार। बिखरी बिखरी जीवनशैली नहीं रहती यूँ लाचार। संध्या ध्यान यज्ञ तप होते नहीं होता भोंड़ा गान। ऋषिवर दयानन्द यदि होते होता घर घर वेद प्रचार। 🌺🌺🌺 💐💐💐 प्रथम वैदिक स्वतंत्रता सेनानी महर्षि दयानंद सरस्वती जी को सादर नमन। प्रथम वैदिक सेनानी (भारत का स्वतंत्रता संग्राम 1845 ई. से 30 अक्टूबर 1883) ♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️ हे दयानन्द तुझको प्रणाम- मन नित नतमस्तक होता है। हर तरफ़ मचा फिर शोर वही फिर आज ज़रूरत आपकी है।
प्रथम वैदिक सेनानी (भारत का स्वतंत्रता संग्राम 1845 ई. से 30 अक्टूबर 1883) ♦️♦️♦️♦️♦️♦️♦️ हे दयानन्द तुझको प्रणाम- मन नित नतमस्तक होता है। हर तरफ़ मचा फिर शोर वही फिर आज ज़रूरत आपकी है।
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