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प्रिय दिव्या, ख़त की शुरुआत में अज्ञात जी के एक शेर से करता हूँ, अज्ञात जी कहते हैं कि मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने साँसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई अपने वतन की मिट्टी बहुत याद आती है, शायद इसीलिए मेरा जुड़ाव ज्यादा रहा तुमसे यहाँ, अपने गुलाबी नगर की बात ही शायद कुछ ऐसी है.. एक ही शहर में रहकर भी कभी ना मिले, पर इस YQ परिवार ने उस कमी को पूरा किया। दिव्या, तुमसे जब से दोस्ती हुई तब से बहुत सी चीज़े मुझे हम दोनों में समान लगी जैसे तुम्हारा और मेरा जयपुर से होना, पेशा अध्यापन, लिखने का शौक, उर्दू सीखने की लालसा.. और भी बहुत कुछ है शायद जो तुम देखो प्रिय दिव्या, ख़त की शुरुआत में अज्ञात जी के एक शेर से करता हूँ, अज्ञात जी कहते हैं कि मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने साँसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई अपने वतन की मिट्टी बहुत याद आती है, शायद इसीलिए मेरा जुड़ाव ज्यादा रहा तुमसे यहाँ, अपने गुलाबी नगर की बात ही शायद कुछ ऐसी है.. एक ही शहर में रहकर भी कभी ना मिले, पर इस YQ परिवार ने उस कमी को पूरा किया।
प्रिय दिव्या, ख़त की शुरुआत में अज्ञात जी के एक शेर से करता हूँ, अज्ञात जी कहते हैं कि मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने साँसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई अपने वतन की मिट्टी बहुत याद आती है, शायद इसीलिए मेरा जुड़ाव ज्यादा रहा तुमसे यहाँ, अपने गुलाबी नगर की बात ही शायद कुछ ऐसी है.. एक ही शहर में रहकर भी कभी ना मिले, पर इस YQ परिवार ने उस कमी को पूरा किया।
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प्रिय मधु जी सादर प्रणाम..! आपको मधु जी लिखना थोड़ा अटपटा लगता है पता नहीं क्यों, पर अंदर से मन नहीं मानता कि आपका नाम लूँ, तो आज से मैं आपको 'उस्ताद जी' ही कहूँगा.. वैसे तो दुनिया कहती हैं कि नाम में क्या रखा है, पर नाम से ही आपकी पहचान होती है यह मेरा मानना है, और आपको देखकर, पढ़कर, मेहसूस करके हमेशा गुरु माता वाली ही फीलिंग्स आई, तो गुरु माता और उस्ताद जी को कुमार का प्रणाम..। आप, जब भी कलम उठाते हैं बस फिर कलम चलती नहीं, और एक छोर से होकर जब वह मुकाम तक जाती है तब ऐसा नगमा बन चुका होता है जिसे लिख पाना हर किसी के बस की बात नहीं..। आपके हर लेख में आपका अनुभव साफ साफ दिखाई देता है और जब आप अपने लेखन से कुछ सिखाते हैं, क्या कहें कितना आंनद आता है..। आप यूँही यहाँ ता-उम्र लिखते रहे और हम आपके शागिर्द बनकर सीखते रहे..। आपकी कलम का मुरीद जय #kumaarsthought #yqletter #yqlewrimo #Kumaarletter #kumaarjuneletter #kumaardedication आपके लिए दिल से ढ़ेर सारा प्यार उस्ताद जी, आपकी लेखनी का कुछ असर है हम पर.. ।आपकी सोहबत और आशीष को हम पर बनाए रखना..। Dedicating a #testimonial to Madhumayi
#Kumaarsthought #yqletter #yqlewrimo #kumaarletter #kumaarjuneletter #kumaardedication आपके लिए दिल से ढ़ेर सारा प्यार उस्ताद जी, आपकी लेखनी का कुछ असर है हम पर.. ।आपकी सोहबत और आशीष को हम पर बनाए रखना..। Dedicating a #testimonial to Madhumayi
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प्रिय साड़ी तुम अपने नाम, मेरी कलम से लिखे पत्र को देखकर अचंभित ना होना कि मैंने तुम्हें कैसे चुना पत्र लिखने के लिए.. तुम्हारा ऐसा सोचना कुछ हद तक ठीक है पर मुझे बताते हुए खुशी भी है कि तुम नारी पर सजने वाला सबसे प्यारा परिधान हो..। तुम जब जब किसी स्त्री के शरीर पर सुशोभित होती हो, नारी की सुन्दरता में चार से भी ज्यादा चाँद लग जाते हैं और उस वक़्त वह स्त्री चाहे वह कन्या हो, किसी की अर्धांगिनी, किसी की माँ, बहु, सास, दादी नानी सब को एक अलग ही तरह का सुकून देती हो..। तुम्हें विश्व भर में सम्मान प्राप्त है, 'दैनिक दिनचर्या' हो, या सुहाग के लिए रखा गया 'करवा चौथ' का व्रत, या पहली बार पग फेरे के बाद मायके से ससुराल जाना हो, या किसी अपने की शादी में हर जगह (पूरा पत्र अनुशीर्षक में) प्रिय साड़ी तुम अपने नाम, मेरी कलम से लिखे पत्र को देखकर अचंभित ना होना कि मैंने तुम्हें कैसे चुना पत्र लिखने के लिए.. तुम्हारा ऐसा सोचना कुछ हद तक ठीक है पर मुझे बताते हुए खुशी भी है कि तुम नारी पर सजने वाला सबसे प्यारा परिधान हो..। तुम जब जब किसी स्त्री के शरीर पर सुशोभित होती हो, नारी की सुन्दरता में चार से भी ज्यादा चाँद लग जाते हैं और उस वक़्त वह स्त्री चाहे वह कन्या हो, किसी की अर्धांगिनी, किसी की माँ, बहु, सास, दादी नानी सब को एक अलग ही तरह का सुकून देती हो..। तुम्हें विश्व भर में सम्म
प्रिय साड़ी तुम अपने नाम, मेरी कलम से लिखे पत्र को देखकर अचंभित ना होना कि मैंने तुम्हें कैसे चुना पत्र लिखने के लिए.. तुम्हारा ऐसा सोचना कुछ हद तक ठीक है पर मुझे बताते हुए खुशी भी है कि तुम नारी पर सजने वाला सबसे प्यारा परिधान हो..। तुम जब जब किसी स्त्री के शरीर पर सुशोभित होती हो, नारी की सुन्दरता में चार से भी ज्यादा चाँद लग जाते हैं और उस वक़्त वह स्त्री चाहे वह कन्या हो, किसी की अर्धांगिनी, किसी की माँ, बहु, सास, दादी नानी सब को एक अलग ही तरह का सुकून देती हो..। तुम्हें विश्व भर में सम्म
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प्रिय मित्र संगीत, सदा प्रसन्न रहो। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि तुम स्वस्थ व आनंद के साथ होगे। साथ ही तुम मन लगाकर नयी नयी धुनों का आनंद ले रहे होंगे। एक तुम ही हो जिसे लोग सीमाओं में नहीं बाँधना चाहता, तुम्हारी महत्ता क्या लिखे, क्या करे तुम्हारा गुणगान, तुम तो गुणों से भरपूर हो, हो तुम पूरी खान संपूर्ण मानव जाति को स्वस्थ, जीवन जीने के लिए ईश्वर के द्वारा प्रदत्त उपकरण, साधन हो तुम। तुम सबके लिए आत्मा से मिलने की कुंजी हो, तुम हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाने में मदद करते हो। भाई तुम नकारात्मक विचारो को कम करके सकारात्मक विचारों की संख्या में (पूरा पत्र अनूशीर्षक में) प्रिय मित्र संगीत, सदा प्रसन्न रहो। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि तुम स्वस्थ व आनंद के साथ होगे। साथ ही तुम मन लगाकर नयी नयी धुनों का आनंद ले रहे होंगे। एक तुम ही हो जिसे लोग सीमाओं में नहीं बाँधना चाहता, तुम्हारी महत्ता क्या लिखे, क्या करे तुम्हारा गुणगान, तुम तो गुणों से भरपूर हो,
प्रिय मित्र संगीत, सदा प्रसन्न रहो। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि तुम स्वस्थ व आनंद के साथ होगे। साथ ही तुम मन लगाकर नयी नयी धुनों का आनंद ले रहे होंगे। एक तुम ही हो जिसे लोग सीमाओं में नहीं बाँधना चाहता, तुम्हारी महत्ता क्या लिखे, क्या करे तुम्हारा गुणगान, तुम तो गुणों से भरपूर हो,
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प्रेम प्यारी कलम तुम हो तो सीख रहा हूँ, तुम हो तो मैं लिख रहा तुम रहना सदा मेरी आवाज़ बनके, तुम हो तो मैं दिख रहा कुमार ने अक्सर कलम को लिखा पर कुमार की कलम ने कुमार की कलम को ना लिखा तो आज का पूरा पत्र तुम्हारे नाम.. 'कुमार की कलम से कुमार की कलम को हाल - ए - दिल सुनाते हैं, थोड़ा बतियाते हैं..। तुम जानती हो सब, फिर भी कुछ सुनाता हूँ आओ करीब, तुम्हें कुमार का दिल दिखाता हूँ (पूरा पत्र अनुशीर्षक में) प्रेम प्यारी कलम तुम हो तो सीख रहा हूँ, तुम हो तो मैं लिख रहा तुम रहना सदा मेरी आवाज़ बनके,
प्रेम प्यारी कलम तुम हो तो सीख रहा हूँ, तुम हो तो मैं लिख रहा तुम रहना सदा मेरी आवाज़ बनके,
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प्रिय फ़ुरसत, तुम मिलती नहीं सभी को, हर कोई तुम्हारा तलबगार है तुम मिल जाती जब जब, तुम से ही फिर पूरा संसार है। तुम जानती हो मैंने सोचा नहीं था कि तुम्हें कभी कुछ लिख पाऊँगा, पर फिर एक ख़ास शख़्स ने कहा तुम्हें लिखूँ, पर मन में था क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ.. अब कलम उठाई है, तुम और वो खास शख़्स तय करना कितना तुम्हारी उम्मीदों पर खरा उतरा हूँ..। तुम जानती हो अक्सर वक़्त गुजर जाता है तुम्हारी तमन्ना में और उस तम्मना मैं खयाली पुलाव बनाता हूँ कि तुम मिलोगी तो यह करूँगा, वह करूँगा, ऐसे करूँगा, वैसे करूँगा पर.. तुम जानती हो दुनिया का सबसे भारी शब्द है 'पर'.. मेरा मन करता है जैसे टूटा हुआ पत्ता किसी शाख से साहिल के करीब आ जाता है वैसे ही मैं तुम्हारे करीब, तुम्हारी गोद में आकर अपनी थोड़ी थकान मिटा दूँ, और ठहर जाऊँ थोड़ी सी देर..। तुम जानती हो फूरू(तुम्हें याद है ना मैं तुम्हें प्यार से फूरू बुलाता हूँ) कि जब जब चैन नहीं मिलता तकलीफ़ों से तुम्हारी बहुत याद आती है..। मैं चाहता हूँ दिल से कुछ कस्ब-ए - हुनर कर लूँ पर फिर वही तुम नहीं मिलती, पर आज सब को पीछे रखकर तुम्हारी ओर आया हूँ और मुझे पता है तुम हमेशा की तरह मुझसे घंटों बाते करोगी.. । ये सब तो मैंने अपने दिल की कही, तुम बताओ तुम कैसे किसके हिस्से आती हो, कैसे, कितना, कब, किसको मिलती हो?
करीब, तुम्हारी गोद में आकर अपनी थोड़ी थकान मिटा दूँ, और ठहर जाऊँ थोड़ी सी देर..। तुम जानती हो फूरू(तुम्हें याद है ना मैं तुम्हें प्यार से फूरू बुलाता हूँ) कि जब जब चैन नहीं मिलता तकलीफ़ों से तुम्हारी बहुत याद आती है..। मैं चाहता हूँ दिल से कुछ कस्ब-ए - हुनर कर लूँ पर फिर वही तुम नहीं मिलती, पर आज सब को पीछे रखकर तुम्हारी ओर आया हूँ और मुझे पता है तुम हमेशा की तरह मुझसे घंटों बाते करोगी.. । ये सब तो मैंने अपने दिल की कही, तुम बताओ तुम कैसे किसके हिस्से आती हो, कैसे, कितना, कब, किसको मिलती हो?
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प्रिय बगीचे, तुम सुकून हो मेरी तन्हाई में, तुम सुकून हो नारी की अंगड़ाई में..। तुमसे मिलकर हर तकलीफ़ जैसे आधी हो जाती है, जानते हो सिर्फ आधी क्यों, क्योंकि तुम जानते हो मुझे तकलीफ़ को कम करना, उन्हें दूर करना बहुत भाता है और यह सब मैंने तुमसे सीखा है, अब तुम पूछो गे कैसे, चलो मैं बताता हूँ - जैसे तुम्हारी देह पर जब कोई पैर की थाप रखे तो तुम्हें मुस्कान मिलती पर उसी देह पर जब कोई गाड़ी चलाए तो तुम्हें उस से तकलीफ़ होती है पर तुम उन्हें फिर भी चैन देते हो, ताज़ी हवा देते हो और तुम्हारा तकलीफ़ में भी उनको प्यार करना तुम्हारी निःस्वार्थ भाव सेवा दिखाता है, बस यही से मैं तुमसे सीखता हूँ कि तकलीफ़ का सामना करो, डरों मत, हटो मत, भागों मत - जब तेज हवा आती है या बहुत जोरों की बारिश होती है तो भी तुम अपना कर्तव्य नहीं भूलते, वैसे ही मैं भी बीमारी, पैसे की तंगी में कभी नहीं घबराता..। तुम जानते हो किराये के मकान में जगह की किल्लत रहती है पर मैं हमेशा कोशिश करता हूँ जब भी मकान बदली हो, घर पर एक छोटा सा बागीचा हो, चाहे उसमे दो ही पौधे रख पाऊँ.. आज भी जब घर की बालकनी में शाम को जाता हूँ, तरह तरह के छोटे बड़े पौधों में खो जाता हूँ, और सामने वाले बगीचे में देखते देखते खो जाता हूँ, तुम कहीं भी हो, किसी भी रंग रूप में, मुझे तुम्हारा सानिध
- जब तेज हवा आती है या बहुत जोरों की बारिश होती है तो भी तुम अपना कर्तव्य नहीं भूलते, वैसे ही मैं भी बीमारी, पैसे की तंगी में कभी नहीं घबराता..। तुम जानते हो किराये के मकान में जगह की किल्लत रहती है पर मैं हमेशा कोशिश करता हूँ जब भी मकान बदली हो, घर पर एक छोटा सा बागीचा हो, चाहे उसमे दो ही पौधे रख पाऊँ.. आज भी जब घर की बालकनी में शाम को जाता हूँ, तरह तरह के छोटे बड़े पौधों में खो जाता हूँ, और सामने वाले बगीचे में देखते देखते खो जाता हूँ, तुम कहीं भी हो, किसी भी रंग रूप में, मुझे तुम्हारा सानिध
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प्रिय चाय, मेरी पहली मोहब्बत कहूँ या कहूँ अपनी दीवानगी ख़ुद को तेरे सुपुर्द कहूँ या कहूँ अपनी आवारगी। तुम्हें जब से अपने दिल में बसाया है, तब से कोई और जगह ना ले सका, चाहे वो तुम्हारी बहन कॉफी हो, या तुम्हारे मामा के बच्चे कोल्ड ड्रिंक.., तुम्हारा सुरूर अलग है तुम सबसे अलग..। तुम यह तो जानती ही हो कि सुबह उठने के बाद अगर मुहँ में कुछ जाएगा तो वो तुम ही होती हो, तुम सबसे पहले, बाकी सब तुम्हारे बाद..। लोग कहते हैं कि चाय पीने से काले होते हैं, मैं कहता हूँ मुझे काला रंग पसंद है और तुम्हारे लिए काला क्या लाल, पीला, नीला कुछ भी बन जाऊँ, पर तुमसे दूर रहना आसान नहीं, चाहे कोई कुछ भी कहे कहने दो..। तुम अलग अलग रूप में जानी जाती हो, काली चाय, अदरक वाली चाय, मसाला चाय, ग्रीन टी, सुलेमानी, और भी ना जाने कितने नाम, रंग, रूप हैं मुझे तो तुम हर रूप, हर रंग में पसंद हो.. एक बात दिल की बताऊँ, मैंने कभी चाय इसीलिए नहीं मना की कि अच्छी नहीं है। लोग कहते हैं चाय फीकी है, मैं कहता हूँ बहुत मीठी है (लोग कहते हैं तू पागल है), और मैं मुस्करा देता हूँ..। तुम जानती हो यहाँ YQ में भी बहुत से मित्र है जो तुम्हें उतना ही पसंद करते हैं जितना मैं करता हूँ, तुम किसी जुनून से कम नहीं हो.. तुम जान हो
कहने दो..। तुम अलग अलग रूप में जानी जाती हो, काली चाय, अदरक वाली चाय, मसाला चाय, ग्रीन टी, सुलेमानी, और भी ना जाने कितने नाम, रंग, रूप हैं मुझे तो तुम हर रूप, हर रंग में पसंद हो.. एक बात दिल की बताऊँ, मैंने कभी चाय इसीलिए नहीं मना की कि अच्छी नहीं है। लोग कहते हैं चाय फीकी है, मैं कहता हूँ बहुत मीठी है (लोग कहते हैं तू पागल है), और मैं मुस्करा देता हूँ..। तुम जानती हो यहाँ YQ में भी बहुत से मित्र है जो तुम्हें उतना ही पसंद करते हैं जितना मैं करता हूँ, तुम किसी जुनून से कम नहीं हो.. तुम जान हो
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प्रिय मित्र उम्मीद, सारी दुनिया टिकी है तुम पर, रंक हो या राजा; सबको कर दे बाहर, खुला रहे तुम्हारे लिए दरवाजा। प्रणाम कहूँ तो आदर होगा, गले लगाकर दिखाऊंगा प्यार तुम सबका ध्यान धरो, है सब को तुमसे असीम दुलार। कैसे तुम सबको जीने की, कुछ करने की, हिम्मत देती रहती हो, तुम सब के इतने करीब कैसे रह लेती हो, हाँ इसमे कुछ अपवाद भी हैं जो तुमसे दूरी रखते हैं पर फिर भी तुम उन्हें कभी पराया नहीं करती और एक आस, विश्वास जगाए रखती हो कि घबराना नहीं है, वक़्त बुरा है टल जाएगा..। तुम यह जरूर बताना कि कोई तुमसे कितने समय तक साथ रहता है, किन परिस्थितियों में लोग तुम्हारा साथ और हाथ छोड़ देते हैं। कब तुम हार मान लेती हो और कब तुम उन्हें और मजबूती देती हो, सबका उत्तर जानने को दिल बहुत लालायित है, तुम्हारे पत्र का इंतजार रहेगा, उम्मीद और मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम मेरा हृदय ना तोड़ोगी और वक़्त निकाल कर उत्तर दोगी..। तुम्हारे भरोसे है यह जग सारा, बस इसी के साथ मैं इस पत्र में तुमसे विदा चाहता हूँ इसीलिए नहीं कि कुछ नहीं है कहने को, बल्कि इसलिए कि तुम मेरे अगले पत्र की उम्मीद रखो और मैं उस उम्मीद को अपने याराने से जीवित रखूँ..। अपना और सबका ख़्याल रखना तुम्हारा जय
कब तुम हार मान लेती हो और कब तुम उन्हें और मजबूती देती हो, सबका उत्तर जानने को दिल बहुत लालायित है, तुम्हारे पत्र का इंतजार रहेगा, उम्मीद और मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम मेरा हृदय ना तोड़ोगी और वक़्त निकाल कर उत्तर दोगी..। तुम्हारे भरोसे है यह जग सारा, बस इसी के साथ मैं इस पत्र में तुमसे विदा चाहता हूँ इसीलिए नहीं कि कुछ नहीं है कहने को, बल्कि इसलिए कि तुम मेरे अगले पत्र की उम्मीद रखो और मैं उस उम्मीद को अपने याराने से जीवित रखूँ..। अपना और सबका ख़्याल रखना तुम्हारा जय
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प्रिय चाँद, तुम पर लिखूँ मैं जितना भी सब कम रह जाएगा तू ही बता कैसे तू चंद लफ़्ज़ों में कहा जाएगा। तुम इश्क़ में, तुम इंतजार में, तुम ही खुमारी में तुम अश्क में, तुम करार में, तुम ही वफ़ादारी में। मित्र, कितनी भी उपमा दे दूँ कम ही लगेंगी और शायद तुम्हें एक ख़त में लिख पाना गुलज़ार साहब या फिर जावेद साहब या आनंद बक्शी साहब के बस की बात है, तुम्हारे इस सखा के लिए नहीं..। तुम्हें एक पत्र नहीं, एक उपन्यास नहीं, एक ग्रंथ में लिखा जा सकता है, और शायद उसमें भी नहीं..। पर फिर भी कोशिश जरूरी है। जावेद साहब कहते हैं कि - कभी यूँ भी तो हो दरिया का साहिल हो पूरे चाँद की रात हो और तुम आओ मैंने तुम्हारी अहमियत बहुत करीब से मेहसूस की है चाहे वो करवा चौथ पर तुम्हारा इन्तजार करती सुहागन, या फिर ईद की राह देखता रोजा रखने वाला इंसान.. सब तुम्हारा बेसब्री से इंतजार करते हैं, तुम्हारी राह देखते हैं..। मित्र, तुम्हारी काया बेशक प्रतिदिन बदलती है पर तुम्हारा प्यार कभी कम नहीं होता, आशिक नया हो, पुराना हो तुम्हारी और उसका झुकाव बना रहता है।
जावेद साहब कहते हैं कि - कभी यूँ भी तो हो दरिया का साहिल हो पूरे चाँद की रात हो और तुम आओ मैंने तुम्हारी अहमियत बहुत करीब से मेहसूस की है चाहे वो करवा चौथ पर तुम्हारा इन्तजार करती सुहागन, या फिर ईद की राह देखता रोजा रखने वाला इंसान.. सब तुम्हारा बेसब्री से इंतजार करते हैं, तुम्हारी राह देखते हैं..। मित्र, तुम्हारी काया बेशक प्रतिदिन बदलती है पर तुम्हारा प्यार कभी कम नहीं होता, आशिक नया हो, पुराना हो तुम्हारी और उसका झुकाव बना रहता है।
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