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Anil Ray
दर्द देकर इंतहान मत लो जिंदगी अनिल जानता है मेरी मौत मंजिल है.. दर्दे-दिल को कितना ज़ख्म दोगे नया दर्द पुराने दर्द में 'दवा' काबिल है.. ©Anil Ray 💞💞 समझा प्रेम की पीर 💞💞 जाना है तो अभी जाओ तुम अब अनिल! ठहरा एक फ़कीर... मिट जायें मिट्टी-सी जो रेखा नही चाहिए प्रीत की ऐसी लकीर..
💞💞 समझा प्रेम की पीर 💞💞 जाना है तो अभी जाओ तुम अब अनिल! ठहरा एक फ़कीर... मिट जायें मिट्टी-सी जो रेखा नही चाहिए प्रीत की ऐसी लकीर..
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पिता को मुखाग्नि देकर घर आयी बेटी छुपाएं आंसू और माँ के आँसू पोंछकर कहा माँ चुप हो जा अभी जिंदा हूँ मैं.. ग़र घर में बेटा होता माँ चाहें जितना भी होता काबिल पर वह बेटी तो नही हो सकता 'बेटी' ही नही माँ 'बेटा' भी हूँ मै.. सिर पर रस्म पगड़ी की नही काबिलियत पर जिम्मेदारी ताज पिता का आदर्श और आशीर्वाद है गर्व करेगा जहां 'माँ' तेरी बेटी हूँ मै.. ©Anil Ray 💗💗 "बेटी बेटों से कम नही" 💗💗 यूं मत देखों! अनिल मुझको तुम मेरे किरदार और कहानी की लेखक खुद हूँ.. जब चाहे विषय बदल लिया जाये अमिट स्याही की मज़बूत-सी सुंदर कलम हूँ..
💗💗 "बेटी बेटों से कम नही" 💗💗 यूं मत देखों! अनिल मुझको तुम मेरे किरदार और कहानी की लेखक खुद हूँ.. जब चाहे विषय बदल लिया जाये अमिट स्याही की मज़बूत-सी सुंदर कलम हूँ..
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समस्त पहचान का अस्थायी अस्तित्व नाम-रूप तक भी माता-पिता द्वारा पाया.. क्या था मुझमें मेरा कुछ भी नही यार तुझसे मिलन में मेरा 'मैं' भी जैसे खो गया.. पूछना खुदा से मेरी 'तड़फ' को तुम क्यों कोई मुझसे मिलकर भी जुदा हो गया.. बनाकर परी पर कतरे गये बंदिशों में चारों ओर दीवारों से मर्यादा महल हो गया.. पाक इबादत इश्क़ में खुदा समझा था और देखो अब वो खुदा भी पत्थर हो गया.. अनिल अनल जलाती है मेरी रूह तक क्यों जिस्म -टुकड़ों का समाज भिन्न हो गया.? ©Anil Ray विचारार्थ लेखन.................✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 विवाह एक नापाक गठबंधन है चाहे इसे जो नाम दे कोई ? इसका जन्म नेकनीयत की भावना से नहीं बल्कि सुरक्षा के मद्देनजर हुआ है और प्रत्येक सुरक्षा अनिवार्यतः गुलामी को जन्म देती है। किसी ने कहा : विवाह एक संस्थागत वेश्यावृत्ति है, उस बात पर सोचते हुए आया ख्याल। संस्थागत वेश्यावृत्ति हो न हो संस्थागत शोषण तो है ही इसमें कोई शक नहीं। जैसे अकर्मण्य व्यक्ति को भोजन की गारंटी आकर्षित करती है, ठीक उसी तरह नाकाबिल पुरुषों को विवाह की व्यवस्था आकर्षित करती है। इस गठबन
विचारार्थ लेखन.................✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 विवाह एक नापाक गठबंधन है चाहे इसे जो नाम दे कोई ? इसका जन्म नेकनीयत की भावना से नहीं बल्कि सुरक्षा के मद्देनजर हुआ है और प्रत्येक सुरक्षा अनिवार्यतः गुलामी को जन्म देती है। किसी ने कहा : विवाह एक संस्थागत वेश्यावृत्ति है, उस बात पर सोचते हुए आया ख्याल। संस्थागत वेश्यावृत्ति हो न हो संस्थागत शोषण तो है ही इसमें कोई शक नहीं। जैसे अकर्मण्य व्यक्ति को भोजन की गारंटी आकर्षित करती है, ठीक उसी तरह नाकाबिल पुरुषों को विवाह की व्यवस्था आकर्षित करती है। इस गठबन
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जर्जर खंडहर तन चीथड़ों में बिखरा हुआ है इंतजार में तुम्हारे.. कभी आकर तो देखो यार! काया-हवन 'मोहब्बत' में तुम्हारे.. ©Anil Ray 💕💕 लौट आओं न तुम 💕💕 समय बदलता गया धीरे-धीरे और संग में कमबख़्त वों भी.. इश्क़-ए-मौसम मटमैला-सा है नफ़रत-ए-ज़हर की आंधियों में जिंदगी तन्हाइयों से तंग आकर
💕💕 लौट आओं न तुम 💕💕 समय बदलता गया धीरे-धीरे और संग में कमबख़्त वों भी.. इश्क़-ए-मौसम मटमैला-सा है नफ़रत-ए-ज़हर की आंधियों में जिंदगी तन्हाइयों से तंग आकर
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दृश्य स्वरूप से परे, मेरा एक निजस्वरूप भी है हजारों वस्त्र तन के लिए पर नजरदोष का क्या? कुदरत से प्राप्त कुदरती जिस्म अनमोल है मेरा तुम्हारा वजूद भी मिटेगा खुद को मिटा दूं क्या? ©Anil Ray विचारार्थ लेखन.................✍🏻 "सर! उस साली के बहुत पंख निकल आए हैं। कहती हैं मैं औरों के जैसी नहीं हूँ ... अजीब गंदी औरत है जो साफ होने की नौटंकी करती है।" "उसके खिलाफ़ कोई शिकायत है क्या ?" "नहीं, पर कागजों में शिकायत दर्ज़ करने में कितना समय लगता है भला , निकाल बाहर कीजिये साली को । ऐसी पता नहीं कितनी प्रोफेसर लाइन में लगी मिल जाएंगी।"
विचारार्थ लेखन.................✍🏻 "सर! उस साली के बहुत पंख निकल आए हैं। कहती हैं मैं औरों के जैसी नहीं हूँ ... अजीब गंदी औरत है जो साफ होने की नौटंकी करती है।" "उसके खिलाफ़ कोई शिकायत है क्या ?" "नहीं, पर कागजों में शिकायत दर्ज़ करने में कितना समय लगता है भला , निकाल बाहर कीजिये साली को । ऐसी पता नहीं कितनी प्रोफेसर लाइन में लगी मिल जाएंगी।"
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पूर्णिमा चाँद वर्धित स्वरूप में मस्त है कभी अमावस्या में रोशनी जैसे अस्त है.. खुशी हो या गम चाँद चाँदनी नही त्यागे 'चाँद' निरन्तर निजस्वरूप नित्य व्यस्त है.. किरदार का इंतजार सितारे भी करते सुगति से ही जीवन-चक्र सकल मस्त है.. सबका 'पथ' और 'स्वगति' भिन्न-भिन्न मन पठन-पाठन निजकर्म में अलमस्त है.. कुछ इस 'चाँद' से ही सीख लो अनिल! सुख-दुख में समदृष्टि-संतोष ही मदमस्त है.. ©Anil Ray 💖💝💖✨शुक्रिया अदा चाँद✨💖💝💖 बेशक चाँद तुझ तक हाथ नही जाते अनिल के परन्तु मेरी नज़रों में अपलक कैद है हसीं नज़ारा.. हे चाँद तेरी चाँदनी से सीखा है मैंने पाक इश्क़ मेरे चाँद के बाद तू भी चाँद मुझे रहा बेहद ही प्यारा..
💖💝💖✨शुक्रिया अदा चाँद✨💖💝💖 बेशक चाँद तुझ तक हाथ नही जाते अनिल के परन्तु मेरी नज़रों में अपलक कैद है हसीं नज़ारा.. हे चाँद तेरी चाँदनी से सीखा है मैंने पाक इश्क़ मेरे चाँद के बाद तू भी चाँद मुझे रहा बेहद ही प्यारा..
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मरने के बाद भी तमाशा मौत का अनिल जिन्होंने कहा कभी बिछड़ गये जो तुमसे खुदा क़सम! हम तो मर ही जाएंगे यार.. बेवफ़ाई में हुई मौत! आहिस्ता-आहिस्ता ज़ख्मी दिल को तराशते है वों अब बेवफा देख तसल्ली से हरेक टुकड़े पर तेरा नाम.. चाहे जैसा जोड़ लो अब नही धड़केगा दिल मुझे तो मरना ही था किसी न किसी रोज़ तो दिल से खेलना मोहब्बत बदनाम करना है.. फ़रियाद सुन लो कुछ झूठे आँसू ही बहा दो दुनिया देख सके प्रेमी मरा है अभी प्रेम नही वरना नेक इबादत को झूठ समझेंगी दुनिया.. ©Anil Ray 💞💞💞 💕चाहत 💕 💞💞💞 जिसकी कमी पल पल महसूस करे दिल 🌹दोस्तों! बस वह चाहत ही तो है..❤️ जाति-धर्म उम्र और लिंग को नज़रअंदाज़ 🌹दोस्तों! बस वह चाहत ही तो है..❤️
💞💞💞 💕चाहत 💕 💞💞💞 जिसकी कमी पल पल महसूस करे दिल 🌹दोस्तों! बस वह चाहत ही तो है..❤️ जाति-धर्म उम्र और लिंग को नज़रअंदाज़ 🌹दोस्तों! बस वह चाहत ही तो है..❤️
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झूठ कहूं तो लफ्जों का दम घुटता है सच कहूं तो अपने रूठ जाते है... किरदार बदलते बदलते देखो अनिल कितने क़ाबिल पात्र छूट जाते है... ©Anil Ray 💞 जीवनसाथी 🤝🏻 पुनः प्रकाशित 💞 अक्सर देखता हूँ मैं पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में रिश्ते की डोर में बंधे इंसान निजधरा पर मेरी मानव जाति मे। बेबस-सी चलती हुई दम्पत्ति गाड़ी न विश्वास का पहिया न प्रेम इंजन
💞 जीवनसाथी 🤝🏻 पुनः प्रकाशित 💞 अक्सर देखता हूँ मैं पुरुष आधिपत्य साम्राज्य में रिश्ते की डोर में बंधे इंसान निजधरा पर मेरी मानव जाति मे। बेबस-सी चलती हुई दम्पत्ति गाड़ी न विश्वास का पहिया न प्रेम इंजन
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चल अनिल! थोड़ा-सा बाजार में नफ़रत! का व्यापार भी कर जाये हम कहाँ सीख पाये दलीलों से कभी... बस! इस जहां में सिर्फ 'मैं' ही रहूँ न ही और भी कोई अधिशेष रहे एक बस! यही तो सोच भारी है अभी... शायद! राम-रावण भी उस स्वर्ग में अब एक साथ चौसर खेलते होगें नाम उनके अनेक युद्ध बाकि है अभी... वापस लौटकर आना ही होगा तुम्हें ज़ख्म सह लेने के बाद यकीनन यारों परस्पर विचार मिलना बाकि है अभी... ज़ख्म खाकर, टूटकर यह जिस्म तेरा तड़प, जलन, दुःख सिखाएंगे तुमको इंसां ही हो पर इंसानियत बाकि है अभी... 'लक्ष्मी' देकर भी 'लक्ष्मी' को खरीदना फिर उसी लक्ष्मी-मूर्ति से लक्ष्मी मांगना इसे क्या कहेंगे विचार करना यारों कभी... ©Anil Ray 📢 सावधान निकट भविष्य में चुनाव है 📢 प्रिय मित्रों! ❤️ सप्रेम नमस्कार 🙏🏻 "चोर चोर मौसेरे भाई" संवैधानिक मंदिर संसद के सदस्यों का हाल ऐसा ही है। यहाँ विरोधी भी परस्पर पर्दे के पीछे मिले हुए है बस रंगमंच पर हमें भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं। इसलिए इनको लेकर आपसी सम्बन्धों और रिश्तों को धूमिल कर मटियामेट नही करे, यही समझदारी है। रही बात चुनाव की तो जनता को लगता है वह अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है परन्तु दोस्तों सच तो यह है दस-बारह बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिस खिलौने में चाबी भर देती है बस वह
📢 सावधान निकट भविष्य में चुनाव है 📢 प्रिय मित्रों! ❤️ सप्रेम नमस्कार 🙏🏻 "चोर चोर मौसेरे भाई" संवैधानिक मंदिर संसद के सदस्यों का हाल ऐसा ही है। यहाँ विरोधी भी परस्पर पर्दे के पीछे मिले हुए है बस रंगमंच पर हमें भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं। इसलिए इनको लेकर आपसी सम्बन्धों और रिश्तों को धूमिल कर मटियामेट नही करे, यही समझदारी है। रही बात चुनाव की तो जनता को लगता है वह अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है परन्तु दोस्तों सच तो यह है दस-बारह बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिस खिलौने में चाबी भर देती है बस वह
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मत हँसा कर जिंदगी! अनिल अकेला है तेरी यादें अब भी मेरी सांसों के है संग.. रूदन बेचकर हास्यास्पद हूँ आजकल मैं तेरे जाने के बाद भी न छुटा वों प्रेम रंग.. हाँ! वों पहले वाली खुशियाँ नही इस पर्व बिन तेरे, यह दीपोत्सव! भी हुआ बेरंग.. बदनाम नही हो जाये प्रेम-गलियाँ प्रिया! बस इसीलिए नही दिखते अब हम तंग.. चल यार आगामी पर्व की अग्रिम बधाइयां कुदरत! तुमको दे खुशी का हर खुशरंग.. ©Anil Ray 🌺 द्वंद्व भ्रम - अकेलापन जिंदगी है 🌺 दिल की ख्वाहिश! तो धड़कन में ही रही कमबख्त! जिंदगी है जी कर चली गयी। सुना है, मातम पर मेरी आये वों चेहरे भी जिनके वजह से साँसों की डोर टूट गयी।
🌺 द्वंद्व भ्रम - अकेलापन जिंदगी है 🌺 दिल की ख्वाहिश! तो धड़कन में ही रही कमबख्त! जिंदगी है जी कर चली गयी। सुना है, मातम पर मेरी आये वों चेहरे भी जिनके वजह से साँसों की डोर टूट गयी।
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