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Pragya Singh
#लिखतीहूँकि क्या पूछा तुमने अभी-अभी "जाऊँ क्या मैं ?" कितना अच्छा होता ना की तुम कहते "तुम भी साथ चलोगी क्या?" ©Pragya Singh #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि वक़्त जब नसीब से लड़ना शुरू कर दे, तो जीवन में बदलाव निश्चित हो जाता हैं।। ©Pragya Singh #Isolation #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि ज़रा सी पलके क्या गिरी टूट ही गया वो। खुली आँखों ने देखा था सपना जो।। ©Pragya Singh #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि रोज़ रात को तारों की मोहब्बत में खलल पड़ता हैं, बड़ा बेरहम है ये चाँद अँधेरे में भी सफ़र करता है।। ©Pragya Singh #MoonHiding #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि घर! अब मन नहीं होता तुझसे मिलने का, या कुछ यूँ कहे कि- दिल ही नहीं करता तेरे साथ रहने का।। फ़कत बात बस इतनी सी हैं कि- बहुत बांधा हैं तेरे साथ में ख़ुद को जिंदा रखने के लिए, अब मसला हैं तुझसे दूर हो कही खुलकर मरने का।। ©Pragya Singh #GoldenHour #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
Pragya Singh
#लिखतीहूँकि पता है! आज बहुत दिनों के बाद काग़ज-कलम लेकर बैठी सोचा की कुछ लिखूँगी तुम्हारे लिए लिखूँगी तुम्हे मनाने के लिए लिखूँगी।। पर ये क्या....... यहाँ तो शब्द ही रूठ गए सारे के सारे..... एक साथ........ वो सब नाराज़ हो गए ये कहकर कि- तुम लिखोगी क्या? वक़्त.......! दो पल भी संग न गया जो या साथ......! महज ख़्वाब बन रह गया जो या फ़िर वो प्यार......! अतीत तक ही सिमट गया जो।। कुछ ने कहा कि- तुम सिर्फ़ उसकी "याद" लिखो अगर आँशू सूख जाए तो....... ©Pragya Singh #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि जिस महफ़िल में मर्द पैंट की जिप खुली होने पर शर्म खा जाते हैं। उसी महफ़िल में औरत- backless,High neck,sleveless ब्लाउज पहनने के बाद कहती हैं की- मर्द की सोच खराब होती जा रही हैं।। ©Pragya Singh #sadak #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि सुनो! वक़्त मिल जाए ग़र तो इक दफ़ा हमारी गली में भी आ जाना, एक अरसा बीत गया खुल के मुस्कुराये हुए। ©Pragya Singh #TereHaathMein #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि साथ तेरे चलु उस मोड़ तक जिस मोड़ का कोई अंत न हो।। ©Pragya Singh #tumaurmain #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts
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#लिखतीहूँकि ना जाने कितनी दफ़ा किताबें खुल जाती हैं यादों की, महज ये सोचकर की एकात् दफ़ा तो याद उसको भी आती ही होगी ना।। ©Pragya Singh #Parchhai #pragyasinghwritting #pragyasinghthoughts