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Pratyush Saxena
जली , टूटी फूटी 'बस' को एक क्रेन खींच रही है , आखिर मेरा कुसूर क्या था , वो 'बस' पूछ रही है मै तो रोज लाती थी तुमको कॉलेज , ताजा हवा खिलाती थी , देरी न हो तो सरपट दौड़ के वक़्त पे पहुंचाती थी ! अपनी गोद में बिठाकर तुम्हे कंधे पर सुलाती थी , बारिश आंधी गर्मी सब से मैं तुमको बचाती थी ! जब कभी थकते थे तुम मैं तकिया बनके तुम्हे आराम दिलाती थी , कैसा भी हो समय , तुम्हे सही सलामत घर पहुंचाती थी ! रोज लड़ती थी जाम से , मगर तुमको बिलकुल न सताती थी , ठोकरें खाती थी गड्ढों से , पर न कोई शिकवे सुनाती थी ! तुमको एक सेकंड को भी ये सब बातें याद न आई , मेरे ही शीशे तोड़े , मुझ को ही आग लगाई , वो कौन है जिनके लिए तुम कर रहे हो लड़ाई , जिसके लिए चोटिल किये तुमने अपने ही भाई । किसी के साथ बुरा न हो गर ये तुम्हारी चाहत है , तो मेरे साथ बुरा करके क्यों दिखाई तुमने ताक़त है , मुझमे तो जान नहीं , कोई करता नहीं मेरी वकालत है , तुम तो खुदा के बन्दे हो , तुममे तो इंसानियत है । ये कहकर अंजर पंजर खुलेंगे , बिखरुंगी मैं की तुम बेकार हो , मेरे कातिल हो तुम , उम्मीद है तुम इसके जानकार हो !!! एक बस की आत्मकथा । #PS #Nojoto #NojotoHindi #Nazm #DelhiBurning #BusStory
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