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बेजुबान शायर shivkumar
=============================== समर्पित माॅं चंद्रघंटा की महिममयी कहानी =============================== शिव से विवाह कर महागौरी ने धारी है, माथे पर अर्धचंद्रमाॅं तो कहलाईं चंद्रघंटा। महिषासुर से ब्रह्मा,विष्णु, महेश के कोप, क्रोधाग्नि ऊर्जा से प्रगटी है माॅं चंद्रघंटा।। शिव त्रिशूल,विष्णु चक्र, इंद्र घंटा,सूर्य ने, अपना तेज,तलवार,और सिंह सौंप दिए। माॅंं महिषासुरमर्दिनी आक्राॅंता वध कर, स्वर्ग में देवों के दूर राक्षसी खौप किए।। नवरात्रि तृतीय दिवस माॅंं चन्द्रघंटा की, प्रताप परम शांतिदायक,कल्याणकारी। दस हाथों में खड्ग,बाण, कमल, धनुष, तलवार,त्रिशूल,गदा वअस्त्र-शस्त्र धारी।। नौ रात्रि माॅं की विलक्षण कहानी भक्तों, इस विधि कहलाईं है माॅं शिव पटरानी।। अनन्त-अनादि ब्रम्ह की अद्भुत शक्ति वे, अखण्ड साधना-तपोबल से हुई वरदानी।। माता की अलौकिक स्वरूप दिलाएगी, कलयुगी क्रुर-पापी-पाखण्डि़यों से मुक्ति। सहृदय माॅं की आराधना-साधना करें तो, सुझाऍंगी माता कठिन समय नव युक्ति।। कमल,शंखपुष्पी फूल अर्पित करें माॅंं को, स्वर्णिम आज शास्वत महाशक्ति दायिनी।। चंचल मन राक्षस न बने विकृत हो कर रे, समर्पित माॅं चंद्रघंटा की महिममयी कहानी।। =========================== ©बेजुबान शायर shivkumar #navratri #navratri2024 #navratri2025 #navratri2026 #नवरात्रि Kshitija puja udeshi Sethi Ji Andy Mann mithilani भक्ति गीत भक्ति फिल्म भक्ति भजन भक्ति सागर भक्ति संगीत =============================== समर्पित माॅं #चंद्रघंटा की महिममयी कहानी
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read moreबेजुबान शायर shivkumar
जय हो तेरी ऋषि कात्यायन पुत्री मां कात्यायनी, स्वर्ण जैसे सुनहरी तन वाली आभा तेरी मन मोहिनी । ब्रह्मा,विष्णु व महेश के तेज से चतुर्थी को उत्पत्ति, उस दिन से असुरों पर आई बहुत बड़ी विपत्ति । कात्यायनी मां का छठे दिवस करो तुम ध्यान, सब बाधाएं दूर करें मां है कृपा निधान । लाल चुन्नी व मधु है मां को अत्यंत प्रिय, ध्यान रखना मिलेगा तुम्हें शौर्य । जग की तारणहार देवी का कात्यायनी नाम, मन से करो आराधना मिलेगा मोक्ष धाम । चार भुजा धारी करती सिंह की सवारी, दुःखों को तुम हरती हम हैं तेरे आभारी । सब देवी-देवताओं को थी तुमसे बहुत आस, दशमी को किया असुर महिषासुर का विनाश । कोई बाधा है अगर तुम्हारे विवाह में, हो जाएगी पूरी देवी मां की चाह में । हे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी, रखना ध्यान तेरे चरणों में है यह कवि । मां कात्यायनी रोग,शोक, संताप,भय नाशिनी, मां कात्यायनी अर्थ,धर्म, काम,मोक्ष दायिनी । ©Shivkumar #navratri #नवरात्रि #नवरात्रि2024 जय हो तेरी ऋषि कात्यायन पुत्री मां कात्यायनी, स्वर्ण जैसे सुनहरी तन वाली आभा तेरी मन #मोहिनी । #ब्रह्मा ,#विष्णु व #महेश के तेज से चतुर्थी को उत्पत्ति, उस दिन से असुरों पर आई बहुत बड़ी विपत्ति ।
भरत सिंह
गांडीव की टंकार से शत्रु दहन नहीं होता लक्ष्य भेदना है तो प्रत्यंचा पर तीर कसकर जितनी शक्ति बची हो सब एक बिंदू पर केंद्रीय कर, दाग दो दुश्मन को गिरना होगा मतलब गिरना होगा ना तो #शिव उसे बचा सकता, ना ही #ब्रह्मा अपनी ताक़त का अंदाज़ ना हनुमान को था और ना ही भीम को उन्हें भी एक जामवंत की जरूरत थी आप अपने आसपास के जामवंत को ढूंढो और निकल पड़ो सागर लांघने मैं हमेशा साथ हूँ
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गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः। गुरुर साक्षात परमब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः। शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को सादर नमन 🙏🙏🙏🙏 गुरुर #ब्रह्मा गुरुर विष्णु, #गुरुर देवो महेश्वरः, गुरुर साक्षात #परमब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः। #शिक्षक_दिवस पर सभी शिक्षकों को सादर #अभिवादन। #yqdidi #yqsnatni #yqinspiration Vijayant Singh🔰
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read moreवेदों की दिशा
.।। ओ३म् ।। प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते। अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत् तन्मयो भवेत् ॥ ॐ (प्रणव) है धनुष तथा आत्मा है बाण, और 'वह', अर्थात् 'ब्रह्म' को लक्ष्य के रूप में कहा गया है। 'उसका' प्रमाद रहित होकर वेधन करना चाहिये; जिस प्रकार शर अर्थात् बाण अपने लक्ष्य में विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य को 'उस' में (ब्रह्म में) तन्मय हो जाना चाहिये। OM is the bow and the soul is the arrow, and That, even the Brahman, is spoken of as the target. That must be pierced with an unfaltering aim; one must be absorbed into That as an arrow is lost in its target. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.४ ) #मुण्डकोपनिषद् #mundakopanishad #उपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #वह #him
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।। ओ३म् ।। यदर्चिमद्यदणुभ्योऽणु च यस्मिंल्लोका निहिता लोकिनश्च। तदेतदक्षरं ब्रह्म स प्राणस्तदु वाङ् मनः तदेतत् सत्यं तदमृतं तद् वेद्धव्यं सोम्य विद्धि ॥ यह जो 'ज्योतिर्मान्' है, जो अणुओं से भी सूक्ष्मतर है, जिसके अन्दर समस्त लोक-लोकान्तर एवं उनके लोकवासी सन्निहित हैं, 'वही' है 'यह'-यह अक्षर 'ब्रह्म' प्राणतत्त्व 'वही' है, 'वही' वाणी तथा मन है। 'वही' है 'यह' 'परम सत्य' तथा 'सत्तत्त्व', 'वही' है अमृत तत्त्व तुम्हारे द्वारा 'वही' है वेधनीय, है सौम्य! 'उसी' का वेधन करो (उसमें प्रवेश करो)। That which is the Luminous, that which is smaller than the atoms, that in which are set the worlds and their peoples, That is This,-it is Brahman immutable: life is That, it is speech and mind. That is This, the True and Real, it is That which is immortal: it is into That that thou must pierce, O fair son, into That penetrate. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.२ ) #मुंडकोपनिषद #upnishad #उपनिषद #ज्ञान_गंगा #परमेश्वर #परमात्मा #आत्मा #ब्रह्मा #अद्वितीय #सर्वव्याप्त
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। हिरण्मये परे कोशे विरजं ब्रह्म निष्कलम्। तच्छुभ्रं ज्योतिषां ज्योतिस्तद् यदात्मविदो विदुः ॥ उस परम हिरण्मय कोश में निष्कलंक, निरवयव 'ब्रह्म' निवास करता है 'वह' 'शुभ्र-भास्वर' है, वह 'ज्योतियों' की 'ज्योति' है, 'वही' है जिसे आत्म-ज्ञानी जानते हैं। In a supreme golden sheath the Brahman lies, stainless, without parts. A Splendour is That, It is the Light of Lights, It is That which the self-knowers know. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #स्वयं #self #brahman
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तस्मै स विद्वानुपसन्नाय सम्यक् प्रशान्तचित्ताय शमान्विताय। येनाक्षरं पुरुषं वेद सत्यं प्रोवाच तां तत्त्वतो ब्रह्मविद्याम् ॥ उसके प्रति जो पूर्णरूप से शरण में आ गया है, जो शान्तचित्त हो गया है, जिसकी आत्मा में शान्ति विराजती है, विद्वान् उस ब्रह्मविद्या का तत्त्वतः प्रवचन करता है जिससे 'अक्षर पुरुष' को, 'परमसत्य' तथा 'सत्तत्त्व' को जाना जाता है। To him because he has taken entire refuge with him, with a heart tranquillised and a spirit at peace, that man of knowledge declares in its principles the science of the Brahman by which one comes to know the Immutable Spirit, the True and Real. ( मुंडकोपनिषद १.२.१३ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #गुरु
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।। ओ३म् ।। उद्गीतमेतत्परमं तु ब्रह्म तस्मिंस्त्रयं सुप्रतिष्ठाऽक्षरं च। अत्रान्तरं ब्रह्मविदो विदित्वा लीना ब्रह्मणि तत्परा योनिमुक्ताः॥ उपनिषदों में स्पष्ट रूप से परम ब्रह्म की घोषणा की गयी है। यह त्रिपक्षीय है। यह सुदृढ़ आश्रय तथा अविनाशी है। इसके आन्तरिक सारतत्व को जानकर वेदज्ञ ऋषि उसमें लीन हो गये और जन्म से मुक्त हो गये। This is expressly declared to be the Supreme Brahman. In that is the triad. It is the firm support, and it is the imperishable. Knowing the inner essence of this, the knowers of Veda become devoted to Brahman, merge themselves in It, and are released from birth. ( श्वेताश्वतरोपनिषद् १.७ ) #श्वेताश्वतरोपनिषद् #उपनिषद् #ब्रह्मा #मुनि #मोक्ष #ज्ञान
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। पञ्चस्रोतोम्बुं पञ्चयोन्युग्रवक्रां पञ्चप्राणोर्मिं पञ्चबुद्ध्यादिमूलाम्। पञ्चावर्तां पञ्चदुःखौघवेगां पञ्चाशद्भेदां पञ्चपर्वामधीमः॥ अथवा हम ब्रह्म को ध्यान में एक नदी के रूप में देखते हैं जिसमें पाँच स्रोतों का जल है। पाँच कारणों से उसमें पाँच उग्र घुमाव हैं। इसमें पाँच प्राण रूपी लहरें हैं। उसका मन पंचविध ज्ञान का मूल उद्गम है। पंचविध दुःख इसकी क्षीप्तिकाएं हैं जिनमें पांच भंवर हैं, पांच शाखाएं और असंख्य पक्ष हैं। We think of Him (in His manifestation as the universe) who is like a river that contains the waters of five streams; that has five big turnings due to five causes; that has the five Pranas for the waves, the mind - the basis of five-fold perception - for the source, and the five-fold misery for its rapids; and that has five whirlpools, five branches and innumerable aspects. ( श्वेताश्वतरोपनिषद् १.४ ) #श्वेताश्वतरोपनिषद् #उपनिषद् #ब्रह्मा #ज्ञान #दिव्य
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