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Rakesh frnds4ever
जब तक हिंदी थी, वेद ,उपनिषद्, आयुर्वेद थे भारत एक गुरुओं का देश था आज इंग्लिश ,साइंस, तकनीकी है तो भारत आज गुंडों का देश है ऐसे गुंडे जो अपनी ही संस्कृति का चीर हरण कर रहे हैं अपनी ही धरती मां की हत्या कर रहे हैं खुद को educated बताने वाले रिश्तों को शर्मशार कर रहे हैं बलात्कार ,रेप ,मर्डर ,अपहरण कर रहे हैं जब हम हिन्दी थे तो हम हिन्दू थे आज हम educated है तो हम जात पात ऊंच नीच रंग भेद के कीचड में सने हुए हैं जब हम भारतीय थे हम प्रकृति के अनुरूप थे आज हम शारीरिक मानसिक बौद्धिक ज्ञानात्मक भावनात्मक सांस्कृतिक रूप से अंग्रजियत के गुलाम बन कर साइंस ,विकास , तकनीकी, प्रोद्योगिकी,हॉस्पिटल,स्कूल,आदि के भ्रम में फंस कर अपनी धरती मां,पर्यावरण,प्रकृति ओर खुद अपनी जान के दुश्मन बने हुए हैं,,.... जब तक #हिंदी थी, #वेद ,#उपनिषद् , #आयुर्वेद थे #भारत एक #गुरुओं का #देश था आज इंग्लिश ,साइंस, तकनीकी है तो भारत आज #गुंडों का देश है ऐसे गुंडे
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तस्माच्च देवा बहुधा संप्रसूताः साध्या मनुष्याः पशवो वयांसि। प्राणापानौ व्रीहियवौ तपश्च श्रद्ध सत्यं ब्रह्मचर्यं विधिश्च ॥ तथा 'उसी' से अनेकानेक देवगण उत्पन्न हुए हैं, उसी से साधुगण, मनुष्य तथा पशु-पक्षी उत्पन्न हुए हैं, प्राण तथा अपान वायु, धान तथा जौ (अन्न), तप, श्रद्धा, सत्य, ब्रह्मचर्य तथा विधि-विधानों का प्रादुर्भाव 'उसी' से हुआ है। And from Him have issued many gods, and demigods and men and beasts and birds, the main breath and downward breath, and rice and barley, and askesis and faith and Truth, and chastity and rule of right practice. ( मुंडकोपनिषद २.१.७ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #देव #उत्पत्ति #creation #god #sanatandharm #Hindu
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तस्मादृचः साम यजूंषि दीक्षा यज्ञाश्च सर्वे क्रतवो दक्षिणाश्च। संवत्सरश्च यजमानश्च लोकाः सोमो यत्र पवते यत्र सूर्यः ॥ उसी 'परमात्म-तत्त्व' से ऋग्वेद की, सामवेद तथा यजुर्वेद की ऋचाएँ तथा मन्त्रगान हैं, दीक्षाएँ, समस्त यज्ञ तथा योग-कर्म और दान-दक्षिणाएँ हैं, उसी से संवत्सर हैं, यजमान हैं, लोक-लोकान्तर हैं जिनमें चन्द्रमा तथा सूर्य प्रकाश फैलाते हैं। From Him are the hymns of the Rig Veda, the Sama and the Yajur, initiation, and all sacrifices and works of sacrifice, and dues given, the year and the giver of the sacrifice and the worlds, on which the moon shines and the sun. ( मुंडकोपनिषद २.१.६ ) #मुण्डकोपनिषद #mundakopanishad #उपनिषद् #upnishad #वेद #वेदांत #vedant #him
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तदेतत् सत्यं मन्त्रेषु कर्माणि कवयो यान्यपश्यंस्तानि त्रेतायां बहुधा संततानि। तान्याचरथ नियतं सत्यकामा एष वः पन्थाः सुकृतस्य लोके ॥ यह है 'वह' पदार्थों का 'सत्यतत्त्व'ː कवि-द्रष्टाओं ने मन्त्रों१ में जिन कर्म को देखा, वे त्रेतायुग२ में बहुधा विस्तारित हुए। उन कर्मों का एकनिष्ठ होकर 'सत्य' के लिए कामना करते हुए तुम नियमित आचरण करो; पुण्य कर्म-लोक (सुकृत-लोक) के लिए यही तुम्हारा पन्थ है। This is That, the Truth of things: works which the sages beheld in the Mantras were in the Treta manifoldly extended. Works do ye perform religiously with one passion for the Truth; this is your road to the heaven of good deeds. ( मुंडकोपनिषद १.२.१ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #ज्ञान
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। आविः सन्निहितं गुहाचरं नाम महत् पदमत्रैतत् समर्पितम्। एजत् प्राणन्निमिषच्च यदेतज्जानथ सदस-द्वरेण्यं परं विज्ञानाद्यद्वरिष्ठं प्रजानाम् ॥ स्वयं आविर्भूत परम तत्त्व यहाँ सन्निहित है, यह हृद्गुहा में विचरने वाला महान् पद है, इसमें ही यह सब समर्पित है जो गतिमान् है, प्राणवान् है तथा जो दृष्टिमान् है। यह जो यही महान् पद है, उसको ही 'सत्' तथा 'असत्' जानो, जो परम वरेण्य है, महत्तम एवं 'सर्वोच्च' (वरिष्ठ) है, तथा जो प्राणियों (प्रजाओं) के ज्ञान से परे है। Manifested, it is here set close within, moving in the secret heart, this is the mighty foundation and into it is consigned all that moves and breathes and sees. This that is that great foundation here, know, as the Is and Is not, the supremely desirable, greatest and the Most High, beyond the knowledge of creatures. मुंडकोपनिषद २.२.१ #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद्
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। सप्त प्राणाः प्रभवन्ति तस्मात् सप्तार्चिषः समिधः सप्त होमाः। सप्त इमे लोका येषु चरन्ति प्राणा गुहाशया निहिताः सप्त सप्त ॥ 'उसी' से सप्त प्राणों का जन्म हुआ है, सप्त ज्वालाएँ, विभिन्न समिधाएँ सप्त होम तथा ये सन्त लोक जिनमें प्राण हृदय-गुहा को अपना बना कर विचरण करते हैं, 'उसी' से उत्पन्न हैं; सभी सात-सात के समूहों में हैं। The seven breaths are born from Him and the seven lights and kinds of fuel and the seven oblations and these seven worlds in which move the lifebreaths set within with the secret heart for their dwellingplace, seven and seven. ( मुंडकोपनिषद २.१.८ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #सप्त #यथा
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।। ओ३म् ।। तस्माच्च देवा बहुधा संप्रसूताः साध्या मनुष्याः पशवो वयांसि। प्राणापानौ व्रीहियवौ तपश्च श्रद्ध सत्यं ब्रह्मचर्यं विधिश्च ॥ तथा 'उसी' से अनेकानेक देवगण उत्पन्न हुए हैं, उसी से साधुगण, मनुष्य तथा पशु-पक्षी उत्पन्न हुए हैं, प्राण तथा अपान वायु, धान तथा जौ (अन्न), तप, श्रद्धा, सत्य, ब्रह्मचर्य तथा विधि-विधानों का प्रादुर्भाव 'उसी' से हुआ है। And from Him have issued many gods, and demigods and men and beasts and birds, the main breath and downward breath, and rice and barley, and askesis and faith and Truth, and chastity and rule of right practice. ( मुंडकोपनिषद २.१.७ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #परमेश्वर #वेदांत
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।। ओ३म् ।। उद्गीतमेतत्परमं तु ब्रह्म तस्मिंस्त्रयं सुप्रतिष्ठाऽक्षरं च। अत्रान्तरं ब्रह्मविदो विदित्वा लीना ब्रह्मणि तत्परा योनिमुक्ताः॥ उपनिषदों में स्पष्ट रूप से परम ब्रह्म की घोषणा की गयी है। यह त्रिपक्षीय है। यह सुदृढ़ आश्रय तथा अविनाशी है। इसके आन्तरिक सारतत्व को जानकर वेदज्ञ ऋषि उसमें लीन हो गये और जन्म से मुक्त हो गये। This is expressly declared to be the Supreme Brahman. In that is the triad. It is the firm support, and it is the imperishable. Knowing the inner essence of this, the knowers of Veda become devoted to Brahman, merge themselves in It, and are released from birth. ( श्वेताश्वतरोपनिषद् १.७ ) #श्वेताश्वतरोपनिषद् #उपनिषद् #ब्रह्मा #मुनि #मोक्ष #ज्ञान
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। पञ्चस्रोतोम्बुं पञ्चयोन्युग्रवक्रां पञ्चप्राणोर्मिं पञ्चबुद्ध्यादिमूलाम्। पञ्चावर्तां पञ्चदुःखौघवेगां पञ्चाशद्भेदां पञ्चपर्वामधीमः॥ अथवा हम ब्रह्म को ध्यान में एक नदी के रूप में देखते हैं जिसमें पाँच स्रोतों का जल है। पाँच कारणों से उसमें पाँच उग्र घुमाव हैं। इसमें पाँच प्राण रूपी लहरें हैं। उसका मन पंचविध ज्ञान का मूल उद्गम है। पंचविध दुःख इसकी क्षीप्तिकाएं हैं जिनमें पांच भंवर हैं, पांच शाखाएं और असंख्य पक्ष हैं। We think of Him (in His manifestation as the universe) who is like a river that contains the waters of five streams; that has five big turnings due to five causes; that has the five Pranas for the waves, the mind - the basis of five-fold perception - for the source, and the five-fold misery for its rapids; and that has five whirlpools, five branches and innumerable aspects. ( श्वेताश्वतरोपनिषद् १.४ ) #श्वेताश्वतरोपनिषद् #उपनिषद् #ब्रह्मा #ज्ञान #दिव्य
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