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REETA LAKRA
आंचल पल्लू कहलाता था माँ का आंचल। सबकी माँएं पहनती थीं साड़ी, बच्चा-बच्चा जानता था, पहचानता था। अब तो यह बीते समय की बात हो चली है। माँ की महिमा बढ़ाता था आंचल, गरम बरतन चूल्हे से उतारता था आंचल। संतानों के आंसू और पसीने को पोंछता था आंचल। ठंड से ही नहीं धूप और गरमी से बचाता था आंचल। बच्चों के कान साफ करता था माँ का आंचल। मुंह की भी सफाई करता था माँ का आंचल। भोजन के बाद धुले मुँह सुखाता, सुकून देता था माँ का आंचल। आंँखों का दर्द भगाता था वो गोल बना, फूंककर गर्म किया माँ के आंचल का कोना। घर के सामानों की धूल उड़ाता था, रसोई में रक्षा वस्त्र बनता था माँ का आंचल। पूजा के फूल चुन लाता था माँ का आंचल। पेड़ों के फलों को झोक लेता था, अजनबियों की नजरों को बच्चों से दूर ही रोक लेता था माँ का आंचल। कई बार तो बच्चों के लिए बैंक भी साबित होता था माँ का आंचल। शर्मीले बच्चों के मुखावरण का काम करता था माँ का आंचल। बाहर जाने में मार्गदर्शक बनता था माँ का आंचल। विकास कितना भी कर ले विज्ञान और तकनीक बना नहीं सका अब तक आंचल का विकल्प हर माँ के पास होता था जादू भरा माँ का आंचल। अब तो बीते समय की बात हो चला है माँ का आंचल।। ३६९/३६६ मां के आंचल के जादुई एहसास का लुत्फ अपने बचपन में सभी उठाते हैं और ताउम्र बचपन की यादों को जेहन में समेटे रखते हैं। #कुटुम्ब yreeta-lakra-9mba
मां के आंचल के जादुई एहसास का लुत्फ अपने बचपन में सभी उठाते हैं और ताउम्र बचपन की यादों को जेहन में समेटे रखते हैं। #कुटुम्ब yreeta-lakra-9mba
read morePoetry with Avdhesh Kanojia
मेरी दृष्टि ✍️अवधेश कनौजिया© #मेरी_दृष्टि ............ शोशल मीडिया पर विजया दशमी आते आते प्रतिवर्ष एक आधारहीन शरारती तत्वों द्वारा रचित एक सन्देश बहुत प्रसारित होता है। जिसमें मृत्यु शैय्या पड़ा रावण उनसे कहा है कि *वह उनसे वर्ण में बड़ा है। *आयु में बड़ा है। *उसका कुटुम्ब श्रीराम के कुटुम्ब से बड़ा है। *वह उनसे अधिक वैभवशाली है।
#मेरी_दृष्टि ............ शोशल मीडिया पर विजया दशमी आते आते प्रतिवर्ष एक आधारहीन शरारती तत्वों द्वारा रचित एक सन्देश बहुत प्रसारित होता है। जिसमें मृत्यु शैय्या पड़ा रावण उनसे कहा है कि *वह उनसे वर्ण में बड़ा है। *आयु में बड़ा है। *उसका कुटुम्ब श्रीराम के कुटुम्ब से बड़ा है। *वह उनसे अधिक वैभवशाली है।
read moreHimanshu Gupta (Poetic Engineered Lawyer)
कुछ तो था उसकी आँखों में जो मैं पढ़ रहा था, रोज़ आते जाते वो मेरे हाथों की तरफ देखा करता था कितना अकेला और लाचार, अपने ही बनाये कुटुम्ब से अलग वो आज कल रहने लगा था। जिसने सींचा था उस कुटुम्ब को, अब यही उस कुटुम्ब को बोझ लगने लगा था। हा, शायद अब वो बूढ़ा हो चला था।। हा, अब वो बूढ़ा हो गया था।। #myvoice_mylines #oldage #is #new #childhood #society #nuclerfamily #emotions #love #poetry #nojotohindi #family
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