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Karan Mehra

#krishnvani

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देखो तो ये संसार कितना सुंदर है किंतु वास्तविक सत्य ये है कि इस संसार में सब कुछ नश्वर है जो कल था वो आज नहीं है जो आज है, वो कल नहीं था जो आज है वो कल भी नहीं होगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने समय पर काल को प्राप्त हो जाता है। इस रूप का नाश करता है बुढ़ापा, प्राणों का नाश करती है मृत्यु, आलस्य, इरशा, धर्म का नाश करते हैं और क्रोध, क्रोध संबंध का नाश करता है किंतु एक ऐसा भाव है जो अकेला ही सारे गुणो का नाश करने में सक्षम है और वो है अभिमान इसलिए ज्ञान को स्वयं के पास आने दीजिए, किंतु अभिमान को कदापि नहीं। क्योंकि यदि ये अभिमान आपके पास आ गया तो जीवन में जो कुछ भी आपने अर्जित किया है चाहे वो गुण हो, चाहे वो धन हो, चाहे वो मित्र हो, चाहे वो आनंद सब का नाश हो जाएगा।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

#krishnvani

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आप सोच रहे होंगे कि मैं कर क्या रहा हूं। मैंने सुना की चट्टानों में जो है रत्न पाए जाते हैं, वही ढूंढ रहा था तो देखिए कैसी विचित्र बात है। हर चट्टान में रत्न नहीं पाए जाते। हरगज के मस्तक पर गजमुखता नहीं पाया जाता। हर वन में चंदन का वृक्ष नहीं पाया जाता। जीवन में ये जो श्रेष्ठ और महान वस्तुएं हैं, इन्हें पाने के लिए कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है। अब ऐसे ही श्रेष्ठ होते हैं मित्र अत्यंत श्रेष्ठ यदि सही मित्र मिले तो, आपको जीवन में कई सारे लोग मिलेंगे बड़ी मीठी-मीठी बातें करेंगे किंतु यदि कोई ऐसा जीवन में आए जो आपके हित के विषय मे सोचें। आपके हित के विषय में कार्य करें तो उसे कहीं मत जाने दीजिएगा। उन्हें अपने जीवन में सहेज कर रखें। फिर देखिए आपके जीवन में सुख ही सुख होगा।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

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सागर और नदी दोनों ही जल की राशियां है किंतु दोनों में अंतर देखिए कितना है जब वर्षा होती है, नदी अपना स्थर बड़ा लेती है। इतना बड़ा लेती है कि कभी कबार तट को तोड़ कर भह जाती है। विध्वंश मचा देती है। यही वर्षा ना हो तो सूख जाती है ये नदी एक महीन धारा में परिवर्तित हो जाती है। दूसरी और है सागर अब सागर को देखिए यदि कोई नदी आके सागर में सम्मिलित भी हो जाए। तब भी सागर अपना स्तर नहीं बढ़ाता सूर्य की गर्मी चाहे जितनी भी बढ़ जाए उस ताप के कारण सागर अपना स्तर नहीं घटता। शांत चित रहता है। संतुलन में सब कुछ रखता है और इसीलिए तो इतना विशाल इतना महान है ये सागर, यदि आप भी महान बनना चाहते हैं अपने व्यक्तित्व को विशाल बनाना चाहते हैं तो स्मरण रखिएगा। आपको इस सागर की भांति बनना होगा, शांत चित रहिए सब कुछ संतुलन में रखिए यदि जीवन में कुछ अधिक ही सुख आ जाए तो अपनी सुद बुद्ध मत खोइएगा। यदि जीवन में दुख आ जाए, कष्ट आ जाए तो अपना निश्चय अपना लक्ष्य और अपनी शक्ति मत भूलिएगा क्योंकि यही श्रेष्ठता व्यक्ति का आचरण है।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

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जीवन में व्यक्ति तभी सुखी रह पाएगा जब उसके पास संतोष और आनंद होगा। संतोष और आनंद उसके जीवन में तभी आ पाएगा जब उसके पास मित्र हों, कुछ ऐसे लोग हो जो उसे प्रेम दे सके, वो प्रेम उसे तभी मिल पाएगा। जब वो स्वयं किसी और को प्रेम देने योग्य हो। स्वयं की आवश्यकताओं को स्वयं पूर्ण करने योग्य हो। वो स्वयं की आवश्यकताओं की पूर्ति तभी कर पाएगा जब उसके पास धन हो, धन अर्जित तभी कर पाएगा जब उसके पास कोई विद्या या कोई कला हो और ये ऐसे ही नहीं आती, समझे सर्वप्रथम आलस त्यागीय जिस भी क्षेत्र में आप हैं। पूरे निष्ठा से कर्म कीजिए। विद्या से संपन्न हो जाइए। तभी मिलेगा आपको सुख तभी मिलेगा आपको प्रेम और तभी एक मुस्कुराहट के साथ अपना जीवन व्यतीत कर पाएंगे।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

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इस कोमल घास को देख रहे हैं। इतनी कोमल की कोई बालक भी आकर इस पर बैठ जाए तो यह दब जाती है। एक छोटा सा चूहा कहीं से आ जाए अपने दांतों से इसे काट सकता है और यदि कोई हाथी आ गया तो बड़ी सरलता से इसे जड़ से उखाड़ कर फेंक सकता है, है ना अब देखिए मैंने इसी घास को गुथकर एक रस्सी बना दी और अब वही कोमल घास एक शक्तिशाली बंधन में परिवर्तित हो चुका है। ऐसा बंधन जो किसी हाथी को बांधने में काम आ सकता है वही हाथी जो बड़ी सरलता से इस घास को उखाड़ कर फेंक सकता था। समझे आप इसी रस्सी की भांति यदि एक साथ रहोगे एक दूसरे की सहायता करोगे साथ निभाओगे तो कितनी भी बड़ी समस्या क्यों ना हो, उसका हल बड़ी सरलता से आप निकल पाओगे।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

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मेरे मन में अभी-अभी एक विचार आया। क्या आप भी ऐसा सोचते हैं कि ऐसा क्यों होता है? ईश्वर ने हमें दो आंखें दी, दो कान दिए, दो हाथ दिए, किंतु मुख केवल एक ही दिया, जीब केवल एक ही दी ऐसा क्यों, क्या कारण हो सकता है इसके पीछे, हम्म कारण है, कारण ये है कि ईश्वर चाहते हैं कि हम देखें अधिक सुने अधिक कार्य अधिक करें, बोले कम अब यदि आप गौर से सोचेंगे तो इसमें भी हमारे जीब को अत्यंत कोमल बनाया गया है ताकि इन कठोर दातों के मध्य में यह बड़ी सरलता से रह सके। अब इसके पीछे भी कोई कारण है हमारे शब्द और हमारी वाणी भी इसी प्रकार कोमल और सरल होनी चाहिए। स्मरण रखिएगा यदि इस मुख से शब्द कठोर निकलेंगे तो उसके परिणाम में कठोर ही होंगे तो इसी कोमल इसी सरल और इसी मीठी वाणी के साथ आइए मेरे साथ कहे।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

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बालपन में एक बात थी जो मुझे कभी समझ नहीं आई। मैं सदैव आश्चर्यचकित रहता था कि ऐसा कैसे हो सकता है। बात कुछ यूं थी। मैं हमारी गौशाला में देखता था। अलग-अलग रंग रूप की गईया किसी का रंग काला तो किसी का सफेद किसी का भुरा तो किसी का चित कब्रा, अब मैं देखता था किसी के सिंह बड़े हैं तो किसी के इतने छोटे की मानो दिखाई ही ना दे। कोई गईया आकार में छोटी थी तो कोई तनिक बड़ी। किंतु जब यह सारी गईया दूध देती थी तब मैंने देखा सब कुछ तो समान है रंग समान, स्वाद समान, गुण समान, पौष्टिकता समान। अब मैं ये समझ नहीं पाया मेरी दृष्टि से तो सारी गईयां अलग-अलग थी। मैंने सोचा मैं मैया से पूछता हूं, मैंने मैया से पूछा, मैया ने मुझसे कहा, कान्हा रंग रूप बदलने से गईया की वास्तविकता तो नहीं बदलती ना गईया तो गईया ही रहेगी। अब मैं ये बात नहीं समझ पाता कि मनुष्य इसे आत्मसात कैसे नहीं कर सकता। देखिए रंग, रूप, जात, धर्म, भाषा इससे ऊपर है मानवता और मानवता का एक ही धर्म है और वो है प्रेम यो यही प्रेम आप सब में बाटते रहिए। प्रेम से सब की सेवा करते रहिए। इस मानवता का अमृत चख के देखिए फिर आप समझ जाएंगे कि हम सब भिन्न-भिन्न नहीं है हम सभी एक हैं।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

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इस संसार में आपका सबसे बड़ा शत्रु कौन है ये प्रश्न किसी से भी पूछ लीजिए। प्रत्येक व्यक्ति के पास किसी न किसी का नाम तो अवश्य होगा जिसे वो अपना शत्रु मानता है। चलिए आपको वास्तविकता ज्ञात करवाता हूं। इस संसार में आपका सबसे बड़ा शत्रु कोई और व्यक्ति नहीं है। आपका सबसे बड़ा शत्रु है, भाव वो भाव जो और कई नहीं आप ही के भीतर बस्ते हैं ये भाव आपको नष्ट कर सकते हैं। आपको दुखी कर सकते हैं। भाव जैसे अहंकार लोभ, क्रोध, मोह आपके पतन का कारण बन सकते हैं। अहंकार किसी और को तुच्छ समझने पर विवश कर देता है। मोह आपको व्याकुल कर देता है। लोभ आपकी कामनाएं बढ़ाता है और क्रोध जिसकी अग्नि सर्वप्रथम आप ही को जलाती है। अब जैसे हम किसी और शत्रु के लिए सोचते हैं। इस शत्रु के लिए क्या कैसे इस शत्रु को पराजित किया जाए। कैसे इसे मात दी जाए। ये भाव कैसे इन्हें पराजित करें जब ये आप ही के भीतर बस्ते हैं। क्या है, कोई अस्त्र आवश्य है और इस अस्त्र का नाम है संतुष्टि, यही संतुष्टि है जो आपके मन को शांत रखेगी। यही संतुष्टि है जो आपको जीवन मे सुख और आनंद के सागर तक ले जाएगी। इसलिए जीवन में सदैव संतुष्ट रहिए। जो है उसमें आनंद धुंधिये जीवन और भी सुखी होगा।

राधे राधे

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Karan Mehra

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सागर कितना विशाल होता है ये सागर क्या नहीं कर सकता ये सागर क्षण भर में त्राहि त्राहि मचा सकता है, प्रले ला सकता है, संसार मिटा सकता है, ये सागर जीवन ज्योति बुझा सकता है। यदि कुछ नहीं बुझा सकता तो एक प्यासे की प्यास, दूसरी और ये गागर इतनी छोटी है कि गोपियों एक साथ 10-10 लेकर चल सकती हैं, किंतु यही छोटी गागर बीसो की प्यास बुझा सकती है। अब बताइए जल सागर में भी है और गागर में भी फिर इतना अंतर क्यों यहां पे अंतर है तो भाव के स्वभाव में एक माटी में मीठा जल संजोकर रखती है तो दूसरा अपने खारे पानी से किसी को भी माटी में मिला सकता है। आप क्या बनना चाहेंगे ? सागर का खारा पानी बनकर किसी की आस बुझाना चाहेंगे या मीठी गागर बनकर किसी की प्यास बुझाना चाहेंगे। निर्णय आपका है।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani

Karan Mehra

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जब भी हम किसी वृक्ष को देखते हैं, सर्वप्रथम हमारी दृष्टि पड़ती है उसके पुष्पों पर हरे भरे पत्तों पर रसीले फलों पर किंतु वो कठोर वो निस्वार्थ जड़ उससे तो हम कभी आकर्षित होते ही नही अब क्या इसका अर्थ ये है कि जिसने बलिदान दिया, जो उस वृक्ष की नीव है जिसने उस वृक्ष को बढ़ाया उसका कोई मोल ही नहीं, नही, स्मरण रखिएगा जब भी हम किसी वृक्ष को जल देते हैं, उसके पत्तों, पुष्पों या फलों को नहीं उसकी जड़ को देते हैं। जब भी हम किसी वृक्ष की पूजा करते हैं। यही पुष्प यही तिलक हम उसकी जड़ को अर्पित करते हैं। अर्थात कहीं ना कहीं अनजाने में ये प्रकृति आपको वो मान दे ही देती है जिसके आप पात्र हैं और इसीलिए तो मैं कहता हूं। तू कर्म किए जा तू फल की चिंता ना कर तुझे वो मान अवश्य मिलेगा जिसका तू पात्र है बस विश्वास कर।

राधे राधे

©Karan Mehra #krishnvani
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