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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 7 - शरीर अनित्य है लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीकार है कि उनके हाथ में यश है। नाड़ीज्ञान में अद्वितीय हैं और उनके निदान में भूल नहीं हुआ करती। वे जब चिकित्सा करते हैं, मरते को जीवन दे देते हैं; किंतु अपने पागलपन से उन्हें जब अवकाश मिले चिकित्सा करने का। इतना निपुण चिकित्सक - उसके हाथ में लोहे को सोना करने वाली विद्या थी। वह अपना व्यवसाय किये जाता - तो लक्ष्मी पैर तोड़ उसके घर में बैठने को प्रस्तुत कब नहीं थ

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
7 - शरीर अनित्य है

लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीकार है कि उनके हाथ में यश है। नाड़ीज्ञान में अद्वितीय हैं और उनके निदान में भूल नहीं हुआ करती। वे जब चिकित्सा करते हैं, मरते को जीवन दे देते हैं; किंतु अपने पागलपन से उन्हें जब अवकाश मिले चिकित्सा करने का।

इतना निपुण चिकित्सक - उसके हाथ में लोहे को सोना करने वाली विद्या थी। वह अपना व्यवसाय किये जाता - तो लक्ष्मी पैर तोड़ उसके घर में बैठने को प्रस्तुत कब नहीं थ

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 47 - वैद्यराज कृष्ण का नाम ही भवौषधि है, यह बात बड़ी जटा-दाढीवाले ऋषि-मुनियों की अथवा वेद-शास्त्र की। भोले गोप, गोपियाँ इसे नहीं जानते। छोटे गोप-बालक तो भला क्या जानेंगे; किन्तु कन्हाई का स्पर्श सब पीड़ा हर लेता है, यह सबका अपना अनुभव है। कोई आवश्यक नहीं है कि किसी का सिर पीड़ा ही करे। सच तो यह है कि किसी रोग का कोई अधिदेवता ऐसा नहीं जो किसी की उपासना-आराधना के द्वारा दबाव डालने पर भी नन्दब्रज की ओर देखने का साहस कर सके। स्वेच्छा से तो क्या आएगा। अघ और अरिष्ट का अर्थ तो आप जानते

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।।श्री हरिः।।
47 - वैद्यराज

कृष्ण का नाम ही भवौषधि है, यह बात बड़ी जटा-दाढीवाले ऋषि-मुनियों की अथवा वेद-शास्त्र की। भोले गोप, गोपियाँ इसे नहीं जानते। छोटे गोप-बालक तो भला क्या जानेंगे; किन्तु कन्हाई का स्पर्श सब पीड़ा हर लेता है, यह सबका अपना अनुभव है।

कोई आवश्यक नहीं है कि किसी का सिर पीड़ा ही करे। सच तो यह है कि किसी रोग का कोई अधिदेवता ऐसा नहीं जो किसी की उपासना-आराधना के द्वारा दबाव डालने पर भी नन्दब्रज की ओर देखने का साहस कर सके। स्वेच्छा से तो क्या आएगा।

अघ और अरिष्ट का अर्थ तो आप जानते


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