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संजीव चाहर

#ज्ञान #ज्ञाता #ज्ञानी #ध्यान #पाप #घड़ा #Books SUNITA SWAMI nenzaa aggarwal Dr. Sonia shastri Nishi bansal komal sindhe.

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यह न समझना *संजू* बहुत बड़ा ज्ञानी-ध्यानी हो गया है!
हां, 
इतना है कि "मेरी गलतियों का-पापों का घड़ा सबसे बड़ा है"!!

©संजू #ज्ञान #ज्ञाता #ज्ञानी #ध्यान #पाप #घड़ा 

#Books  SUNITA SWAMI nenzaa aggarwal Dr. Sonia shastri Nishi bansal  komal sindhe.

Narendra Singh Bijarniya

वो जब भी मिलती है ज्ञान देने लग जाती है, . . जबकि उसे देना कुछ और चाहिए था..!! 
शुप्रभात🙏 #ज्ञान #ज्ञाता #Love 

#flyhigh

niraj kumar keshri

#झूट #ज्ञान - #माखन #चोर, #स्त्री #वस्त्र #चोर, #राधा #प्रेमी, #रास #रचाने वाले, #चमत्कारी #मनुष्य, #विष्णू के #अवतार, झूट बोलने वाले, #भगोड़े, #हत्यारे, हम लोग ने इनके #चरित्र का बहुत #मजाक बना लिया। #सत्य ज्ञान - #महान #योगी, #बलवान, #बुद्धिमान, #दयावान, #धनवान, #वेदों के #ज्ञाता, #गव्य #पालक, एक #पत्नी(#माता #रूक्मणी), एक #पुत्र (#प्रध्युम) महान #राजा, महान #गुरु, महान #मित्र, स्त्री के #सम्मान करने वाले, 48 वर्ष तक #ब्रह्मचर्य #विवाह पश्चात भी 18 वर्ष तक #ब्रह्मचारी इसलिए भगवान। आओ मिल कर

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आयुष पंचोली

ब्राह्मण क्या हैं? क्या ब्राह्मण कोई जाती हैं, या वर्ण हैं, या कुछ और हैं। और हैं तो क्या हैं, जो उसे शास्त्रो मे इतना ऊंचा स्थान दिया गया..!!! ब्राह्मण जिसका अर्थ सीधे ब्रम्ह से जुडा हैं। अगर देखा जाये तो ब्राह्मण अर्थात् "ब्रह्म जानाती, इति ब्राह्मण" ऐसा कहां गया हैं, मतलब "जो ब्रम्ह को जान चुका हैं, वह ब्राह्मण हैं। जिसे ब्रह्म का ज्ञान, तत्व का ज्ञान हो चुका हैं वही ब्राह्मण हैं। पर क्या सच मे ऐसा हैं। जब सृष्टि की रचना हुई, तब सबसे पहले सप्तऋषियो को जन्म दिया गया। जिन्होने कठोर तपस्या से ब्रम्ह ज्ञान को जाना, तब जाके वह ब्राह्मण कहलाये गये। और फिर उन्होने ही, गृहस्थ जीवन की शुरुवात कर, संसार को गृहस्थ आश्रम का पाठ पढ़ाया। अब अगर देखा जायें, तो जो गौत्र हम लगाते हैं, वह सभी इन सप्तऋषियो के नाम से ही हैं । और अगर कुल मे जन्म लेने से ही किसीका वर्ण निर्धारित किया जाये तो इस हिसाब से तो दुनिया का हर एक इन्सान ही ब्राह्मण हो जायेगा। क्योकी इन्सान की उत्पत्ति तो इन 7 सप्तऋषियों के कुल मे ही कही ना कही होगी। उसका मूल उसकी जड़ तो यही हैं ना। मगर ना ऐसा कुछ हैं, ना ही ऐसा कुछ हो सकता हैं। क्योकी अगर कुल मे उतपन्न होना ही सबकुछ होता तो शायद, वर्ण व्यवस्था की जरुरत समाज को नही पड़ती। अब अगर इसके बाद भी समाज चार वर्णो मे विभाजित हुआ, तो भी कुल को प्रधानता किसी वेद, किसी शास्त्र ने कभी प्रदान नही करी । हर चीज कर्म आधारित ही रखी गई । और कर्मो का विभाजन और चयन व्यक्ति के ऊपर था उसे कौनसा कर्म करना हैं। सबने अपने अनुसार अपने कर्म, निर्धारित किये। और उन्हे करने लगे। और यही कर्म उनकी पहचान बन गये। जो बाद मे जातियों मे बँट गये।

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ब्राह्मण क्या हैं? ब्राह्मण क्या हैं? क्या ब्राह्मण कोई जाती हैं, या वर्ण हैं, या कुछ और हैं। और हैं तो क्या हैं, जो उसे शास्त्रो मे इतना ऊंचा स्थान दिया गया..!!!

ब्राह्मण जिसका अर्थ सीधे ब्रम्ह से जुडा हैं। अगर देखा जाये तो ब्राह्मण अर्थात् "ब्रह्म जानाती, इति ब्राह्मण" ऐसा कहां गया हैं, मतलब "जो ब्रम्ह को जान चुका हैं, वह ब्राह्मण हैं। जिसे ब्रह्म का ज्ञान, तत्व का ज्ञान हो चुका हैं वही ब्राह्मण हैं। 

पर क्या सच मे ऐसा हैं। जब सृष्टि की रचना हुई, तब सबसे पहले सप्तऋषियो को जन्म दिया गया। जिन्होने कठोर तपस्या से ब्रम्ह ज्ञान को जाना, तब जाके वह ब्राह्मण कहलाये गये। और फिर उन्होने ही, गृहस्थ जीवन की शुरुवात कर, संसार को गृहस्थ आश्रम का पाठ पढ़ाया। अब अगर देखा जायें, तो जो गौत्र हम लगाते हैं, वह सभी इन सप्तऋषियो के नाम से ही हैं । और अगर कुल मे जन्म लेने से ही किसीका वर्ण निर्धारित किया जाये तो इस हिसाब से तो दुनिया का हर एक इन्सान ही ब्राह्मण हो जायेगा। क्योकी इन्सान की उत्पत्ति तो इन 7 सप्तऋषियों के कुल मे ही कही ना कही होगी। उसका मूल उसकी जड़ तो यही हैं ना।
मगर ना ऐसा कुछ हैं, ना ही ऐसा कुछ हो सकता हैं। क्योकी अगर कुल मे उतपन्न होना ही सबकुछ होता तो शायद, वर्ण व्यवस्था की जरुरत समाज को नही पड़ती। 
अब अगर इसके बाद भी समाज चार वर्णो मे विभाजित हुआ, तो भी कुल को प्रधानता किसी वेद, किसी शास्त्र ने कभी प्रदान नही करी । हर चीज कर्म आधारित ही रखी गई । और कर्मो का विभाजन और चयन व्यक्ति के ऊपर था उसे कौनसा कर्म करना हैं। सबने अपने अनुसार अपने कर्म, निर्धारित किये। और उन्हे करने लगे। 
और यही कर्म उनकी पहचान बन गये। जो बाद मे जातियों मे बँट गये।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 9 – अहिंसा बात बहुत पहले की है - इतने पहले की कि मनुष्य तब आज के दानवाकार यन्त्र बनाने की बात सोच भी नहीं सकता था। उस युग में भी एक वैज्ञानिक था। आज के वैज्ञानिक मुझे क्षमा करेंगे - मुझे लगता है कि अभी उस वैज्ञानिक के ज्ञान तक आज का मनुष्य नहीं पहुँच सका है। 'मैं अपने यनंत्रों के सब रहस्य आपको बतला दूँगा। मेरे सेवक उनके निर्माण में निपुण हैं और वे आपके आज्ञानुवर्ती रहेंगें।' उस वैज्ञानिक ने एक दिन भारत के एक वरिष्ठ पुरुष के सम्मुख प्रस्ता

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
9 – अहिंसा

बात बहुत पहले की है - इतने पहले की कि मनुष्य तब आज के दानवाकार यन्त्र बनाने की बात सोच भी नहीं सकता था। उस युग में भी एक वैज्ञानिक था। आज के वैज्ञानिक मुझे क्षमा करेंगे - मुझे लगता है कि अभी उस वैज्ञानिक के ज्ञान तक आज का मनुष्य नहीं पहुँच सका है।

'मैं अपने यनंत्रों के सब रहस्य आपको बतला दूँगा। मेरे सेवक उनके निर्माण में निपुण हैं और वे आपके आज्ञानुवर्ती रहेंगें।' उस वैज्ञानिक ने एक दिन भारत के एक वरिष्ठ पुरुष के सम्मुख प्रस्ता

आयुष पंचोली

एक लड़का था पागल सा, एक गरीब परिवार मे जन्मा था। माँ बाप का अपने वो एक लौता सहारा था, सबकी नजरों मे एक शख्स दिल का बड़ा प्यारा था। अव्वल आता था पढाई मे हर जगह, रिश्तों का ख्याल उसे बहुत ज्यादा था।

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एक लड़का था पागल सा,
एक गरीब परिवार मे जन्मा था। 

माँ बाप का अपने वो एक लौता सहारा था,
सबकी नजरों मे एक शख्स दिल का बड़ा प्यारा था। 

अव्वल आता था पढाई मे हर जगह,
रिश्तों का ख्याल उसे बहुत ज्यादा था। 

भोला-भाला, सीधा-साधा सबसे जुदा,
लोगों द्वारा हरपल छला जाता बेचारा था। 

पिता थे अध्यापक उसके ,
सपना पिता का बनाना उसे प्राध्योगिकी का ज्ञाता था। 

पर सपना उस लड़के का बनना,
ज्योतिष का ज्ञाता और I.A.S बनना था। 

बचपन से वो बेचारा प्यार किसी को करता था,
उसके दिल मे सिर्फ रहता ख्याल एक उसी का पलता था। 
"आयुष पंचोली"
©ayush_tanharaahi #NojotoQuote एक लड़का था पागल सा,
एक गरीब परिवार मे जन्मा था। 

माँ बाप का अपने वो एक लौता सहारा था,
सबकी नजरों मे एक शख्स दिल का बड़ा प्यारा था। 

अव्वल आता था पढाई मे हर जगह,
रिश्तों का ख्याल उसे बहुत ज्यादा था।

Parul Sharma

.... ..... जय माँ ब्रह्मचारिणी....... माँ ब्रह्मचारिणी केलिए मेरी भक्तिमय पंक्तियाँ......... श्वेत वस्त्रधारिणी, अष्टदल माला, कमंडल पाणिनि। चर अचर विद्याऔ व शास्त्रों की ज्ञाता, तू जगत उद्धारिणी। प्रवत्ति अनुपम, अतिसौम्य, भव्य, सादा शीघ्र फलदायिनी। ब्रह्मा के समान वेदों की ज्ञाता,दुर्गा की द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी। पारुल शर्मा

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.... ..... जय माँ ब्रह्मचारिणी.......
माँ ब्रह्मचारिणी केलिए मेरी भक्तिमय पंक्तियाँ.........

श्वेत वस्त्रधारिणी, अष्टदल माला, कमंडल पाणिनि।
चर अचर विद्याऔ व शास्त्रों की ज्ञाता, तू जगत उद्धारिणी।
प्रवत्ति अनुपम, अतिसौम्य, भव्य, सादा  शीघ्र फलदायिनी।
ब्रह्मा के समान वेदों की ज्ञाता,दुर्गा की द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी।
पारुल शर्म3 .... ..... जय माँ ब्रह्मचारिणी.......
माँ ब्रह्मचारिणी केलिए मेरी भक्तिमय पंक्तियाँ.........

श्वेत वस्त्रधारिणी, अष्टदल माला, कमंडल पाणिनि।
चर अचर विद्याऔ व शास्त्रों की ज्ञाता, तू जगत उद्धारिणी।
प्रवत्ति अनुपम, अतिसौम्य, भव्य, सादा  शीघ्र फलदायिनी।
ब्रह्मा के समान वेदों की ज्ञाता,दुर्गा की द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी।
               पारुल शर्मा

Parul Sharma

.... ..... जय माँ ब्रह्मचारिणी....... माँ ब्रह्मचारिणी केलिए मेरी भक्तिमय पंक्तियाँ......... श्वेत वस्त्रधारिणी, अष्टदल माला, कमंडल पाणिनि। चर अचर विद्याऔ व शास्त्रों की ज्ञाता, तू जगत उद्धारिणी। प्रवत्ति अनुपम, अतिसौम्य, भव्य, सादा शीघ्र फलदायिनी। ब्रह्मा के समान वेदों की ज्ञाता,दुर्गा की द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी। पारुल शर्मा

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.... ..... जय माँ ब्रह्मचारिणी.......
माँ ब्रह्मचारिणी केलिए मेरी भक्तिमय पंक्तियाँ.........

श्वेत वस्त्रधारिणी, अष्टदल माला, कमंडल पाणिनि।
चर अचर विद्याऔ व शास्त्रों की ज्ञाता, तू जगत उद्धारिणी।
प्रवत्ति अनुपम, अतिसौम्य, भव्य, सादा  शीघ्र फलदायिनी।
ब्रह्मा के समान वेदों की ज्ञाता,दुर्गा की द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी।
पारुल शर्म3 .... ..... जय माँ ब्रह्मचारिणी.......
माँ ब्रह्मचारिणी केलिए मेरी भक्तिमय पंक्तियाँ.........

श्वेत वस्त्रधारिणी, अष्टदल माला, कमंडल पाणिनि।
चर अचर विद्याऔ व शास्त्रों की ज्ञाता, तू जगत उद्धारिणी।
प्रवत्ति अनुपम, अतिसौम्य, भव्य, सादा  शीघ्र फलदायिनी।
ब्रह्मा के समान वेदों की ज्ञाता,दुर्गा की द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी।
               पारुल शर्मा

Bhaskar Anand

"मैं रावण हूँ"(एक संवाद रावण से) एक दिन मेरी रावण से स्वप्न में मुलाकात हुई, मैं उनका विशाल स्वरूप देख कर पहचान नही पाया, मैंने उनसे अनायास ही परिचय पूछा।। उन्होंने मेरी तरफ नज़र फेरा और मुशकुराते हुए बड़े अभिमान से कहा.... मैं रावण हूँ,मैं शिव भक्त मैं दसग्रीव, दसकान्ता हूँ मैं दसानन मैं विश्वरूप मैं विश्र्वापुत्र रावण हूँ

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"मैं रावण हूँ"(एक संवाद रावण से)

एक दिन मेरी रावण से स्वप्न में मुलाकात हुई, मैं उनका विशाल स्वरूप देख कर पहचान नही पाया, मैंने उनसे अनायास ही परिचय पूछा।। उन्होंने मेरी तरफ नज़र फेरा और मुशकुराते हुए बड़े अभिमान से कहा....

मैं रावण हूँ,मैं शिव भक्त
मैं दसग्रीव, दसकान्ता हूँ
मैं दसानन मैं विश्वरूप
मैं विश्र्वापुत्र रावण हूँ
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