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Sunil Kumar Maurya Bekhud
भरता हूँ सबका पेट मैं पिसता हूँ चाक में हर रोज मै ख़ुशी खुशी तपता हूँ आग में फिर भी जहाँ के लोग है इतने बेवफ़ा दिल अपना लगाते हैं बेखुद गुलाब से ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गेहूं
Ek villain
वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति में भारत की हिस्सेदारी बढ़ना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन को सही साबित करता है कि भारत दुनिया का खाद्यान्न उपलब्ध करा सकता है एक अनुमान है कि इस वर्ष एक करोड़ टन गेहूं निर्यात करा सकता है नहीं संदेश का मुख्य प्रमुख कारण से उस पर हमला है महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि यूक्रेन संकट के कारण दुनिया भर में भारतीयों की मांग बढ़ रही है बल्कि हमारे किसान निजी कंपनियों को बेचना पसंद कर रहे हैं इसके बावजूद यह है कि निजी कंपनी समर्थन मूल्य से अधिक का अनुदान दे रही है किसान निजी कंपनियों को बेचने इसलिए भी पसंद नहीं कर रहे क्योंकि असुविधा का सामना करना पड़ रहा है जिससे आम तौर पर सरकारी मीडिया में करना पड़ता है पंजाब हरियाणा में तो निजी कंपनियों के बीच गेहूं है किसान को मिले किसान नेताओं के तौर ©Ek villain #गेहूं की निजी खरीदें विश्व स्तर पर #Life
Anjaan
बचपन में हमने गांव में #साइकिल तीन चरणों में सीखी थी , पहला चरण - कैंची दूसरा चरण - डंडा तीसरा चरण - गद्दी ... तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था। #कैंची वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे। और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना #सीना_तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और क्लींङ क्लींङ करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है। आज की पीढ़ी इस "#एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "#जहाज" उड़ाने जैसा होता था। हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तुड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब #दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए। अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में। मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर #संतुलन बनाना जीवन की पहली #सीख होती थी! #जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप #गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं। इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए। और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी। और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा #विलुप्त हो गयी । हम लोग की दुनिया की #आखिरी_ पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा ! पहला चरण कैंची दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी। ● हम वो आखरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की #कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, #प्लेट_में_चाय पी है। ● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, #गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं..🩺 😊😊 ©Anjaan YAADEN #Drown #village #Love #motivate
pandeysatyam999
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती। तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी। दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥ सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, दुष्टों को तू ही ललकारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती। तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी। दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥ सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, दुष्टों को तू ही ललकारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥ #nojotophoto
read moreहम है शेरा हिंदुस्तानी
18रु० किलो गेहूं बेचने वाला किसान फटेहाल घूम रहा हैओर 2 रु० किलो गेहूं बेचने वाला कोटेदार स्कॉर्पियो मे घूम रहा है कुछ तो गड़बड़ है
Poonam Aggarwal'मीता'
किसान वो गर्मी की तपिश,और बरसात की आंधी सूखे खेत औऱ मुरझाई गेहूँ की बालियों ने किसान का जीवन बेहाल कर दिया। रह गुजर बस खुदा तेरे भरोसे । #गेहूं#poonamaggarwal#nojotohindi
#गेहूं#PoonamAggarwal#nojotohindi
read moreRajesh Raana
सरसों फूली पिली पिली , गेहूं की बालियां सपनीली, पेंच दे रही ज़िन्दगी लेकिन , उड़ी अपनी पतंग रंगीली । (१) आओ मिलकर ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम । उम्मीदों की डोरी से बंधकर, उड़े अपनी पतंग हरदम । (२) हैं ज़िन्दगी गर पथरीली , तो पत्थरचट्टा क्यों न उगाये । सबकी ख्वाहिश है फूलों की , हम तुम काँटो को रिझाये । (३) है धुंआ अगर ज़िन्दगी तो , इसको छल्लों में उड़ाए । है ज़िन्दगी अगर पतंग तो , सातवे आसमान पर उड़ाए । (४) जीवन सुखदुख भरी टोकरी , अपनी पसंद की खुशियां छाँटे । जिस तक न पहुँची है अब तक , उस तक त्योहारों के पल बांटे , आओ तिलगुड़ लड्ड़ू , गुझिया बांटे ।। (५) (आप सब स्नेहीजन को मकर संक्रांति , पोंगल , बिहू , लोहड़ी पर्व की हार्दीक हार्दीक शुभ कामनाएं ) मकर संक्रांति #सरसों फूली पिली पिली , #गेहूं की #बालियां #सपनीली, #पेंच दे रही #ज़िन्दगी लेकिन , #उड़ी अपनी #पतंग #रंगीली । (१) आओ मिलकर #ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम ।
मकर संक्रांति #सरसों फूली पिली पिली , #गेहूं की #बालियां #सपनीली, #पेंच दे रही #ज़िन्दगी लेकिन , #उड़ी अपनी #पतंग #रंगीली । (१) आओ मिलकर #ख़ाब गिनाए, किसके ज्यादा किसके कम । #Hindi #उम्मीदों #जीवन #पसंद #nojotohindi #ख्वाहिश #गुझिया #आसमान #hindinojoto #खुशियां #फूलों #धुंआ #टोकरी #पथरीली #बिहू #डोरी #काँटो #लोहड़ी #उड़ाए #त्योहारों #पत्थरचट्टा #रिझाये #छल्लों #सातवे #सुखदुख #तिलगुड़ #लड्ड़ू #पोंगल
read moreEron (Neha Sharma)
माँ गेहूँ की टँकी से गेहूँ निकाला करती थी। फिर बोरे को उठाकर बाहर डाला करती थी। गेहूं को फटककर छाज से उसे छलनी में निकाला करती थी। धोकर गेहूओं को तब माँ छत पर डालकर सुखाया करती थी। घर की चक्की में माँ गेहूँ को पीसकर लाया करती थी। फिर उसी गेहूं के आटे की माँ गोल गोल रोटी बनाकर खिलाया करती थी।-नेहा शर्मा। माँ के हाथ की रोटी
माँ के हाथ की रोटी
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