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Best फंस Shayari, Status, Quotes, Stories

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aamil Qureshi

#OpenPoetry #nojotohindishayri #Truth #Love Anu Alewar Sona Mohd Mujahid Khan Mithilesh Kumar Gita Choudhary Sachika Gupta

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#OpenPoetry मेरी घड़ी की चेन मे उनकी साड़ी का जो पल्लू  फंस गया

वो देखते हैं यूँ मुस्कुरा के, कि चलो एक और  उल्लू फंस गया 


आमिल #OpenPoetry #nojotohindishayri #truth #love  Anu Alewar  Sona Mohd Mujahid Khan Mithilesh Kumar Gita Choudhary  Sachika Gupta

Ramesh Singh Dahiya

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शहर खुशियों का गगन छोड़कर लहरों में फंस गए।
चिड़ियों की चहक छोड़कर बहरों में फंस गए ।।
उस गोद से आने में कुछ मजबूरियां भी थी।
गांव की मिट्टी छोड़कर शहरों में फंस गए।।
✍️✍️rs dahiya

M Shubham

मंजिल करीब आते ही पाव कट गया
 JEE निकालते ही CBSE बोर्ड में फंस गया #मंजिल करीब आते ही #पाव कट गया
 #JEE निकालते ही #CBSE #बोर्ड में #फंस गया

#mantukumar #mantukumarnojoto #nojoto #nojotohindi #sad #emotional #failure #ummid #result #jee #engineering #cbse #board #aim #goal #leg #pass #terrible #quotes #motivation #tasalli #2liner #truth #life

Thakur Rashttra Bhushan

जीत और हार में फंस गये।
कैसे संसार में फंस गये॥ 

धर्म के झगड़े में जानवर, 
आज बेकार में फंस गये॥ #NojotoHindi #NojotoPurnea #dharm #religion #society

Naresh_ke_lafz

#Thanks

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कश्ती विहार के लिए निकला कश्ती से दरिया में 
फंस गया  तुफान के बेतोड़  भंवर में 
लहरें उठी मन के किसी कोने में 
जान तड़पने लगी उस कश्ती में 
संकट की विडम्बना छायी जीवन में 
डूब गयी पतवार उड़ गए झंडे हवा में 

विहार के लिए निकला कश्ती से दरिया में 
फंस गया  तुफान के बेतोड़  भंवर में 
सोच रहा अपने आप में 
अब दम घुट रहा काली नाव में 
एक पलटा खा गया 
एक और खाना रह गया जलधि में 

विहार के लिए निकला कश्ती से दरिया में 
फंस गया  तुफान के बेतोड़  भंवर में 
अब वो थम सा गया समन्दर में 
मेरा अस्तित्व मिट इस तबाही में 
अब कोई नही मेरे पास में 
जीवन मेरा खो गया नौका के मोह में 
किंg oफ प्रिंce #thanks

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 29 - चतुर चूड़ामणि कन्हाई परम सुकुमार है, सखाओं में दुर्बल है और भोला है, किन्तु चतुर चूड़ामणि है। इसे इतनी युक्तियाँ आती हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता। कृष्ण को ना करना तो आता ही नहीं। कोई कह ही बैठे कि आकाश का वह तारा मिलेगा? तो भी कृष्ण बड़े मजे से हाँ कर देगा और ब्रह्मा भी नहीं जानते कि अपने छोटे से पटुके के छोर में उलझाकर तारे को खींच लेने की कोई युक्ति यह ब्रजराजकुमार निकाल लेगा अथवा नहीं। अब आज ही अर्जुन दौड़ा-दौड़ा हाफता घबडाया आया। दूर से ही पुकार की - 'कनूँ! कनूँ! अपना

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|| श्री हरि: ||
29 - चतुर चूड़ामणि

कन्हाई परम सुकुमार है, सखाओं में दुर्बल है और भोला है, किन्तु चतुर चूड़ामणि है। इसे इतनी युक्तियाँ आती हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता।

कृष्ण को ना करना तो आता ही नहीं। कोई कह ही बैठे कि आकाश का वह तारा मिलेगा? तो भी कृष्ण बड़े मजे से हाँ कर देगा और ब्रह्मा भी नहीं जानते कि अपने छोटे से पटुके के छोर में उलझाकर तारे को खींच लेने की कोई युक्ति यह ब्रजराजकुमार निकाल लेगा अथवा नहीं।

अब आज ही अर्जुन दौड़ा-दौड़ा हाफता घबडाया आया। दूर से ही पुकार की - 'कनूँ! कनूँ! अपना

ikadashi tripathi

घर आजा परदेसी".....  "कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी" "तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"...  यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे.. इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है?? इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ?? अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..

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घर आजा परदेसी"..... 
"कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी"
"तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"... 

यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे..
इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है??
इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ??
अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..

ikadashi tripathi

घर आजा परदेसी".....  "कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी" "तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"...  यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे.. इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है?? इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ?? अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..

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 घर आजा परदेसी"..... 
"कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी"
"तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"... 

यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे..
इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है??
इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ??
अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..

Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह?  वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम

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Story of Sanjay Sinha 
 कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह? 
वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं।
अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम


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