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Rakesh frnds4ever

#क्यामैंहूंकहीं या मैं हूं ही नहीं क्या #मैं हूं कहीं, या मैं हूं ही नहीं तुम्हारी हर #खुशियों के #शोर_शराबे में, किसी कोने कचोने में #चीखें मेरी #दबी पड़ी तुम्हारे उत्सव और त्योहारों में, घर में कभी ना मुझको मिली मौजूदगी,,, क्या मैं हूं कहीं या मैं हूं ही नहीं #हालातों #दोपहरी #चकनाचूर #कोट्स #rakeshyadav

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White क्या मैं हूं कहीं,
या मैं हूं ही नहीं 

तुम्हारी हर खुशियों के शोर शराबे में,  किसी कोने कचोने में चीखें मेरी दबी पड़ी
तुम्हारे उत्सव और त्योहारों में, घर में कभी ना मुझको मिली मौजूदगी,,,

क्या मैं हूं कहीं 
या मैं हूं ही नहीं 

दिन भर के थके बदन के चूर चूर हालातों में, 
शामों के कामों व रात भर के  
दिल,मन,जज्बातों के मरे 
खून से चकनाचूर हुए बिखरे जर्जर शरीर की ,
 तुम्हारे अरामो, विश्रामों या खिलखिलाकर बतियाती बातों से परे 
टूटे फूटे बदन की मेरी, नंगे पांव गुजरी जलती हर दोपहरी
क्या मैं हूं कहीं,,
या मैं हूं ही नहीं,,,,
.................१.............

©Rakesh frnds4ever #क्यामैंहूंकहीं या मैं हूं ही नहीं 

क्या #मैं  हूं कहीं,
या मैं हूं ही नहीं 
तुम्हारी हर #खुशियों के #शोर_शराबे में,  किसी कोने कचोने में #चीखें  मेरी #दबी  पड़ी
तुम्हारे उत्सव और त्योहारों में, घर में कभी ना मुझको मिली मौजूदगी,,,
क्या मैं हूं कहीं 
या मैं हूं ही नहीं

Subham Shiv

Rajat Pratap Singh

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 15 - राधे-श्याम का कुआँ 'इस कुऐँ में राधेश्याम कहना होता है। राधेश्याम कहो।' मेरे साथी ने मुझे प्रेरित करते हुए स्वयं कुएं में मुँह झुकाकर बड़ी लम्बी ध्वनि से कहा 'रा-धे-श्या-म।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
15 - राधे-श्याम का कुआँ

'इस कुऐँ में राधेश्याम कहना होता है। राधेश्याम कहो।'

मेरे साथी ने मुझे प्रेरित करते हुए स्वयं कुएं में मुँह झुकाकर बड़ी लम्बी ध्वनि से कहा 'रा-धे-श्या-म।'

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 12 - भगवान ने क्षमा किया ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
12 - भगवान ने क्षमा किया

ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।

S Ram Verma (इश्क)

भरे दिन तनी दोपहरी खींचकर उसने हाथ मेरा ;
मेरे सिले लबों पर अपने खुले लबों से लिखा था 
नाम अपना !
@sramverma (इश्क) #भरे #दिन #तनी #दोपहरी

Neetu Sharma

माँ तुम क्या हो..माँ तुम खुली किताब हो। हाँ तुम मेरें लिए सिताब हो.....👉👩‍👩‍👦👩‍👩‍👧👩‍👩‍👧‍👦👩‍👩‍👦‍👦👩‍👩‍👧‍👧...मा" ( maA)..(@@;) neetuशharmA✍.....nojotoappsharefollownojotoofficialnojotoinstanojotonewsnojotochallangenojotohindi# OpenPoetry shabdanchalmirakeeamarujalakavya# Satyaprem Mukesh Poonia Internet Jockey Akshita Jangid(poetess) नयनसी परमार poetrysshayaristories#

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#OpenPoetry 👩‍👩‍👦!!माँ!!👩‍👩‍👦                                                                                                                 भरी दोपहरी और साँझ- माँ तुम क्या हो।???                                                                        खुले पन्नो पर मेरी कहानी का आधार ,सुबह - शाम और माँ तुम हो।।                                               प्यारी सी आवाज और सुबह कि चाय माँ तुम हो।                                                                  सुबह-सुबह होने वाली आरती और माँ मिठ्ठे स्वर और मेरें कानों में ठहरी कोई धुन हो।                               मेरें उज्जवल नैनों में बसतीं सध्याँ , दोपहरी में क्षुब्दं मेरें शर को सहलाती वो प्यारी माँ तुम हो।.                      हर बात को प्यार से कहकर बतलाती  माँ।..,                                                                               माँ तुम, तुम आँचल हो।                                                                                                     माँ नन्हीं सी चिरैयाँ "मै" तुम तुम उज्जवला हो!                                                                              मेरें सपनो को पँख लगाती वो उङान हो!                                                                                  मुझें कभी सिखलाती पाठ जो दूँनियाँ का वो  दुरर्दर्शिकां वो प्यारी माँ तुम हो।                                         माँ मैं कह ना सका वो ख्वाब हो और तुम लाखों सवालों का जवाब हो।                                                माँ तुम लाजवाब हो। मेरें लिए तुम कठिन सवालों कि सुलझी किताब हो।.                                             हाँ माँ तुम मेरी हर गुजरती कक्षा कि वहीं शिक्षिका हो                                                                    मेरें खाली छोटें से बस्तें कि गितिका हो। मेरीं किताब हो तुम।.                                                          मेरी लेखनी ने बहुत वर्षो के बाद  मेरी कामयाबी से जाना माँ "सिताब" हो तुम।.                                    आज बङे होने के बाद पता चला क्या-क्या हो तुम???।                                                                     वो रात में दुध के गिलास में घुली चिनी कि मिठ्ठास हो!!                                                                 तुम माँ अब कहीं ना जाने गुम हो तुम।।.                                                                                   👉 miss you grand_mAa👩‍👩‍👧.                                                                                   ‍👩‍👧 (@@;)neetuशharmA✍ माँ तुम क्या हो..माँ तुम खुली किताब हो। हाँ तुम मेरें लिए सिताब हो.....👉👩‍👩‍👦👩‍👩‍👧👩‍👩‍👧‍👦👩‍👩‍👦‍👦👩‍👩‍👧‍👧...मा" ( maA)..(@@;) neetuशharmA✍.....#nojotoapp#share#follow#nojotoofficial#nojotoinsta#nojotonews#nojotochallange#nojotohindi# #OpenPoetry #shabdanchal#mirakee#amarujalakavya# Satyaprem Mukesh Poonia Internet Jockey Akshita Jangid(poetess) नयनसी परमार #poetrys#shayari#stories#

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 9 - भोले भगवान हरीश आज इस ज्येष्ठ की दोपहरी में बहुत भटका, बहुत से दफ्तरों के द्वार खटखटाये उसने, अनेक समाचार-पत्रों और दूसरे कार्यालयों में पहुँचा; कितने दिनों से चल रहा है यह क्रम; कौन गिनने बैठा है इसे। विश्वविद्यालय से एम० ए० करके अपने साथ अनेक प्रशंसा पत्र लिये भटक रहा है हरीश। 'काम नहीं है।' उसके लिए! एक एम० ए० के लिए क्या विश्व में कहीं काम नहीं है? वह अकेला है, घर पर और कोई नहीं; घर ही नहीं उसके तो; पर पेट है न! अकेले को भी तो भूख

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
9 - भोले भगवान

हरीश आज इस ज्येष्ठ की दोपहरी में बहुत भटका, बहुत से दफ्तरों के द्वार खटखटाये उसने, अनेक समाचार-पत्रों और दूसरे कार्यालयों में पहुँचा; कितने दिनों से चल रहा है यह क्रम; कौन गिनने बैठा है इसे। विश्वविद्यालय से एम० ए० करके अपने साथ अनेक प्रशंसा पत्र लिये भटक रहा है हरीश। 'काम नहीं है।' उसके लिए! एक एम० ए० के लिए क्या विश्व में कहीं काम नहीं है? वह अकेला है, घर पर और कोई नहीं; घर ही नहीं उसके तो; पर पेट है न! अकेले को भी तो भूख

Vijay Kumar Mishra

आवारा दिल #Love #aawaradil

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#आवारा दिल
तू पूस की सर्द रातों जैसी
मैं जेठ की गर्म दोपहरी जैसा
ना तू मेरे जैसी ना मैं तेरे जैसा

फिर भी क्यूँ तुम्हें पाने की जिद है
मैं जानता हूँ कि हम एक नहीं
लेकिन ये सिर्फ दिमागी ख्याल है
ख्याले दिल नहीं

मैं जितने तेरे करीब आऊं
तू उतनी दूर जाती है
मानो तुम मुट्ठी भरी रेत हो
जिसे मैं जितनी जोर से पकड़ूँ
वो उतनी तेज फिसलती है।

फिर भी ये मेरी जिद है
पूस की सर्द रात जेठ की गर्म दोपहरी से मिले
मिलकर न वो ठंड रहे और ना वो गर्मी
बल्कि एक अलग ही बसंत हो जाय। आवारा दिल #love #aawaradil

Anil Siwach

39 - नटखट || श्री हरि: || #Books

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39 - नटखट 
 || श्री हरि: ||
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