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hasmukh.namdev

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खाई होगी मिठाईया बहुत पर इन पेड़ों के जैसी बात कहा,
स्वाद इनका ला जबाब,ओर मिठाइयों में ऐसा स्वाद कहा।

खाकर इनको लोग अक्सर ,रसगुल्ले भी भूल जाते है,
हर तीज त्योहारों पर रज्जु चाचा के पेड़े ही मंगाते है।

घर आये महमान जब मिठाई में पेड़े खाते है,
जाते बक्त वो अपने साथ पेड़े ही ले जाते है।

स्बाद की तो बात ना पूछो बड़े स्वादिष्ट पेड़े बनाते है ,
रज्जु काका भी क्या कमाल के पेड़े बनाते है।

शिवपुर की होटलो पर तो कई जगह पेड़े नजर आते है,
सीताराम गुरुजी के पेड़े मिठाइयो के राजा कहलाते है।

ना भाएंगे पेठे आगरा के ना भायेगी राजिस्थानी मिठाई,
एक बार खाकर तो देखो शिवपुर के पेड़े मेरे भाई।

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 49 - सेवक नहीं गोप-बालक जब भी दो दल बनाकर खेलना चाहते हैं, एक दल के अग्रणी दाऊ होगें और उनके सम्मुख दूसरे दल में विशाल ही आ सकता है; क्योंकि शरीर में वही दाऊ के समान है। कन्हाई और श्रीदाम की जोडी है। श्याम सदा विशाल के साथ रहता है। श्रीदाम को दाऊ के साथ रहना है। भद्र चाहे तो भी नन्दनन्दन उसे दूसरे पक्ष में जाने नहीं दे सकता। यह तो जब दो दल बनने लगेगें तभी पुकारेगा - 'मैं भद्र के साथ रहूंगा। सुबल, तोक मेरे साथ रहेगें।' फलत: भद्र की जोड़ में ऋषभ को और तोक के सम्मुख अंशु को दुसरे पक

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।।श्री हरिः।।
49 - सेवक नहीं

गोप-बालक जब भी दो दल बनाकर खेलना चाहते हैं, एक दल के अग्रणी दाऊ होगें और उनके सम्मुख दूसरे दल में विशाल ही आ सकता है; क्योंकि शरीर में वही दाऊ के समान है।

कन्हाई और श्रीदाम की जोडी है। श्याम सदा विशाल के साथ रहता है। श्रीदाम को दाऊ के साथ रहना है। भद्र चाहे तो भी नन्दनन्दन उसे दूसरे पक्ष में जाने नहीं दे सकता। यह तो जब दो दल बनने लगेगें तभी पुकारेगा - 'मैं भद्र के साथ रहूंगा। सुबल, तोक मेरे साथ रहेगें।' फलत: भद्र की जोड़ में ऋषभ को और तोक के सम्मुख अंशु को दुसरे पक

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 31 - नटराज कन्हाई से पूछो कि 'तू अमुक काम का सकता है?' तो इसका एक ही उत्तर है - 'कर दूँ?' इसको 'ना' करना नहीं आता! आज वन में आकर जब भद्र की दृष्टि बन्दरों के यूथपति पर पडी तो वह पूछ बेठा - 'कनूँ! तू उस मोटे बन्दर को वैसे नचा सकता है जैसे कल मदारी अपने बन्दर को नचाता था?' 'उससे अच्छा नचाऊँगा। नचाऊँ?' कन्हाई ताली बजाकर प्रसन्न हो गया। 'कैसे नचावेगा? तेरे पास डमरू कहाँ है?' मधुमंगल ने छेड़ा।

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।।श्री हरिः।।
31 - नटराज

कन्हाई से पूछो कि 'तू अमुक काम का सकता है?' तो इसका एक ही उत्तर है - 'कर दूँ?' इसको 'ना' करना नहीं आता! आज वन में आकर जब भद्र की दृष्टि बन्दरों के यूथपति पर पडी तो वह पूछ बेठा - 'कनूँ! तू उस मोटे बन्दर को वैसे नचा सकता है जैसे कल मदारी अपने बन्दर को नचाता था?'

'उससे अच्छा नचाऊँगा। नचाऊँ?' कन्हाई ताली बजाकर प्रसन्न हो गया।

'कैसे नचावेगा? तेरे पास डमरू कहाँ है?' मधुमंगल ने छेड़ा।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 11 - गोपाल 'कनूँ तू देवता है?' 'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे। पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।

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|| श्री हरि: || 
11 - गोपाल
'कनूँ तू देवता है?'

'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे।

पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।


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