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सुमित शर्मा

#DCF

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वेदनाओं के भँवर में 
           घूमता अक्सर रहा मैं
किंतु ये मालूम था कि
               वेदनाएँ मुक्त होंगी
और फिर किसलय खिलेंगी

अपेक्षाओं के जगत में
               संभाव्यता भी खत्म थी
किंतु ये मालूम था कि
                   उपेक्षाएं मुक्त होंगी
और फिर किसलय खिलेंगी

वे छण अभी तक याद है
                जब पाँव मेरे दग्ध थे
किंतु ये मालूम था कि
               वे मरुस्थल मुक्त होंगी
और  फिर किसलय खिलेंगी

मैं ही विष था,मैं मरुस्थल
               मैं ही खुद का शत्रु था
किंतु ये मालूम था कि
              ये शत्रुता भी मुक्त होगी
और फिर किसलय खिलेंगी||

😊 मुस्कुराते रहिए 😊
        
✍️ सुमित #DCF

"निश्छल किसलय" (KISALAY KRISHNAVANSHI)

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लगता है धरा श्रृंगार किये बैठी
ओढ़कर कर धानी चुनर दमकती 
मुख पर लालिमा बिखरी किसलय से 
बालों को महकाती मस्त हवा बसंती, 
क्या कंचन काया,और मृगनयनी मूरत 
"निश्छल" मुस्कान जमी अधरों पर 
उल्लसित सब नभ,जल ,खग,विहाग 
किरण बिखरती  स्वर्णिंम लहरों पर
करने को आतुर स्वागत नव ऋतू का
 अंचल पर उषा की सुर्ख अरुणिमा ,
माथे पर ओस की चांदी सा गहना 
बिखरी नभ में किरणों की लालिमा

 "किसलय कृष्णवंशी "निश्छल"

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 52 - सखा सत्कार कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है। कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपह

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।।श्री हरिः।।
52 - सखा सत्कार

कन्हाई की वर्षगांठ है। इस जन्मदिन का अधिकांश संस्कार पूर्ण हो चुका है। महर्षि शाण्डिल्य विप्रवर्ग के साथ पूजन-यज्ञादि सम्पन्न कराके, सत्कृत होकर जा चुके है। गोपों ने, गोपियों ने अपने उपहार व्रजनव-युवराज को दे दिये हैं। अब सखाओं की बारी है।

कन्हाई के सखा भी उपहार देगें; किन्तु ये गोपकुमार तो अपने अनुरूप ही उपहार देने वालें हैं। रत्नाभरण, मणियाँ, बहुमूल्य वस्त्र, नाना प्रकार के खिलौने तो बड़े गोप, गोपियाँ - दुरस्थ गोष्ठों के गोप भी लाते हैं; किन्तु गोपकुमारों का उपह

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 26 - सेवा इस कन्हाई की सेवा ही सबसे अटपटा काम है। इसने तो जैसे छठी में से सीखा है कि सेवा इसी को करनी है - सबकी करनी है और इसकी सेवा करने का प्रयत्न करो तो ऐसे टरका देता है कि मत पूछो बात। धर-पकड कर इसकी सेवा करनी पड़ती है। नन्हा था तब से बाबा के कहने से पूर्व उनके वस्त्र लोटा या लकुट अथवा दोहनी सिर पर रख कर उसके पास पहुंचता था - 'बाबा! तुम स्नान करोगे? पूजा करोगे? गोचारण को जाओगे। गाय दुहोगे?' जब इसे जो सूझ जाय तब मानो बाबा को वही करना है। कोई ऋषि-मुनि या ब्राह्माण भवन में पध

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|| श्री हरि: ||
26 - सेवा

इस कन्हाई की सेवा ही सबसे अटपटा काम है। इसने तो जैसे छठी में से सीखा है कि सेवा इसी को करनी है - सबकी करनी है और इसकी सेवा करने का प्रयत्न करो तो ऐसे टरका देता है कि मत पूछो बात। धर-पकड कर इसकी सेवा करनी पड़ती है।

नन्हा था तब से बाबा के कहने से पूर्व उनके वस्त्र लोटा या लकुट अथवा दोहनी सिर पर रख कर उसके पास पहुंचता था - 'बाबा! तुम स्नान करोगे? पूजा करोगे? गोचारण को जाओगे। गाय दुहोगे?' जब इसे जो सूझ जाय तब मानो बाबा को वही करना है।

कोई ऋषि-मुनि या ब्राह्माण भवन में पध

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 11 - गोपाल 'कनूँ तू देवता है?' 'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे। पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।

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|| श्री हरि: || 
11 - गोपाल
'कनूँ तू देवता है?'

'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे।

पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 69 - सेवा 'दादा, तू सुबल की गोद में सिर रखकर सो जा।' कन्हाई को जब जो धुन चढ गयी, अपनी धुन तो वह पूरी ही करेगा। अपने बडे़ भाई का हाथ पकडकर यह खीचने लगा है। स्वयं अपने हाथों इस तमाल के नीचे किसलय तथा कुसुमदल बिछाकर शय्या बनायी है बड़े श्रम से इसने। अब उस श्रम को सफल भी तो होना चाहिए। 'क्यों?' दाऊ ने पूछ लिया। 'तू थक गया है। देख मैंने तेरे लिए कितनी सुंदर शय्या बनायी है।' कितना बढिया तर्क है। श्याम ने शय्या बनायी है इसलिए दाऊ थक गया है।

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|| श्री हरि: ||
69 - सेवा

'दादा, तू सुबल की गोद में सिर रखकर सो जा।' कन्हाई को जब जो धुन चढ गयी, अपनी धुन तो वह पूरी ही करेगा। अपने बडे़ भाई का हाथ पकडकर यह खीचने लगा है। स्वयं अपने हाथों इस तमाल के नीचे किसलय तथा कुसुमदल बिछाकर शय्या बनायी है बड़े श्रम से इसने। अब उस श्रम को सफल भी तो होना चाहिए।

'क्यों?' दाऊ ने पूछ लिया।

'तू थक गया है। देख मैंने तेरे लिए कितनी सुंदर शय्या बनायी है।' कितना बढिया तर्क है। श्याम ने शय्या बनायी है इसलिए दाऊ थक गया है।


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