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VATSA
गाँव की वो अल्हड़ सड़क रिझाती बहुत हैं शहर की ये टेढ़ी गालियां गिराती बहुत हैं सोने दो, अभी .. आज जगाना ज़रूरी है क्या सब कुछ बोल कर बताना ज़रूरी है तुम्हारी दुनिया कबूलनामे से डराती बहुत है आजकल प्यार के तरीक़े भी चुराती बहुत है हर ग़ज़ल का मतला सिखाना ज़रूरी है क्या सब कुछ बोल कर बताना ज़रूरी है माना राहे फ़िराक़ मुझको तड़पाती बहुत है मुसलसल वस्ल की वो रात रुलाती बहुत है हर रोज मुझे आइना दिखाना ज़रूरी है क्या सब कुछ बोल कर बताना ज़रूरी है #मूक #vatsa #yqbaba #yqhindi #dsvatsa #illiteratepoet #hindvi #hindavi गाँवकी वो अल्हड़ सड़क रिझाती बहुत है शहर की ये टेढ़ी गालियाँ गिराती बहुत है सोने दो अभी मुझे आज जगाना ज़रूरी है ? क्या सब कुछ बोल कर बताना ज़रूरी है ? तुम्हारी दुनिया कबूलनामे से डराती बहुत है
Priyanka Gahalaut
सुनो!!महसूस करोगे ना,, हज़ार प्रेमिल एहसास लिए होता है मूक गुलाब!! ©Priyanka Gahalaut #Rose #गुलाब #मूक
चारण गोविन्द
#मूक-घटनाएँ "दुनियाँ के लोगो ने देखो, इक अज़ब सी रीत चलायी, जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर परायी, आफ़ताब के तप को जाने, कौन कहाँ तक समझ सकेगा, अमावसी के तम की पीड़ा, कौन हृदय कवि उकर सकेगा, सब जानना दुःख पाना है, अच्छी है कुछ चुप घटनाएँ, कवि मर्म जिन्हें रखना चाहे, होती है कुछ ऐसी रचनाएँ।" #चारण_गोविन्द #चुप_घटनाएँ #चारण_गोविन्द #CharanGovindG #govindkesher #Texture
Mangal Singh
90 का #दूरदर्शन और हम : 1.सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना 2."#रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना 3."#जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना 4."#चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर अंत तक देखना 5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना 6.शनिवार और रविवार की शाम को #फिल्मों का इंतजार करना 7.किसी नेता के मरने पर कोई #सीरियल ना आए तो उस नेता को और गालियाँ देना 8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना 9."#मूक-#बधिर"समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नक़ल करना 10.कभी हवा से #ऐन्टेना घूम जाये तो छत पर जा कर ठीक करना बचपन वाला वो '#रविवार' अब नहीं आता, दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता। जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना #घडी देखे, अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता। बचपन वाला वो '#रविवार' अब नहीं आता...।।। वो #साईकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।। #जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुथियाँ, उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।। वो '#मोगली' वो '#अंकल Scrooz', '#ये जो है जिंदगी' '#सुरभि' '#रंगोली' और '#चित्रहार' अब नहीं आता...।।। #रामायण, #आलदिन#महाभारत#का वो चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। वो #एक रुपये किराए की साईकिल लेके, दोस्तों के साथ गलियों में रेस लगाना! अब हर वार 'सोमवार' है काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे; बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की बात का इज़हार नहीं हो पाता। बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।। बचपन वाला वो '#रविवार' अब नही आता...।।। 🙂🙏m&p #seaside
Deep Kushin
Sad love quotes in Hindi मूक बोलो, जिसे मैं सह रहा हूं वो तुम्हें भी सता रहा है क्या, जो महसूस मैं कर रहा हूं वो तुम्हें भी हो पा रहा है क्या? जिसे मैं बोल नहीं पा रहा उसको समझ रहे हो क्या, जैसे मैं असहज हूं वो असहजता तुम्हें भी हो रही है क्या? या बस मैं ही इसे महसूस कर रहा हूं? अपने जख्मों को खुद ही धूल रहा हूं? क्या सच में मैं इतना बुरा बन गया? जो आज तक नहीं हुआ वो एक पल में हो गया! क्या सच में मैं इस लायक हूं? दुःख और क्लेश का परिचायक हूं! क्या वास्तव में दंड का भागी हूं मैं? क्या अंधेरे का अनुरागी हूं मैं? क्या सच में मैं एकाकी हूं! अकेलेपन का साखी हूं? बोलो, तुम साथ तो मेरे हो न? आहत में हूं मैं,अपना साथ तो दो न, कह दो कि एकाकी नहीं हूं मैं चुप हो!क्या मानूं?क्या वास्तव में सही हूं मैं! उचित नहीं मित्याचरण करना शायद खुद का ही मैं दोषी हूं, सजा मुकम्मल हुई मुझको हद्द से ज्यादा जो रोषी हूं। स्वीकार हैं ये दिन भी मुझे इसको भी काटा जाएगा, हितैषी किसी का कहां हूं मैं जो मेरे गम को बांटा जाएगा। अधिकारी हूं इसका ही मैं पूर्वानुमान जो लगाया था, गर चुप होता तो बेहतर था पहले तुम सबका जो शाया था। सब कुछ गवां के बैठा हूं ये मन अब बहुत अशांत है, पीड़ा अत्यंत भयंकर है चेतना तक मेरी अब क्लांत है। #मूक
NC
मूक रहकर देखो जरा दुनिया का तमाशा पूछो ज़रा दरखतों से उनकी हताशा चलती है मूक पर कुल्हाड़ी बेतहाशा सामर्थ्यवान की होती पूरी अभिलाषा.... #nojotohindi#मूक#कविता#poetry
drdeoshinde48
😍##नसलेल्या आजोबांच असणार प्रेम##😍 नेहमी जेवताना आजोबा माझे लाड करत असत मला आपल्या ताटातला घास नेहमी भरवत असत जेवता जेवता मधेच थांबत असत आणि एक भला मोठा ढेकर देत असत मी म्हणायची रागवून आजोबा हे काय करताय तुम्ही आजोबांचं त्यावर उत्तर असायचं हसून अग पोरी मी फक्त ढेकर देतोय आता घरी गेल कि आजोबाच्या धुरकट खोलीत फक्त आठवणी आठवतात आणि माझं आठवणीतलं हसरं जग मूक मूक करून जातात आजोबांना पडलं होतं भलंमोठं टक्कल मग आजोबा म्हणायचे ज्याला असत टक्कल त्यालाच असते जास्त अक्कल मी खिजवून म्हणायचे आजोबा म्हणजे यमकासाठी तुम्ही आता काहीही लढवणार का शक्कल आता घरी गेल कि आजोबाच्या धुरकट खोलीत फक्त आठवणी आठवतात आणि माझं आठवणीतलं हसरं जग मूक मूक करून जातात आजोबा आपल्याच नादात नेहमी गात असत गाता गाता मधेच थांबून स्वतःशीच गोड हसत असत मी जवळ गेले की मला म्हणत पोरी मी सांगतो ते ध्यानात ठेव एकटं एकटं जाता आलं पाहिजे आणि स्वतःला स्वतःशीच गाता आलं पाहिजे मी गोंधळून जात असे आणि विचारात असे म्हणजे काय मग आजोबा मोठ्याने हसत असत आणि बोलत म्हणजे काय? म्हणजे काय? इवलीशी तू आणि इवलेशे तुझे पाय आता घरी गेल कि आजोबाच्या धुरकट खोलीत फक्त आठवणी आठवतात आणि माझं आठवणीतलं हसरं जग मूक मूक करून जातात मी म्हणे आजोबा एक गोष्ट विचारु? हा पोरी बोल आजोबा तुम्हांला मैत्रिणी होत्या का हो? वा! वा! होत्या म्हणजे होत्याच की एक ती अशी होती दुसरी ती तशी होती अशी आजोबाशी नेहमी मस्ती चालत होती इतक्यात खोलीत आजी यायची, आणि आजोबांची जीभ एकदम बोबडी व्हायची आणि आजोबा चटकन विषय बदलायचे घसा खाकरत म्हणायचे आता मी तुला शिकवतो गाणे कसे म्हणायचे आता घरी गेल कि आजोबाच्या धुरकट खोलीत फक्त आठवणी आठवतात आणि माझं आठवणीतलं हसरं जग मूक मूक करून जातात आजोबा संध्याकळी अंगणात खुर्चीवर एकटेंच बसत एकटक डोळे लावून दूर कुठे बघत असत दूरदूरच्या ढगात असत कुठल्या तरी न दिसणा-या जगात असत पाय न वाजवता मी हळूच तिथे जाई त्यांच्या आरामखुर्ची मागे उभी राही काय बघत असतील हे मी दूर पाही मला वेगळं काहीसुध्दा दिसत नसे मग मी हळूच हाताने त्यांचे डोळे बंद करत असे हि आहे माझी परी कारण हे हात आहेत इवलेशे मग मी हसत असे आणि ते माझी पप्पी घेत असे आता घरी गेल कि आजोबाच्या धुरकट खोलीत फक्त आठवणी आठवतात आणि माझं आठवणीतलं हसरं जग मूक मूक करून जातात aajoba😍
aajoba😍
read moreकवि नितेश उपाध्याय "अतिशीघ्र"
#OpenPoetry मूक बने क्यों बैठे हो,अपने ही कर्तव्य पथ पर या भ्रम पाल कर बैठे हो अपने ही स्थिरतप पर अरे क्यों अज्ञानी बनते हो जब स्वयं ऊर्जावान हो तुम । फिर क्यों संज्ञान नहीं ले पाते भोगी अधर्मी नृप पर । ये तो वही संत्री है जो नीच निति से ग्रस्त है संपूर्ण सीमाएं देश की इनकी बीती से त्रस्त है इनका अत्याचार तुम पर सबसे श्रेष्ठ शश्त्र है क्या विश्वास पाल बैठे हो ऐसे विषधर,सृप पर मूक बने क्यों बैठे हो अपने ही कर्तव्य पथ पर #अतिशीघ्र #अतिशीघ्र,राजनीती कर्ताक्ष
#अतिशीघ्र,राजनीती कर्ताक्ष
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