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प्रथमेश विशाल
काफ़ी पहले एक पोस्ट पढ़ी जो ख़ासकर लड़कियो को संबोधित करते हुए थी "ब्रेकअप के बाद कैसे रहे..हम ब्रेकअप के बाद और ज़्यादा खुश रहेंगे, और ज़्यादा फ़ैशन से रहेंगे, पहले से ज़्यादा घूमेंगे, अच्छे कपड़े पहनेंगे, एक्सरसाइज़ करेंगे, और ज़्यादा मस्ती करेंगे वगैरह वगैरह.. मुझे सैफ़ अली खान की फिल्म 'लव आज कल' की याद आ गई। दीपिका पादुकोण से बाकायदा हंसी खुशी ब्रेकअप होता है। इस तरह के ब्रेकअप का भी कोई नाम होता है फ़िलहाल याद नही आ रहा। सैफ़ नया- नया आफिस ज्वाइन करता हैं। पहले से ज़्यादा खुश रहता है। वीडियो गेम खेलता है, अच्छे से तैयार होकर आफिस जाने वाली बस दौड़कर पकड़ता है बस में सभी लोगों से हाय हैल्लो करता है। आफिस में खुश रहता है। क्लब जाता है। लेकिन यह प्रायोजित ड्रामा ज़्यादा दिन नहीं चलता। वीडियो गेम में झुंझलाहट होने लगती है। सर झुकाकर बस पर चढ़ जाता है। आफिस में बेमन से काम करने लगता है। घर आकर चुपचाप बैठ जाता है। कुल मिलाकर उसे दीपिका की तगड़ी वाली याद आने लगती है। तगड़ी वाली याद तो आप समझते ही होंगे, जिसमे मर्द भी फूट फूट कर रोता है। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि हर चीज़ प्लानिंग से नहीं चलती। कितना भी टारगेट सेट करो, किसी रात तो आँख से सब टारगेट पानी की तरह बह जाना है, दोस्त कुछ दिन ही दिल को बहला सकते हो, कौन नहीं चाहता ब्रेकअप के बाद खुश रहे लेकिन दिल से मजबूर होता है। #girlsdiary #girlsrelation #girlslove #girliyapa #girlsbreakup #brokenangels #faiq ❤️🙏
#girlsdiary #girlsrelation #Girlslove #girliyapa #girlsbreakup #brokenangels #faiq ❤️🙏
read moreSatya Prakash Upadhyay
HappyBdayPMModi,मित्रों आप सब तो जानते हीं हैं, मैंने बचपन गरीबी में बिताई है, जब मैं किशोर से युवा हो रहा था ,मेरे मन में हमेशा ये सवाल घूमा करता था कि मैं गरीबों के लिए आख़िर क्या कर सकता हूँ। एक समय ऐसा आया जब मेरे मन में विरक्ति की भावना प्रबल हो गई और मैं घर छोड़कर कहीं चला गया, अब ये मैं अभी नहीं बताऊंगा कि कहाँ चला गया,नहीं तो आपलोग वो फ़ोटो-वीटो कैमरा-वेमरा लेकर सब चले जाइएगा, उनको भी परेशानी होगी।फिर सब बोलेंगे देखो मोदी के पास तो सोने के लिए झोपड़ी भी थी... ,बगल में नदी भी थी .... वगैरह वगैरह.... ख़ैर.. महत्वपूर्ण ये नही है कि हमने जीवन में कितने उतार चढ़ाव देखे,अच्छे बुरे लोग हर जगह देखने को मिल जाते हैं भाई, पर महत्वपूर्ण ये है कि आपने उनसे सीखा क्या? और अगर सीखा तो क्या उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया क्या कभी। अपने इन्हीं अनुभवों को बता कर हमारे पुरखे इतनी समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं, हमे उस पर गर्व भी करना है ,उन्हें आगे वैज्ञानिक आधारों से जोड़ते हुए आगे बढ़ने का निरंतर प्रयास करते रहना है। भारत माता की ... भारत माता की... बहुत बहुत धन्यवाद मित्रों, आप सब तो जानते हीं हैं, मैंने बचपन गरीबी में बिताई है, जब मैं किशोर से युवा हो रहा था ,मेरे मन में हमेशा ये सवाल घूमा करता था कि मैं गरीबों के लिए आख़िर क्या कर सकता हूँ। एक समय ऐसा आया जब मेरे मन में विरक्ति की भावना प्रबल हो गई और मैं घर छोड़कर कहीं चला गया, अब ये मैं अभी नहीं बताऊंगा कि कहाँ चला गया,नहीं तो आपलोग वो फ़ोटो-वीटो कैमरा-वेमरा लेकर सब चले जाइएगा, उनको भी परेशानी होगी।फिर सब बोलेंगे देखो मोदी के पास तो सोने के लिए झोपड़ी भी थी... ,बगल में नदी भी थी .... वगैरह वगैरह....
मित्रों, आप सब तो जानते हीं हैं, मैंने बचपन गरीबी में बिताई है, जब मैं किशोर से युवा हो रहा था ,मेरे मन में हमेशा ये सवाल घूमा करता था कि मैं गरीबों के लिए आख़िर क्या कर सकता हूँ। एक समय ऐसा आया जब मेरे मन में विरक्ति की भावना प्रबल हो गई और मैं घर छोड़कर कहीं चला गया, अब ये मैं अभी नहीं बताऊंगा कि कहाँ चला गया,नहीं तो आपलोग वो फ़ोटो-वीटो कैमरा-वेमरा लेकर सब चले जाइएगा, उनको भी परेशानी होगी।फिर सब बोलेंगे देखो मोदी के पास तो सोने के लिए झोपड़ी भी थी... ,बगल में नदी भी थी .... वगैरह वगैरह....
read moreSatya Prakash Upadhyay
हिंदी दिवस मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं, हाँ सरकारी दफ्तरों के फॉर्म में लिखना पड़ता है, ये बस एक मजबूरी से ज्यादा कुछ भी नहीं। हमारी मातृभाषा को कानूनी दर्ज़ा प्राप्त नही,जबकि इसे बोलने वाले करोडों में हैं,विदेशों में इसे राष्ट्रीय भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है ,पर इसके गंगोत्री में हीं इसे अस्वीकार किया जा रहा है।फ़िल्म ग़दर में सनी देओल का एक फेमस डॉयलोग है, एक... seee more in caption मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं, हाँ सरकारी दफ्तरों के फॉर्म में लिखना पड़ता है, ये बस एक मजबूरी से ज्यादा कुछ भी नहीं। हमारी मातृभाषा को कानूनी दर्ज़ा प्राप्त नही,जबकि इसे बोलने वाले करोडों में हैं,विदेश में इसे राष्ट्रीय भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है ,पर इसके गंगोत्री में हीं इसे अस्वीकार किया जा रहा है।फ़िल्म ग़दर में सनी देओल का एक फेमस डॉयलोग है, एक कागज़ के टुकड़े पर मुहर नही लगेगी तो क्या तारा पाकिस्तान नही जाएगा,इसी तर्ज़ पर ,क्या 8वीं अनुसूची में मेरी मातृभाषा नहीं आएगी तो क्या हम अपनी मातृभाषा को भूल कर
मेरी मातृभाषा हिंदी नहीं, हाँ सरकारी दफ्तरों के फॉर्म में लिखना पड़ता है, ये बस एक मजबूरी से ज्यादा कुछ भी नहीं। हमारी मातृभाषा को कानूनी दर्ज़ा प्राप्त नही,जबकि इसे बोलने वाले करोडों में हैं,विदेश में इसे राष्ट्रीय भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है ,पर इसके गंगोत्री में हीं इसे अस्वीकार किया जा रहा है।फ़िल्म ग़दर में सनी देओल का एक फेमस डॉयलोग है, एक कागज़ के टुकड़े पर मुहर नही लगेगी तो क्या तारा पाकिस्तान नही जाएगा,इसी तर्ज़ पर ,क्या 8वीं अनुसूची में मेरी मातृभाषा नहीं आएगी तो क्या हम अपनी मातृभाषा को भूल कर
read moreMuqeem Shadab
उस प्यार और दोस्ती वाले प्यार में खास अंतर क्या होता है? उस प्यार में लालच और शक होता है, इसने ऐसा क्यों किया, वैसा क्यों नहीं किया, मेरा फ़ोन क्यों नहीं उठाया, देर से क्यों आया वगैरह वगैरह... दोस्त वाले प्यार में ख्याल फिकर और बिना किसी लालच की मोहब्बत होतो है, अगर आप उसकी कॉल ना पिक करें तब भी कोई नाराज़गी नहीं. बंदा तब भी पूछेगा यार कोई दिक्कत या परेशानी तो नहीं, फ़ोन क्यों नहीं रिसीव किया कॉल क्यों काट दिया.
read moreDeep Srivastava
प्यार का वो पहला एहसास , एक एहसास जिसके बारे में सुना तो बहुत कुछ था पर कभी मानता नहीं था मगर जब मुझे वो एहसास हुआ तब समझ आया कि वो बाते जो मैंने सुनी थी वो सच थीं प्यार का वो पहला एहसास था ही इतनी खूबसरत की लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूं मगर कुछ भी लिख नहीं पा रहा एक ऐसा अहसास जिसने सब कुछ बदल दिया मेरे जीने का तरीका , मेरे रहने का ढंग मेरे सोचने का तरीका ,यहां तक कि मेरी भावनाएं कभी सोचा भी नहीं था कि कभी इतना हंस भी पाऊंगा या मै कभी रोऊंगा भी , या फिर किसी की यादों को संजों कर रखूंगा अपने पास , किसी के इंतजार में अपना वक़्त खाली बैठे बैठे बिताऊंगा । सुना था जब किसी से प्यार होता है तो हवाएं चलने लगती है बारिश होने लगती है वगैरह वगैरह ऐसा तो नहीं हुआ मगर हां उन हवाओं , उन बारिश कि बूंदों को महसूस करना जरूर आ गया । ऐसा नहीं था कि पहले कभी बारिश नहीं हुई या हवाएं नहीं चली ... मगर उस एहसास के बाद जैसे उन बारिशों उन हवाओं के पास से गुजरने के मायने ही बदल गए ऐसा मालूम पड़ता था कि जैसे बहती हवा के साथ उसके पास होने का अहसास होने लगा था हर एक छोटी सी बात हर एक जज्बात को महसूस करने लगा था कुछ अच्छी बात होती थी तो हंसने लगा था कभी कोई दुख हुआ तो रोने लगा था शायद बहुत कुछ बदल गया था प्यार के उस पहले एहसास के बाद । #पहलाएहसास
Rakesh Kumar Dogra
कभी कभी सोचता हूं कि धर्म कपना काम ठीक से नहीं कर रहा है। पर दरअसल ये जो धर्म चलाने वाले हैं वो जब खुदा हो जाएं दिक्कत वहीं से शुरू होती है। ईश्वर, अल्लाह और ईसा वगैरह वगैरह को एक मानकर अगर व्याख्या की जाए तो कोई परेशानी नहीं है। परमात्मा की परमात्मा से प्रतिस्पर्धा! हास्यास्पद है। ओ आदि मानव ! हम नंगे ही अच्छे थे। वस्त्र हुए तो चीरहरण होने थे। #NojotoQuote
Rakesh Kumar Dogra
अपभ्रंश - बिगड़ा हुआ (corrupt) छत का अपभ्रंश कोठा है, वो भी खूबसूरत है "टोटा" है। (टोटा शब्द के कई मायने हैं जैसे टुकड़ा, थान का आखिरी बचा हुआ पीस, किसी सुन्दर लड़की के लिए सम्बोधन, सबसे बारीक टूटे हुए चावल/टोटा चावल वगैरह वगैरह। अपभ्रंष* हमेशा बोलने में आसान होता है tongue friendly होता है।
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