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SK Poetic
न हाथ एक शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो न अन्न वीर वस्त्र हो हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। रहे समक्ष हिम-शिखर तुम्हारा प्रण उठे निखर भले ही जाए जन बिखर रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकूट हो वही सुधा का घूंट हो जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। गगन उगलता आग हो छिड़ा मरण का राग हो लहू का अपने फाग हो अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। चलो नई मिसाल हो जलो नई मिसाल हो बढो़ नया कमाल हो झुको नहीं, रूको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। अशेष रक्त तोल दो स्वतंत्रता का मोल दो कड़ी युगों की खोल दो डरो नहीं, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। ©S Talks with Shubham Kumar बढ़े चलो बढ़े चलो – सोहनलाल द्विवेदी #achievement
बढ़े चलो बढ़े चलो – सोहनलाल द्विवेदी #achievement #कविता
read moreGarima Mahnot Jain
अपने आप को कम मत आंको तुम, कोशिशें अपनी ज़ारी रखो तुम। नमस्ते लेखको । कोलाब करे Pen n Popcorn के साथ और जोड़े अपने सुनहरे शब्द सोहनलाल द्विवेदी जी की कविता में । #pnphindipoet4 #pnphindi #pennpop
नमस्ते लेखको । कोलाब करे Pen n Popcorn के साथ और जोड़े अपने सुनहरे शब्द सोहनलाल द्विवेदी जी की कविता में । #pnphindipoet4 #pnphindi pennpop #YourQuoteAndMine #collabwithpnp #pennpopcorn #366dayschallengesp #pnp041120
read moreओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
कविवर -----सोहनलाल जी चौधरी मुलत:अरर ् ""पन्ना काळी वाँ ढळतोडी माँझळ रात नैनो सो उदियो ले साथ चित्तौड दुर्ग सुँ ऐकळी चली"",,,,,,,,,,कोमल मृद
कविवर -----सोहनलाल जी चौधरी मुलत:अरर ् ""पन्ना काळी वाँ ढळतोडी माँझळ रात नैनो सो उदियो ले साथ चित्तौड दुर्ग सुँ ऐकळी चली"",,,,,,,,,,कोमल मृद
read moreओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
कवि हद्रय बहुत ही सुँदर होता है--- कवि हमेशा मानव प्रेमी होता है,,वह किसी राष्ट्र विशेष का नही होता है जब काव्यिक मंच पर""""एक साथ (अकबर त
कवि हद्रय बहुत ही सुँदर होता है--- कवि हमेशा मानव प्रेमी होता है,,वह किसी राष्ट्र विशेष का नही होता है जब काव्यिक मंच पर""""एक साथ (अकबर त #nojotophoto
read moreRajendra Kumar Bag
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलत
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलत
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