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Stories related to देवतुल्य

Arora PR

देवतुल्य प्रतिमा

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अदनासा-

J.P. BABBU

मा. प्रधानमंत्री #श्री_नरेंद्र_मोदी_जी, मा. #श्री_अमित_शाह_जी के नेतृत्व एवं केंद्र व प्रदेश सरकार की जनकल्याण योजनाओं विकास कार्यों तथा देव

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 मा. प्रधानमंत्री #श्री_नरेंद्र_मोदी_जी, मा. #श्री_अमित_शाह_जी के नेतृत्व एवं केंद्र व प्रदेश सरकार की जनकल्याण योजनाओं विकास कार्यों तथा देव

sandy

आपल्या भावनानां व्यकत करण्यापेक्षा , आपल्यांच्या भावनानां समजण महत्त्वाच असत, कारण, भावनानां व्यकत करणारे नेहमी आठवत असले तरी, भावनानां समज

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 आपल्या भावनानां व्यकत करण्यापेक्षा , आपल्यांच्या भावनानां समजण महत्त्वाच असत,
 कारण, भावनानां व्यकत करणारे नेहमी आठवत असले तरी, भावनानां समज

Seema Katoch

चुप मत रहना बेटी,बहन और माता हो अनगिनत वीर पुरुषों की तुम जन्मदाता हो, सृजनकर्ता हो हो देवतुल्या तुम… पर तुम्हारे होने पर जब प्रश्नचिन्ह लगन

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#चुप मत रहना#
चुप मत रहना
बेटी,बहन और माता हो
अनगिनत वीर पुरुषों की
तुम जन्मदाता हो,
सृजनकर्ता हो
हो देवतुल्या तुम…
पर तुम्हारे होने पर
जब प्रश्नचिन्ह लगने लगे,
वजूद ही तुम्हारा अखरने लगे…
तुम प्रतिकार करना
चुप मत रहना…..

त्याग और सहनशीलता की
माना प्रतिमूर्त हो तुम…
और अलंकृत हो,लाज ,शर्म से…
पर धीरज तुम्हारा जब खोने लगे,
और ये श्रृंगार बोझ लगने लगे…
तुम प्रतिरक्षा करना
चुप मत रहना….

विधाता की श्रेष्ठ रचना
अनुपम कृति ,
अमूल्य उपहार हो तुम,
पर तुम पर अगर वार हो
और होने लगे अत्याचार…
तुम प्रतियुध करना
चुप मत रहना….
 चुप मत रहना
बेटी,बहन और माता हो
अनगिनत वीर पुरुषों की
तुम जन्मदाता हो,
सृजनकर्ता हो
हो देवतुल्या तुम…
पर तुम्हारे होने पर
जब प्रश्नचिन्ह लगन

Rameshwer Meghwal

वह अटल अजातशत्रु वह राजनीति का वैभव जा रहा है हवाओं रास्ता दो मेरा भारत रत्न मेरा जननायक जा रहा है वो जब बोलता था तब लोग मंत्रमुग्ध होकर सु

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 वह अटल अजातशत्रु वह राजनीति का वैभव जा रहा है
हवाओं रास्ता दो 
मेरा भारत रत्न मेरा जननायक जा रहा है
वो जब बोलता था तब लोग मंत्रमुग्ध होकर सु

Poetry with Avdhesh Kanojia

#दशहरा #victory #सत्य #धर्म #Ram #ravan poetry अंदर के रावण का अंत प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भ

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अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

अभिमान क्रोध व निरंकुशता
होते पतन के द्वार हैं।
इन असाधारण रोगों का बस
एक प्रेम ही उपचार है।
निष्ठुरता रूपी उलूक बैठा
जो मन रूपी टहनी पे है।
उड़ा देना है उसे भी
ज्ञान दृष्टि पैनी से है।
कर्म निंदित हैं जहर से 
इनसे डरना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

वन्दनीया नारी है सो
सम्मान का भी भान हो।
हर नर में हर आभास हों
व दूर सब अज्ञान हो।
बन्धु भगिनी देवतुल्य से
ये सभी के विचार हों।
वृद्धजन पूजित रहें और
सत्य कटु स्वीकार हों।
सार्वभौम सौहार्द्र हो व
स्वार्थ तजना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।



 #दशहरा #victory #सत्य #धर्म #ram #ravan #poetry 

अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भ

Poetry with Avdhesh Kanojia

अंदर के रावण का अंत प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। अभिमान क्रोध व निरंकुशता

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अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

अभिमान क्रोध व निरंकुशता
होते पतन के द्वार हैं।
इन असाधारण रोगों का बस
एक प्रेम ही उपचार है।
निष्ठुरता रूपी उलूक बैठा
जो मन रूपी टहनी पे है।
उड़ा देना है उसे भी
ज्ञान दृष्टि पैनी से है।
कर्म निंदित हैं जहर से 
इनसे डरना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

वन्दनीया नारी है सो
सम्मान का भी भान हो।
हर नर में हर आभास हों
व दूर सब अज्ञान हो।
बन्धु भगिनी देवतुल्य से
ये सभी के विचार हों।
बृद्धजन पूजित रहें और
सत्य कटु स्वीकार हों।
सार्वभौम सौहार्द्र हो व
स्वार्थ तजना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

✍️अवधेश कनौजिया© अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

अभिमान क्रोध व निरंकुशता

Pravin Tripathi

_*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1*

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_*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ 

 *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* 
 *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1* 

 *संतति को देता सदा, गहन वृक्ष सम छाँव।* 
 *कष्ट न हो संतान को, खुद लग जाता दाँव।।2* 

*पर्दे के पीछे करे, संतति के सब काम।*
*देकर उनको हर खुशी, करता वह विश्राम।।3*

*जीवन की हर जटिलता, करता रहता  दूर।*
*बिन पाले वह लालसा, दे ख़ुशियाँ भरपूर।।4*

*संकट यदि हो सामने, बन जाता दीवार।*
*दृढ़ता से वह हो खड़ा, सह लेता हर वार।।5*

*सही गलत में फर्क कर, दिखलाता वह राह।*
*बच्चे गलती मत करें, इतनी रखता चाह।6*

 *ऊपर से वह शुष्क अरु, दिखता बहुत कठोर।* 
 *अंदर सागर नेह का, लेता सदा हिलोर।।7* 

 *प्रेम प्रदर्शन कर सके, पितु का नहीं स्वभाव।* 
 *आवश्यकता पूरी करे, खुद सह सर्व अभाव।।8* 

*अनुशासन की नींव को, पिता करे मजबूत।*
*संयम से कैसे जियें, दे खुद नित्य सुबूत।।9*

*शुद्ध विचारों से सदा, जीवन बने पवित्र।*
*देकर दंड उलाहना, संयत करे चरित्र।।10*

*मातु पिता समतुल्य हैं, सच्ची है यह बात।*
*दोनो परम अमूल्य हैं, माता हो या तात।।11*

*जीवन के संग्राम में, पिता सदा है साथ।*
*हिम्मत देता है हमें, और पकड़ता हाथ।।12*

*माता संस्कारित करे, समझे अपना अंग।*
*रह अदृश्य हरदम पिता, सदा जिताता जंग।।13*

*बच्चों को शिक्षा दिला, दिखलाता वह  राह।*
*बच्चे बस उन्नति करें, मन में रखता चाह।।14*

*ऋण न चुका पाये कभी, हो कोई संतान।*
*वृद्धावस्था में मिले, बस थोड़ा सा मान।।15*

*प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 16 जून 2019* _*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ 

 *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* 
 *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1*

Divyanshu Pathak

धर्म निरपेक्षता और जातिवाद न मानने वालों की पोल तो इसी बात से खुल जाती है कि ... देश मे प्रत्येक जाति का या समाज का अपना एक संगठन है। अब जो

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देश में हिंसात्मक गतिविधियों का बढ़ना चिंताजनक है।
अपराध,भ्रष्टाचार,दुराचार के बीज बढ़कर दरख़्त हो चुके हैं।
आजादी के बाद जिस भारत की कल्पना की थी।
मुझे तो नही लगता वह ऐसा होगा।
संविधान बना,क़ानून भी बने,
किन्तु न संविधान को व्यवहार में उतारा,
न ही क़ानून को।
धर्मनिरपेक्षता बस बयानबाजी तक ही सीमित रही।
जातिवाद, धार्मिक उन्माद, और कट्टरता बढ़ती गई।
हम भले ही कहते फिरते हों कि हम नही मानते जातिवाद,
हम सभी धर्मों का समान सम्मान करते है।
मुझे तो लगता है यह सब बातें स्कूल तक ही सीमित रह गईं। धर्म निरपेक्षता और जातिवाद न मानने वालों की पोल तो इसी बात से खुल जाती है कि ...
देश मे प्रत्येक जाति का या समाज का अपना एक संगठन है।
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