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Parasram Arora
White आखिर ऐसा क्यों हैं कि किसी के लबो पर हंसी दिखाई पड़ती हैं और किसी की आँख मे आंसुओ का झरना बहता हुआ दिखाई पड़ता हैं इस बात की गहराई को समझने से पहले जरुरी हैं हम सुबह और साँझ को समझ लें किजीवन मे क्यों होती हैं सुबह और क्यों होती हैं सांझ ©Parasram Arora क्यों होती हैं सुबह
क्यों होती हैं सुबह #कविता
read moresubhi_sapnajha
बेटी जहां हम जन्म लेते हैं जिस माँ के आंचल तले पलते हैं दादी की कहानी सुनकर सोते हैं छोटी सी चोट लगने पर रोते हैं... बस वहीं लोग हमे पराया कर देते हैं... बेटी क्यों परायी होती हैं...
बेटी क्यों परायी होती हैं...
read moreRajesh rajak
दोस्तो एक बात आप सभी से साझा करना चाहता हूं, आज मेरी बेटी ने पूंछा,पापा हर कोई ये क्यों बोलता है कि बेटियां तो पराई होती हैं, ये सच है में उसको क्या जवाब दूं, आप लोग कुछ सुझाव दें,, बेटियां पराई क्यों होती हैं,,
बेटियां पराई क्यों होती हैं,,
read moreKalpana sagar(GK)
जब हमारी बाते कोई नही समझता है जब भीड़ में भी अकेलापन लगता है कोई अपना भी जब चोट दे जाता है तब यही किताब तो होता है जो हमें सम्भालता है टूटे हर जज्बात से हमें उभारता है हर किसी के ऊंचे सपने को यही तो पंख लगाता है फिर इसे समझना क्यों मुशि्कल होती है किताबें इतनी गहरी क्यों होती है? किताबें इतनी गहरी क्यों होती हैं#
किताबें इतनी गहरी क्यों होती हैं# #कविता
read moreAuthor Munesh sharma 'Nirjhara'
अब कहाँ ऋतु ऋतु-सी आती हैं मन को पहले-सा भाव-विभोर करती हैं कब आया वसंत और चला गया किसी को कहाँ पता चलता है गुलशन हृदय को कब महकाता है अब तो बस कैलेण्डर ही 'चैत्र' से मिलवाता है...! आती है ग्रीष्म भी;लेकिन बूँद पसीने की कहाँ दिखती बन्द कमरों की ठंडक में गर्मी भी ठंडी हो जाती...! वर्षा ऋतु आती है पर पहले-सी नहीं तन और मन भीगता था वो बारिश अब नहीं कहीं बूँद-बूँद तो कहीं बाढ़-तूफान मन को प्रफुल्लित अब करती नहीं...! शरद् का चाँद अब कहाँ चाँदनी बिखराता है धूल-धुएँ के गुबार में कहीं खो-सा जाता है प्रेमी हृदयों की कविताओं में ही अब नज़र आता है...! हेमंत की वो कंप-कंपी अब कहाँ उतना कंपकंपाती है हाथ-पैरों का सुन्न हो जाना तो पुरानी बात लगती है जमती थी पौधों पर ओस 'बर्फ-सी' नहीं वो हेमंत अब हिम-सी...! शिशिर ऋतु अब फागुन में कहाँ फाग बन आती है नौजवानों की टोली तो कहीं नहीं अब दिखती है प्रेम-प्यार का राग-रंग अब फागुन की कहाँ पहचान रहा...! ऋतु आती और जाती हैं पर ... परिवर्तन कहाँ अब दिखता है घर की दीवार पर टंगा पंचाग ही ऋतु-परिवर्तन की सूचना देता है उसी में हमारे ज्ञान-चक्षु खुल जाते हैं ऋतु अब कहाँ आती और जाती हैं कुछ नहीं पता चलता है...! #ऋतुएँ #yqdidi #yqpoetry
Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)
क्यों होती हैं बेटियां ख़ास ? #DaughtersDay #SpecialDay
क्यों होती हैं बेटियां ख़ास ? #DaughtersDay #specialday
read moreRaju Bhargava
महिलाएं कुछ ज्यादा ही समझदार क्यों होती हैं
महिलाएं कुछ ज्यादा ही समझदार क्यों होती हैं
read moreNojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)
किताबें इतनी गहरी क्यों होती हैं ? #Books #QandA
Ghumnam Gautam
दो ऋतुएँ जो कि मेहरबान रहती थीं मुझपर ख़फ़ा जो आप हुए वो भी खिन्न हो ही गईं जो अंश माँगा था उसने वो हर दिया हमने हमारी राहें मगर फिर भी भिन्न हो ही गईं ©Ghumnam Gautam #ऋतुएँ #अंश #हर #भिन्न #ghumnamgautam
#ऋतुएँ #अंश #हर #भिन्न #ghumnamgautam
read moreGopal Csc
जो ना मिले उसी की चाहत क्यों होती हैं..… जो मिल जाए उसके लिए दिल में चाहत क्यों नहीं होती.. जिसे समझते हैं वो हमे समझता कहा हैं... जो हमे समझता है उसे हम कहा समझते हैं..... जो ना मिले उसके पीछे भागते हैं.... जो मिल जाए उसकी कदर कहां होती हैं... ©Gopal Csc जो ना मिले उसी की चाहत क्यों होती हैं..… #ValentinesDay
जो ना मिले उसी की चाहत क्यों होती हैं..… #ValentinesDay #लव
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