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Anupam Mishra
हम पंछी उन्मुक्त गगन के हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाऍंगे । हम बहता जल पीनेवाले मर
read moreRaviraj Sharma
कुदरत का करिश्मा भी ये क्या मंज़र दिखा रहा है । देखो-देखो सूरज आज खुद को सागर में गिरा रहा है ।। "रवि राज शर्मा" #क्षितिज
नाम थाने मे हैं
us din taala tutega sambhidhaan ki peti kaa jis din jism nichora jayega kisi neta ki beti ka क्षितिज
क्षितिज #विचार
read moreAmit Singhal "Aseemit"
जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए दिखते हैं, उस दृष्टि भ्रम को ही हम सब क्षितिज कहते हैं। उसी तरह अज्ञानी लोग अल्प परिश्रम करते है, तर्क से अधिक सुपरिणाम की अपेक्षा रखते हैं। ©Amit Singhal "Aseemit" #क्षितिज
Satish Mapatpuri
कहाँ क्षितिज के कहीं कुछ भी पार होता है। नज़र को धोखा मगर बार बार होता है। हमें यकीन जहाँ होता है वहीं अक्सर , बसन ये आबरू का तार तार होता है। गुलाब को भी सजग हो के चूमिए लब से , न छिल ये जाए कहीं ख़ार ख़ार होता है। ….. सतीश मापतपुरी ©Satish Mapatpuri क्षितिज
क्षितिज
read moreRajesh rajak
व्यथाएं भी व्यथित हो उठती हैं, कभी कभी दर्द भी रो पड़ता है, खो सी जाती हैं यादें भी यादों में, सांसें समाहित हो जाती हैं, आहों में, भयातुर,भय भी हो जाता है भयभीत, अंधेरा भी खो जाता है स्याह रात में, नींद को भी आ जाती है चिरनिद्रा एक दिन, स्थिर चित्त भी आवेश में आ जाता है,फिर स्वम ढूंढ़ता है स्थिरता, अंकुरित पादप भी पुनः लालायित हो उठता है बीज में समाहित होने, धरा अपने में समाहित करने हो जाती है आतुर, स्थूल भी नवनीत सा घुल कर मूल हो जाता है, बिखरती जाती हैं सांसें,जितना भी समेटो, नदियां उफान मार कर सागर सा,हो जाती हैं विलुप्त, आत्मा भी बिलीन हो जाती है,परमात्मा में, फिर शुरू हो जाता है जीवन मरन का खेल, फिर जन्म ,फिर मृत्यु,अनवरत,सा चलने बाला दृश्य, फिर वही दिन,वहीं रात, वहीं भागम भाग,,शाश्वत सत्य, जीना इक वहम लेकर, कि मिलते हैं कहीं जमीं आसमां,क्षितिज पर,,,, क्षितिज,
क्षितिज,
read moreAnu_fable
कोई चांद का दीवाना यहां, कोई लिखे तारों का अफसाना। किसीको पसंद तपन सूरज की कोई गाए समंदर का फसाना। बेखबर सारे दुनिया जहांसे, किसीको खबर क्या मेरे दिल की। चांद तारे सूरज समंदर सब को साथ लाए, मैं तो दिवानी उस "क्षितिज" की। ©Anu_fable क्षितिज...!!!
क्षितिज...!!! #शायरी
read moreVishakhaBorkar
घेऊ या झेप आकाशी पाहूया स्वप्न नवे.... सागराची लाट होऊया शिंपल्यात मोती नवे... कष्ट तर आहेच वाटेवर गगणामध्ये दाट थवे तीमिराला दूर करुनी कोरूया क्षिताजावर नाव नवे... #क्षितिज
सुरेश चौधरी
क्षितिज यवनिका में सिमटकर, खो गए रंग सारे अरुण अश्व अस्ताचल, विविध रश्मि मय तारे मेघ तन मेघ मन तो, सिंचित हुआ जा रहा दीप वर्तिका सा जल, कंपित हुआ जा रहा ज्योति निर्मल जल रही, अहिर्निश मन पुकारे क्षितिज यवनिका में सिमटकर, खो गए रंग सारे क्षितिज
क्षितिज
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