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ödd Noor
वो लम्हें बचपन के ✍️ नूरबसर चलो कुछ बात करे बचपन से शुरुआत करे सुख का दिवस था दुःख बेबस था अपनो की बस्ती थी कागज की कश्ती थी सबका गोद ही अपना बसेरा था हर गली मोहल्ले में लगता अपना डेरा था मां के आंचल में होता सबेरा था आज दिल फिर बच्चा बनना चाहता है वो लम्हा कितना सुनहेरा था। अपने रंगों पे न हम में गुरूर था भेदभाव के बंधन से मन कोसो दूर था हमारी खुशी देख,अंधेरा भी मजबूर था उजाला तो होना ही था क्योंकि आस पास नूर था आज दिल फिर बच्चा बनना चाहता है वो लम्हा आज भी मशहूर है कल भी मशहूर था। मनचाहा पाने के लिए, मिट्टी में लोट जाना अपना कर्म था सल्तनत भी घुटने टेक दे हौसला इतना गर्म था बदतमीजी की हदें पार कर देते न लगता हमें शर्म था आज दिल फिर बच्चा बनना चाहता है वो लम्हा का न होता धर्म था । न अपनों का आश था न जीवन सपनों का दास था न मन होता उदास था आज दिल फिर बच्चा बनना चाहता है वो लम्हा कितना खास था। #poem #childhood
Kirtesh Menaria
ना दुनियादारी से मतलब था ना ही जिम्मेदारियों का बोझ था अपनी धुन के दीवानों ने गांव की हर गली मोहल्ले को अपने शोर से खिलखिला दिया था दिखावटी जिंदगी के ना वो आदी थे ना ही कपड़ों के पहनावे के वे शौकीन थे हाथ लगे हर कपड़े को पहन मां के हाथों कंघी करवा कर निकल पड़ते थे अपनी जिंदगी को पुकारने ऐसे थे हम सारे अपने बचपन के सुनहरे से दिनों में ©kirtesh #childhood #nojoto #poem
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खुदा ! रहमत का दर कब खोलता है आखिरी, कब तक नजर को बिन झुका तकता रहूँ। कभी तो मुफ्लिसो पर रहम कर, मेरे खुदा, मैं झोली कब तलक करता रहूँ। ©Senty Club and Studios #Childhood #poem #Poet