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RaJ
एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। www.aapkisafalta.com जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #3
poem on tree 3
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एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। www aapkisafalta.com सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #3
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एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #1
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एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #6
poem on tree 6 #कविता
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एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। www.aapkisafalta.com poem on tree #5
poem on tree 5
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एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। www.aapkisafalta.com कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #2
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read moreRitesh Gadam
आयुष्य ••• किती खेळवते अनेक वेळा अनेक रंगात कधी भविष्याच्या स्वप्नाच्या रंगात तर कधी प्रेम भंगात... कधी हसवते खेळवते शाळेच्या आनंदात तर कधी रडवे करून सोडते नात्यांच्या बंधनात. कधी प्रेमाच्या जाळ्यात अडकवते तर कधी मैत्रीच्या मोहात... कधी मायेच्या ममतेत फुलते तर कधी बापाच्या प्रेमात बहरते. कधी दगडावर ठोकर खाऊन होते रडवे तर कधी हृदयाला ठोकर खाऊन होते हळवे कधी मित्र-मैत्रिणीच्या गोंगाट्यात रुसते तर कधी एकट्या एकट्यात हस्ते. कधी सुखाच्या किनार्यावर शांत बसते तर कधी दुःखाच्या समुद्रात भटकत असते कधी चंद्रावाणी सौम्य वाटते तर कधी सूर्या वाणी कठोर भासते... _ रितेश गडम ©Ritesh Gadam #मराठी कविता #आयुष्य #marathi poem on life #best marathi poem.
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