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VIBING_SOLITUDE
हाँ! स्त्री तुम कभी पुरूष न बन पाओगी स्त्री तुम कभी पुरुष न बन पाओगी तुम कभी किसी को दुःख न दे पाओगी तुम तो सदा समझती रही हो जग को फिर कैसे नासमझ पुरुष बन पाओगी हाँ! स्त्री तुम कभी पुरूष न बन पाओगी तुम में तो बसा प्रेम का संसार है तू ही तो जग की पालन हार है फिर कैसे ह्रदय में अपने तुम घृणा लाओगी कैसे किसी को रोता देख मुस्कुराओगी हाँ! स्त्री तुम कभी पुरूष न बन पाओगी तुम तो भूख का भी त्याग कर देती हो गलती हर किसी की माफ कर देती हो क्या पुरुष भाँति झूठा घमंड दिखा पाओगी झूठी शान खातिर तुम ये सब न कर पाओगी हाँ! स्त्री तुम कभी पुरूष न बन पाओगी अपने हर स्वप्न का तुम गला घोट देती हो पुरुष के अपमान को मौन रह तुम सहती हो क्या तुम किसी लाचार पर हाथ उठा पाओगी अरे रहने दो तुम कभी बेशर्म न बन पाओगी हाँ! स्त्री तुम कभी पुरूष न बन पाओगी.... आदि हाँ स्त्री तुम कभी पुरुष न बन पाओगी #poetry #lady #nojoto #poem
Priyanshi
पुरुष कुछ भी स्वीकार कर लेते हैं आसानी से , परन्तु वो पूर्ण समर्पण और त्याग नहीं कर पाते । स्त्रियां कर सकती त्याग और पूर्ण समर्पण , परन्तु वो कुछ स्वीकार नहीं कर पाती आसानी से ।। - मन्नत स्त्री- पुरुष
स्त्री- पुरुष
read moreHP
भारतीय संस्कृति में पुरुष और स्त्री को आधा-आधा अंग मान कर एक शरीर की व्याख्या की गई है पुरुष को अर्द्धनारीश्वर तथा स्त्री को अर्द्धांगिनी कहा गया है। पुरुष/स्त्री
पुरुष/स्त्री
read moreपूर्वार्थ
अंततः अन्तर.....✍️ लेखकों ने पुरुषों की अपेक्षा स्त्री को लिखना/दर्शाना क्यों उचित समझा! जबकि कुछ कवियों व दार्शनिकों का मानना है कि... नारी तेरी माया कोई न समझ पाया. आखिर ऐसा क्यों बोला बोला गया होगा! क्या कोई तार्किक सम्मत विचार रहा होगा? आइये इस विषय पर चर्चा करें। स्त्री... बहुत सुलझी सी, बहुत भावुक सी, बहुत मासूम सी, रही होगी, कदाचित लेखक उसकी इसी बनावट के कारण उसे लिखना उसे दर्शाना व उकेरने का कारण रहा होगा। यदा कदा पुरुष के जीवन पर किसी ने भी चार पंक्ति लिखना व्यर्थ ही समझा होगा! यत्र तत्र किसी ने लिखने का साहस किया भी हो परंतु वह अंत तक नहीं पहुंच पाया होगा, संभवत उसका कारण यह रहा होगा कि शुरुआत कहां से करे। पुरुष को गढ़ना संभव ही नहीं अपितु उसके विषय पर लिखना क्षीरसागर में समाहित हो जाना है, उसी में विलीन होना हैं, जिम्मेदारियों के चलते पुरुष उम्र से अधिक बड़े होते हैं, परवरिश पर आऐं तो माँ से अच्छा किरदार निभाने वाले, कठोरता पर आऐं तो अपनी प्रेमिका को ठुकरा दें! नादानी पर आ जाऐं तो बच्चों को पछाड़ दें, कुसंगति में आ जाऐं तो साधु को बिगाड़ दें प्रेम में पड़ जाऐं तो पहाड़ खोद दें। पुरुष! व्यथा से व्यथित होकर अपने व्यक्तित्व का खडंन नहीं होने देते हैं, सारा जीवन एक कमरे में बिता देते हैं केवल अपने परिवार की खुशियों के लिए... सभी पुरुष दैहिक संतुष्टि नहीं चांहते हैं, कुछ केवल सही कांधे तलाशते हैं ताकि दिन भर की थकान व दैनिक प्रक्रिया को साझा कर सकें। संभावित स्त्री भी उसी का साथ करती हैं, जिस पुरुष में नादानियां एक बच्चें समान हो... समझदारी पिता समान , कुशलता पति समान, और सुरक्षात्मक भाव भाई समान हो। ❤ ©पूर्वार्थ #स्त्री #पुरुष
Sumit Kumar
स्त्रीयों को सम्मान दिलाते-दिलाते पता ही नहीं चला, कब पुरुषों को हमनें समाज की नजरों से गिरा दिया.. ©Sumit Kumar स्त्री-पुरुष..
स्त्री-पुरुष.. #Life
read moreHarshita Gupta
स्त्री पुरुष के मध्य किए जाते हैं "कुछ भेद" जिनसे उत्पन्न होते हैं "मतभेद" और बन जाते हैं "मनभेद"। Harshita gupta 🍁 #स्त्री #पुरुष
vishnu kant baluni
Alone तुम इस समंदर के किनारे मे जो हमको छोड़ कर जाओगी। तुम भी जीना पाओगी। 💔💔💔💔 ©vishnu kant baluni तुम भी जी ना पाओगी। #alone
तुम भी जी ना पाओगी। #alone
read moreCalmKrishna
स्त्री और पुरुष ! #स्त्री #पुरुष #जीवन #अर्थ #philosophy
स्त्री और पुरुष ! #स्त्री #पुरुष #जीवन #अर्थ #philosophy #nojotophoto #विचार
read moreSatish Kumar Meena
White स्त्री का दर्जा समाज में भले ही कम हो पर पुरुष को बल और सहयोग स्त्री से ही मिलता है इस प्रकार दोनों को ही बराबर महत्व देना स्वीकार्य होना चाहिए। ©Satish Kumar Meena स्त्री और पुरुष
स्त्री और पुरुष #विचार
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