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Pratik Dasgupta
दाग़ तो धूल जाएंगे, पर जलन का नहीं कोई उपाय। क्या सचमुच दाग अच्छे होते हैं? #चरित्र #कमीज #गिरना #चाय #YourQuoteAndMine Collaborating with Anuup Kamal Agrawal
क्या सचमुच दाग अच्छे होते हैं? #चरित्र #कमीज #गिरना #चाय #YourQuoteAndMine Collaborating with Anuup Kamal Agrawal
read moreAnupama Jha
बस छोटा सा फर्क है तमीज़ और कमीज में पर तमीज़ बताता है "ब्रांड" कमीज़ नहीं....... #कमीज#शर्ट#ब्रांड#तमीज़
Subhasish Pradhan
दरिंदों को उम्र का क्या मालूम क्या लिहाज होगा जनाब वो तो जिस्म से ज्यादा रूह को नोच खाते हैं ।। #कमीज#टॉफी#दरिंदे#Yqdidi#yqhindi #YourQuoteAndMine Collaborating with Anil Ameta जी Superb yr lines.... Reality
S A T V I R . S I N G H
एक वो भी समय था जब मेरी आँख में आँसू आते थे, जब मैं बचपन में मेले में जाता था और एक टेलीफोन का खिलौना लेना चाहता था पर कभी ले न पाया अपने पिता जी की गरीबी की वजह से, और आज फिर वो समय याद आया जब मॉल में एक कमीज़ बहुत पसंद आई पर मैं ले न पाया क्योंकि अब मैं बाप था। ©Satvir Singh वक़्त फिर लौट आया। #Waqt #आँख #समय #बचपन #टेलीफोन #खिलौना #गरीबी #कमीज #बाप सत्यप्रेम Internet Jockey Manish Kumar sweta chaudhary Vijay Besharm
Sanjeev Jha
लड़कपन के कई किस्से जेहन में घर बनाये हैं कभी वो गांव घुमाते हैं कभी घर-घर फिराते हैं दशहरे की कमीजों को कभी हमने निहारा था बड़ी दादी के सीके से मौनी मटका उतारा था वही कौड़ी वही सिक्के मुझे धनवान बनाते हैं लड़कपन के कई किस्से जेहन में घर बनाये हैं कनेर के पेड़ पर चढ़कर डुडुम में जोर अजमाया लुकाछिपी में चुपके से पीठ पर धौल था खाया बड़े भैया अभी भी चेहरे के टांके दिखाते हैं लड़कपन के कई किस्से जेहन में घर बनाये हैं क्रमशः.... ©संजीव #लड़कपन #किस्से #कमीज #दशहरा #Quotes
Roopanjali singh parmar
ये पुरुष भी काफी अजीब होते हैं, खामियों पर ये आह नहीं करते, और खूबियों पर अपनी वाह नहीं करते। बस में लटके खड़े धक्के खाते हैं, और आराम भरी ज़िन्दगी बताते हैं। दफ़्तर की थकान और दिन भर के काम, सब भूल जाते हैं, और मुस्कुराते हुए वापस घर आते हैं। अपनी फटी हुई कमीज, और टूटे हुए बटनों को, सबसे छुपा कर रखते हैं, मगर नई कमीज सिलवाने से कतरा जाते हैं। कहीं जेब में शायद खुशियां खनक जाए, और अपनो की पूरी हो जाये ख्वाहिशें.. इसलिए टटोलते रहते हैं उस जेब को, जिसमें कुछ देर पहले खुद की ख्वाहिशों को पूरा करने कुछ भी नहीं था। चोट लग जाये तो मुस्कुरा जाते हैं, ना ही चीखते हैं, और ना बताते हैं। इनके चहरे पर सिकन भी तब तक होती है, जब तक घर की दहलीज पर पैर नहीं रख देते.. छूमंतर कर लेते हैं हर दुःख को और चहकने लगते हैं। इन्हें दिखावा करना भी खूब आता है, चहरे से इनकी चिंताएं भांपना बड़ा मुश्किल होता है.. आँख के कोरों में रुके आँसू भी बहते नहीं, और ये पलट जाते हैं.. खुद को कहीं व्यस्त दिखाने.. ये पुरुष भी कुछ हद तक महिलाओं जैसे हैं.. कहते नहीं बस सहते रहते हैं.. मगर इनको पता ही नहीं.. कि कब इनकी तकलीफों की चुगलियां, इन्हीं की आँखें कर देती हैं..।।
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 9 - भोले भगवान हरीश आज इस ज्येष्ठ की दोपहरी में बहुत भटका, बहुत से दफ्तरों के द्वार खटखटाये उसने, अनेक समाचार-पत्रों और दूसरे कार्यालयों में पहुँचा; कितने दिनों से चल रहा है यह क्रम; कौन गिनने बैठा है इसे। विश्वविद्यालय से एम० ए० करके अपने साथ अनेक प्रशंसा पत्र लिये भटक रहा है हरीश। 'काम नहीं है।' उसके लिए! एक एम० ए० के लिए क्या विश्व में कहीं काम नहीं है? वह अकेला है, घर पर और कोई नहीं; घर ही नहीं उसके तो; पर पेट है न! अकेले को भी तो भूख
read morewriter_jitendra_Rathore
*आखरी मुलाकात* दोस्तो मोहहबत शब्द सुनने में जितना हसीन लगता है। उतना ही कठिन है इसे निभा पाना । आज चार साल बीत गए थे मुझे तुम्हारे साथ पर लगता है जैसे कल की है बात है ,अब याद करने जाऊ भी तो याद केवल वह मुलाकात आती है जो आखरी साबित हुई ।कहने को वो मुलाकात थी पर मिलने की जगह बिछड़ने का दस्तूर साथ लाई थी याद आती है तो तुम्हारी वह छवि झुकी नजरें और बहुत मुश्किलों से जुटाई गई हिम्मत के बाद तुम्हारी होठों से निकले वह शब्द *कि अब खत्म करते हैं ना* यह बात आज भी मेरे जेहन में एक ताबूत बनाए हुए हैं कि यह सवाल था या फिर तुम्हारा फैसला मर्जी दोनों की थी क्योंकि *आज इस मोड़ पर हमारा यह रिश्ता धोई हुई उस आसमानी कमीज की तरह था जो साफ तो थी लेकिन उसमें पड़ी सिलवटें उसके पुराने होने का एहसास हर पल दे रही थी* मेरे जाने की वजह तुम्हारे उस वक्त बताने का दिल नहीं किया आज सोचा खुद से ही कह दू शायद तुम ही भी सुन लो कि मेरी खुशियां मुझे तुम तक ले आई और अब तुम्हारी मुझे तुमसे दूर लेकर जा रही हैं हेलो हाय और कैसे हो के बाद ही वो खामोशी इसे तोड़ने की हिम्मत ना हो और ना ही उसमें बहके खामोश रहने की बस इंतजार था तेरे मुंह सेकुछ शब्द निकलने का ताकि मैं भी अपने दिल की बात खुलकर कह सको इतने में तूने बोल ही दिया कि कुछ लाए नहीं मेरे लिए। मेरा सब कुछ तो तू ही थी और तू खुद को ही लेकर जा रही थी इस के बदले में रुखसती की अदायगी मांग रही थी इतने में तुम फिर बोली कि आज तो समय पर आते और मेरा वही पुराना बहाना ऑटो नहीं मिल रहा था वहां पहुंचकर तुमको इतना गौर से देखने के बाद इन आंखों को समझा लिया था कि थे तुम ही हो पर यह दिल तो हकीकत जानता ही था *कि यह तुम वह तुम नहीं जो तुम हुआ करती थी और तुम ये तुम होकर मेरे दिल को सुकून कभी नहीं। से सकती*। वहां उस काफी शॉप के इतने शोर के होने के बावजूद उस शोर को सुनने के बजाय मेरे कानों को तेरी खामोशी सुनाई दे रही थी फिर तुमको इतना गोर से देखने के बाद तुम्हारे सामने मुझे यह समझ आया कि वह लड़के तू कितना आगे बढ़ आया है वह भी इस वक्त जब मेरे मन में उठ रहे सवालों को परे कर हिम्मत जुटा र कर तुझे तेरे सारे सवालों के जवाब दे रहा था इतने में तेरा सवाल आया कि कोई क्या कोई वजह बची है साथ रहने की क्या तुझे सिर्फ तू होने की वजह से प्यार करना काफी नहीं । *सभी पुराने किस्से उठाकर मेरी गलतियों की लिस्ट ले तो आई थी दहेज में पर सुन रिवाज बढ़ाते हुए मैहर में एक लिस्ट मेरी भी कबूल कर*। और बस इल्ज़ामात का सिलसिला शुरू हो गया *" अच्छा चल यह बात बता दे वह निशान भी लेकर जाएगी क्या जो तेरे लैक्मे वाले काजल ने तेरी नाम आंखों के आंसुओ के साथ मिलकर मेरी मेहरून कमीज की सीधी हाथ की बाजू पर लगाया था* क्योंकि वह निशान काफी है मुझे वापस उस दुनिया में ले जाने के लिए जहां से बड़ी हिम्मत जुटाने के बाद भाग पाया हूं आज शब्दों से ज्यादा बातें खामोशियां कर रही थी चलो इसी बहाने जिंदगी भर साथ रहने की एक झूठी चाह मर रही थी *तुम वहां बैठी अपनी आंखों के सामने रखी कॉफी को नमकीन किए जा रही थी ।अरे बुद्धू लड़की अगर इतना ही गम था, तो मुझे छोड़कर क्यों जा रही थी* आज तुम्हें जाने से एक बार भी नहीं रोका क्योंकि आज *मैं रेगिस्तान में पल रहे उस नागफनी की तरह था जिसे बारिश का इंतजार तो रहता है पर उसके ना होने से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता* तभी देर हो रही थी मैं चला चलती हूं का बहाना देख कर तुम उठने लगी सोचा तुम्हें घर तक छोड़ दूं तो जवाब मिला अब किस हाथ में कॉफी शॉप से बाहर निकल कर रूखसती की रस्में अदा कर रही थी कि यह बेरहम मौसम ओर उसकी बेपरवाह बारिश। *बारिश आज भी वही थी बस फर्क इतना था कि हर बार तेरे साथ भीगते थे लेकिन आज तेरे पास भीग रहे हैं* *फिर मिलते हैं का झूठ को लेकर तुम उन कदमों को मुझसे दूर बढ़ा चुकी हो जो कदम तुम शायद बहुत पहले उठा चुकी थी ।* वहां से निकल कर तुम दांए और मैं बाय चल दिया कुछ पल को ठहरा हमारा वक्त अब फिर चल दिया । उस वक्त मन में एक बात रह गई कि *वाह लड़की कितनी आसानी से संसार की रस्मो को जूठला रही हो मेरे हिस्सा का मै तो पहले ही ले जा चुकी थी ,अब मेरे हिस्से की तुम भी लेके जा रहीं हों।* आज कहने को हमेशा की तरह तू मेरे साथ थी पर गम इसी बात का है कि यह हमारी आखिरी मुलाकात थी। to #thestorytellingshow1
ehtraaq anand
कमीज पर अपने हाथों की सिकुड़न को छोड़ते हुए.. उसका मेरे कमीज के कॉलर को संजीदगी से पकड़ना.. फिर मेरे बाहों में अपनी रूह को तड़प कर मुझमें ही मिल देना.. अपने जिस्म के एहसासों को होठों पर ला कर मेरे लबों पर रख देना... कुछ इस तरह उसका यूं इश्क़ को मुकम्मल कर देना..... #ishq#mohbt#intzaar#tum#nazm
mayank vishwakarma
#दायरे#कमीज#वक्त Satyaprem Ajeet Kumar Rahisha Khan Radhey Ray Deepika Dubey