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Bharat Bhushan pathak
महत्व केवल शब्द है,नहीं जानिए आप। समझे इसका मूल्य जो,पाए ना संताप।।१ अर्थ बड़ा ही गूढ़ है,कहते जिसे महत्व। रोग विफलता ना मिले,नियमित लें यह सत्व।।२ सृजन सार इसमें निहित,तंत्रों का यह तंत्र। ग्रहण सदा इसको करें,बड़ा यही बस मंत्र।।३ सफल यहाँ पे जो हुए,इससे था अपनत्व। नहीं व्यर्थ होता कभी, मूल्यवान यह तत्व।।४ विज्ञ मूढ़ इससे बनें,सब समझें दायित्व। अपना ले मानव इसे,चाह अगर ईशित्व।।५ सिद्ध यही वह कुंभ है, दिया सदा अमरत्व। सृजन यहाँ जो भी करें,मिले सृजन अस्तित्व।।६ ©Bharat Bhushan pathak महत्व केवल शब्द है,नहीं जानिए आप। समझे इसका मूल्य जो,पाए ना संताप।।१ अर्थ बड़ा ही गूढ़ है,कहते जिसे महत्व। रोग विफलता ना मिले,नियमित लें यह सत्व।।२ सृजन सार इसमें निहित,तंत्रों का यह तंत्र।
महत्व केवल शब्द है,नहीं जानिए आप। समझे इसका मूल्य जो,पाए ना संताप।।१ अर्थ बड़ा ही गूढ़ है,कहते जिसे महत्व। रोग विफलता ना मिले,नियमित लें यह सत्व।।२ सृजन सार इसमें निहित,तंत्रों का यह तंत्र।
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आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते। भय तुम्हें न ही करना था,सुनो वो उलटे भय खाते।। ©Bharat Bhushan pathak आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते।
आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते।
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आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते। भय तुम्हें न ही करना था,सुनो वो उलटे भय खाते।। ©Bharat Bhushan pathak आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते।
आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते।
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यथार्थ का परिचय कराने का प्रयत्न करती मेरी यह कविता मेरी और उन सभी साहित्यकारों की आवाज है जो संभवतः सम्पूर्ण संसार से यही कहना चाहते होंगे... *त़हरीर मेरी भी* विधा-अतुकांत आज मुफ़लिसी में यहाँ जीता हूँ मैं, कल त़हरीर मेरी भी लिखी जाएगी। कहेंगे लोग उस वक्त ये ज़रूर मगर, हाँ !वाह क्या बहुत खूब लिखते थे वो, उम्र का तकाज़ा है ये जनाब मुझको, पूछते हैं लोग खाक हो जाने के बाद... जब आज हम हैं तो कोई चर्चा नहीं... पर कल यहाँ याद आएंगे बहुत , बस उस आखिरी पर्चा भर जाने के बाद... जन्म दिवस,मरण दिवस भी मनाएंगे वो, समोसे और मिठाइयाँ खिलाएंगे वो.. पहनाएंगे माला पुतले को मेरे.... यहाँ खूब जिन्दाबाद के नारे होंगे, कभी झाँके तक नहीं थे घर में मेरे जो, कल बाईट में घर केवल हमारे दिखाए जाएंगे। जब-जब तीथि यहाँ पर आएगी मेरी.. वो खूब मोमबत्तियाँ जलाएंगे। साल दो साल ,महीने दर महीने , खूब धूल भी यहाँ जमेगी मुझपर.. और तीथियों पर खूब नहलाए जाएंगे हम। कभी नेता,अभिनेता कभी आकर मेरे पुतले के पास.. यहाँ अपनी नायिका,पार्टी सदस्यों के साथ लंबे भाषण भी दे जाएंगे। और उस शून्य में बैठ हम यह सोचते रह जाएंगे, ओह !यहाँ कोई तो आया मेरे खा़क हो जाने के बाद ही सही... ©Bharat Bhushan pathak यथार्थ का परिचय कराने का प्रयत्न करती मेरी यह कविता मेरी और उन सभी साहित्यकारों की आवाज है जो संभवतः सम्पूर्ण संसार से यही कहना चाहते होंगे... *त़हरीर मेरी भी* विधा-अतुकांत आज मुफ़लिसी में यहाँ जीता हूँ मैं, कल त़हरीर मेरी भी लिखी जाएगी। कहेंगे लोग उस वक्त ये ज़रूर मगर, हाँ !वाह क्या बहुत खूब लिखते थे वो, उम्र का तकाज़ा है ये जनाब मुझको,
यथार्थ का परिचय कराने का प्रयत्न करती मेरी यह कविता मेरी और उन सभी साहित्यकारों की आवाज है जो संभवतः सम्पूर्ण संसार से यही कहना चाहते होंगे... *त़हरीर मेरी भी* विधा-अतुकांत आज मुफ़लिसी में यहाँ जीता हूँ मैं, कल त़हरीर मेरी भी लिखी जाएगी। कहेंगे लोग उस वक्त ये ज़रूर मगर, हाँ !वाह क्या बहुत खूब लिखते थे वो, उम्र का तकाज़ा है ये जनाब मुझको,
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मंगलमाया छंद विधान-कुल २२ मात्राएं,११-११ पर यति,यति के पूर्व पश्चात त्रिकल और अंत में वाचिक गा अनिवार्य। भटक रहा क्यों मनुज,पड़े तू तू मैं मैं, जब होंगे सब अनुज,न तब होगी टें टें। व्यर्थ युद्ध के तान,करें प्रीत का नाद, नश्वर जब यह जान,फिर क्या भला ये मैं। धन्य सम्पदा गेह,क्या काम आते हैं, करें सभी से नेह,बस यही जाते हैं। मोह-माया प्रसार,बने यही संसार, वैर भाव को मार,सब विनय करते हैं। जीवन रसरी अल्प,व्यर्थ करो ना कल्प। प्रसिद्ध यह है गल्प,श्रम सब वरते हैं। ©Bharat Bhushan pathak #Qala मंगलमाया छंद विधान-कुल २२ मात्राएं,११-११ पर यति,यति के पूर्व पश्चात त्रिकल और अंत में वाचिक गा अनिवार्य। भटक रहा क्यों मनुज,पड़े तू तू मैं में, जब होंगे सब अनुज,न तब होगी टें टें। व्यर्थ युद्ध के तान,करें प्रीत का नाद, नश्वर जब यह जान,फिर क्या भला ये मैं।
#Qala मंगलमाया छंद विधान-कुल २२ मात्राएं,११-११ पर यति,यति के पूर्व पश्चात त्रिकल और अंत में वाचिक गा अनिवार्य। भटक रहा क्यों मनुज,पड़े तू तू मैं में, जब होंगे सब अनुज,न तब होगी टें टें। व्यर्थ युद्ध के तान,करें प्रीत का नाद, नश्वर जब यह जान,फिर क्या भला ये मैं।
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