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Indu Bala Mishra
भिखारिन 🎭 देखा था मैंने उसे, सूनी सड़कों पे टहलते हुए। कभी रोती, कभी हसती थी, अपनी दुखों को समेटे हुए। जाड़े की रात हो, या गर्मी की धूप हो। देखा था मैंने उसे, चिथड़ों में लिपटे हुए।। बिखरी जुल्फों से झांकती, उसकी सूनी आंखें। खोजती दानियों से, खाने को कुछ पाने के लिए, देखा था मैंने उसे, भूखे फुटपाथों पे सोए हुए।। सोचा था उसने कभी, सुखी जीवन जीने को। सुख तो मिला नहीं, दुआ मांगती मरने के लिए। देखा था मैंने उसे, सूनी सड़क पे मरते हुए।। ©Indu Bala Mishra #भिखारिन
ओम प्रकाश
#भिखारिन नालंदा के पावापुरी का एक एतिहासिक महत्व रहा है और वहां एक चर्चित जैन शुद्ध भोजनालय हैं। जहां मेरा दोपहर का लंच अक्सर वहीं होता है। हम थे तीन यार , तीनों लंच करके लौट रहे थे और हम सब दोस्त-यार आराम से एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की PNB ATM के पास बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर सामने आ गई। उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने
#भिखारिन नालंदा के पावापुरी का एक एतिहासिक महत्व रहा है और वहां एक चर्चित जैन शुद्ध भोजनालय हैं। जहां मेरा दोपहर का लंच अक्सर वहीं होता है। हम थे तीन यार , तीनों लंच करके लौट रहे थे और हम सब दोस्त-यार आराम से एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की PNB ATM के पास बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर सामने आ गई। उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने
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