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पंखुड़ियों सी कोमल मोहब्बत हमारी, कांटो सी दुनिया को कहाँ सुहाती ? #पंखुड़ी #मोहब्बत #कोमल #कांटे #yqbaba #yqdidi Photo credits : get wallpapers.com
Rakhi Raj
पंखुड़ी (भाग 7) काव्य खिड़की पर जाकर पंखुड़ी को इशारा कर बुलाती है वी कागज की पुड़िया में नींद की गोलियां लपेट उसके कमरे में फेकती है.. पुड़िया पर लिखा था "भैया स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार कर रहें है, स्टेशन के लिये ऑटो नुक्कड़ पर मिल जायेगा, ये नींद की गोलिया है इन्हे खाने मै मिला के इन्हे खिला देना और 11 बजे स्टेशन पर पहुंच जाना " पंखुड़ी सबके खाने मे नींद की दवा मिला सबको खाना खिला देतीं है, नींद की गोलियों के असर से सब बेहोशी जैसी नींद में सो जाते है,पंखुड़ी खिड़की पर ख़डी काव्य की और मुस्कुराते हुए स्टेशन की ओर भाग जाती है स्टेशन पर पहले से ही खड़ा वेद उसका इंतजार कर रहा होता है पंखुड़ी की नजरें स्टेशन पर ढूंढ़ती है वेद को, वेद भी पंखुड़ी को ही ढूंढ़ता है एक दूसरे को ढूँढ़ते हुए दोनों की नजरें मिलती है एक दूसरे से, पंखुड़ी कदम बढ़ा वेद के पास जाती है... आप काव्य के भैया है? वेद हाँ करके उसका हाथ थमने को उसकी ओर हाथ बढ़ता है पंखुड़ी को वेद अनजान होकर भी अनजान नहीं लगा,, वो अपना हाथ बढ़ा थामती है हाथ वेद का दो अजनबी एक दूसरे का हाथ थामे बैठ जाते है रेल में,खिड़की से शुरू वेद का प्यार रेल की सिटी बजने पर आगे बढ़ती रेल के साथ अब आगे बढ़ेगा पंखुड़ी न ही लाल चुनरी ओढ़ी थी न ही दुल्हन का लिबाज पर उसके चेहरे पर किसी दुल्हन से अधिक चमक थी आज... दोनों बंगलौर पहुंच समझते है एक दूसरे को, करते है समर्पित दोनों एक दूसरे को, एक दूसरे को छूने से पहले.. ज़ब कोइ पुरुष छू लेता है एक स्त्री की आत्मा को और स्त्री ज़ब बनती है पूरक पुरुष का तब होता है असली समर्पण ..... 2महीने बाद वेद अपनी और पंखुड़ी की शादी की फोटो काव्य के फोन पर भेजता है, वेद ने पंखुड़ी के जीवन में पँख लगा दिए है #पंखुड़ी
Rakhi Raj
पंखुड़ी (भाग 6) काव्य अपनी माँ की बातें सुन अपने कमरे में आ जाती है कमरे में आते ही उसे खिड़की के पास मुड़ा तुड़ा सा कागज मिला उसमे लिखा था "कैसे भी करके घर आ जाओ दीदी... पंखुड़ी " पढ़ते ही काव्य दौड़ कर सामने वाले घर मे जाती है आँगन में बैठी रमेश की माँ से बात कर काव्य पंखुड़ी के कमरे में चली जाती है काव्य के आते ही पंखुड़ी कुण्डी लगा उससे लिपट के रोने लगती है वो कहती है "दीदी मुझे बचा लो, मुझे यहाँ से जाना है मेरी मदद करदो, मेरे चाचा ने मुझे इसे बेच दिया, मैं नयी शुरुआत के सपने सजा के इसके साथ आयी पर ये भेड़िया मुझे हाड़ मांस का ढांचा समझ नोचता है, इससे पहले ये मुझे पूरा खा जाये मुझे बचा लो दीदी !!!!!!! काव्य ने अब सोच लिया के वो पंखुड़ी को इस सबसे बाहर निकलेगी उसने कहा "मेरे भैया तुम्हें पसंद शायद प्यार ही करने लगे है अगर तुम मुझपे भरोसा कर सको तो मेरे भैया के साथ आज रात की ट्रैन से बैंगलोर चली जाओ, तुमसे शादी करना चाहते है भैया. दीदी तुम्हारे भैया मुझे स्वीकार कर पाएंगे? उनका मन तुम्हें पहले ही स्वीकार चुका है मेरा विस्वास कर भैया के साथ चली जाओ "दीदी ये जीवन बहोत दुश्वार है, तुम मुझे यहाँ से निकाल दो फिर तुम जहाँ कहोगी, जिसके साथ कहोगी मैं चली जाऊंगी, बस मुझे यहाँ से बचा लो" ठीक है.. मेरा इंतजार करना शाम को खिड़की पर 7बजे अब मैं जाती हुँ वहाँ से आकर सीधा वेद के कमरे मे जाती है "भैया उसे अपने साथ ले जाओ वो उसे नोच नोच के खा जायेगा "काव्य की आँखों में आँसू थे "क्या हुआ, रो क्यों रही है, किसे ले जाऊ अपने साथ?? पंखुड़ी को... काव्य ने कहा पंखुड़ी? हाँ भैया..पंखुड़ी वो शादी शुदा है काव्य,रमेश उसका पति है भैया आदमी का आदमी होना ही उसका सबसे बड़ा उपहार तो नहीं हो सकता न और पति ही लड़की के जीवन का सर्वश्रेठ पुरुष को ये जरूरी है? तुम तो उससे प्यार करने लगे हो न भैया तो बचा लो उसे उसने मुझसे मदद मांगी है भैया, वो आदमी उसका पति नहीं बेचा है उसके चाचा ने उसे हाँ... शायद उसे देखते ही मुझे उससे प्यार हो गया, उसे देख ऐसा लगा इसके साथ जीवन आराम से गुजरेगा, पर क्या वो मेरे साथ जाएगी? उसकी मर्जी के बिना मै उसे नहीं ले जा सकता. (काव्य )भैया वो तैयार है बस आप हाँ करदो (वेद )ठीक है पर कैसे होगा सब?? बैंगलोर की 2 टिकट बुक करो अपना सामान पैक करो, उसमे मैं अपने कपड़े भी रख दूंगी पंखुड़ी के काम आएंगे, तुम स्टेशन पर उसका इंतजार करना, रात की रेल से दोनों निकल जाना.. #पंखुड़ी (भाग 6)
#पंखुड़ी (भाग 6)
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पंखुड़ी (भाग 5) खाना खा कर काव्य अपने कमरे मे आ जाती है. खट खट.. दरवाज़े पर आवाज आती है "आ जाइये भैया "काव्य कहती है वेद.. काव्य की तरह की उस सामने वाली खिड़की को देखने लगा आते ही उसे पंखुड़ी से पहली नजर वाला प्यार हो रहा था काव्य को ये दिख रहा था..भैया उसका नाम पंखुड़ी है..उसके साथ.. वेद का फोन बजा ओर वो अपने कमरे मे चला गया || अगली सुबह काव्य उठ कर खोलती है अपनी खिड़की तो पंखुड़ी वहीं ख़डी उसका इंतजार कर रही थी उसके माथे पर चोट के निशान थे वो नम आँखों से मानो पंखुड़ी से मदद मांग रही थी |||||| काव्य दौड़ कर हांफते हुए माँ के पास गयी "कोनसा बुरा सपना देख लिया जो हाँफ रही है " हकीकत भी तो बुरी हो सकती है माँ... माँ पंखुड़ी के साथ गलत हो रहा है क्यों? क्या हुआ उसे (काव्य की माँ ने पूछा ) वो रमेश उसके साथ जबरदस्ती करता है माँ, वो उस दिन रो रही थी ओर आज उसके माथे पर चोट है "वो उसका पति है उसे जबरदस्ती न कहते"(काव्य की माँ न जवाब दिया ) "जबरदस्ती तो जबरदस्ती होती है न माँ चाहे पति करे या कोइ अजनबी " वो पति है उसका उसे जबरदस्ती नहीं समर्पण कहते है (काव्य की माँ ने कहा ) "समपर्ण"...... (काव्य ने आश्चर्य से कहा ) समर्पण जबरदस्ती नहीं होता माँ उसमे मंजूरी होती है.. समर्पण में अधरों को चूमने से पहले चूमा जाता है मन को ओर उससे भी पहले समझा जाता है एक दूसरे को ली जाती है मंजूरी... बिना स्वकृति के समर्पण नहीं होता बस कर...सवालों के बवंडर पर विराम लगते हुए उसकी माँ ने कहा "शर्म कर थोड़ी ममैं सहेली नहीं हूँ तेरी ये बातें अपनी सहेलियों से किया कर माँ कभी तो मेरी सहेली बन जाया करो माँ बेटी का रिश्ता ओर प्यारा हो जायेगा माँ... #पंखुड़ी भाग 5
#पंखुड़ी भाग 5
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पंखुड़ी (भाग 4) काव्य को अब चीखों के साथ साथ मारपीट की आवाजें भी आने लगी,, पर अब उसकी सामने वाली खिड़की बंद रहती है | काव्य टकटकी लगाये देखती रहती है सामने वाली खिड़की की ओर, तभी पीछे से कोइ आकर उसकी आँखों को मूँद लेता है (काव्य अपने हाथों से उसकी आँखों को मूंदे हाथ को पहचानते हुए )-- वेद भैया !!!! कैसे पहचना??? "कैसे नी पेहचानूँगी बचपन में इन्ही हाथों से मेरे हाथ पकड़ आप मुझे लिखना सिखाते थे " हाँ हाँ पहले क, ख, ग पर अटकती थी ओर अब के से किस्से, कहानियाँ लिखने लगी काव्य मुस्कुराती हुई अपने वेद भैया के गले लग जाती है वेद पच्चीस साल का काव्य के मामा मामी का बेटा है सात साल पहले मामा मामी रोड एक्सीडेंट में मारे गये थे, फिर वेद अपनी बुआ के यही रहना लगा, अब वो नौकरी के लिये बैंगलोर रहता है "ये बताइये कितने दिनों के लिये आये है, पिछले बार की तरह बिना बताये वापस न चले जाना "(काव्य आँखों को छोटी करके मुँह बना कहती है ) अब यही रहूंगा कुछ दिन अकेला महसूस होता है वहाँ..मन करता है नौकरी छोड़ यही आ जाऊ "उम्र हो गयी भैया अब शादी करलो फिर न मन करेगा यहाँ आने का माँ से कहूंगी आपके लिये लड़की देखे कोइ जल्दी ही काव्य चिढ़ाते हुए पूछती है... कैसी लड़की चाहिए आपको? |||||||| 6 दिन बाद वो सामने वाली खिड़की खुली,, पंखुड़ी ने जैसे ही खिड़की खोली उसके हाथों की चूड़ी मे लगे शीशे की चमक वेद के आँखों पर पड़ी वेद की नजरें पड़ती है खिड़की के पास ख़डी पंखुड़ी पर उसे देखते ही वो कहता है "बिलकुल इसके जैसी " काव्य वेद की आँखों में वहीं चमक देखती है जो उस रोज पंखुड़ी की आँखों में थी... भैया.. भैया काव्य वेद के कानो के पास चुटकी बजाते हुए कहती है "ये वो रमेश याद है उसकी बीवी है. रमेश?? वेद ने चौंक के कहा" वो जुवारी ओर नशेड़ी " पर ये लड़की तो.... हाँ भैया 18साल की है सिर्फ.. अनाथ है ये (काव्य वेद आप जाओ खाना खा लो दोनों नीचे से आवाज आयी ) #पंखुड़ी (भाग 4)
#पंखुड़ी (भाग 4)
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पंखुड़ी (भाग 3) काव्य अपनी माँ के साथ रमेश के घर जाती है,वो लड़की आयी बाहर बैठी,माँ ने उसका चेहरा देखा, काव्य पहले ही उसे अपनी खिड़की से देख चुकी थी, "तुम्हारा नाम क्या है "? काव्य नेु पूछा सेहमी सी आवाज में उसने कहा... प.पंखुड़ी फिर माँ ने उसे भीतर उसके कमरे में वापस भेज दिया "माँ मैं भी थोड़ी देर के लिये कमरे मे जाऊ क्या "?( काव्य ने अपनी माँ से पुछा ) जाओ पर वहाँ ज्यादा देर रुकना नहीं (काव्य की माँ ने कहा ) वो जैसे ही कमरे में गयी पंखुड़ी उसे देखते ही उससे लिपट के रोने लगी |उसकी पीड़ा इतनी ज्यादा थी के उसका दुख काव्य के ह्दय मे भी पार हो रहा था जिन आँखों को काव्य ने अपनी खिड़की से नयी शुरुआत की रह तकते देखा था अगले ही दिन उनमे आंसू देखना उसके लिये भयावह था "तुम ठीक हो"? ख़ुश हो शादी से? काव्य के इस सवाल से पंखुड़ी ओर रोने लगी.. उसके रोने से काव्य इतना तो समझ गयी के उसके साथ गलत हुआ है पर उसे विरोध करना नहीं आया | काव्य.... काव्य (बाहर से माँ की आवाज ) काव्य पंखुड़ी को इस हालत मे छोड़ जाना तो नहीं चाहती थी पर उसे जाना पड़ा ||||||| रमेश को बहु तो सुंदर मिली है, नाजुक सी है अभी उम्र की क्या है तुझसे भी 2बरस छोटी है माँ.......... (काव्य कुछ कहते हुए चुप हो जाती है ओर अपने कमरे में चली जाती है )... #पंखुड़ी भाग 3
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पंखुड़ी (भाग 2) शाम को वो लड़की काव्य को फिर अपनी खिड़की पर ख़डी हुई दिखी, उसकी आँखों में एक चमक थी जैसे जिंदगी की नयी शुरुआत की रह तक रही हो..उसने काव्य को देखा दोनों एक दूसरे को देख के मुस्कुराये तभी पीछे से रमेश आ गया... उसने खिड़की बंद करदी काव्य भी अपनी खिड़की को बंद कर अब किताबें पढ़ने लगी | काव्य जहाँ रहती है वहाँ की गलियां बहोत संकरी सी थी .. खिड़कियों के बीच ज्यादा दूरी नहीं थी चाय पीने से लेकर अब तक उसमे दिमाग़ मे जो सवाल उमड़े वो फीर घूमने लगे अचानक उसे खिड़की से आवाजें आने लगी "चीखें "उस लड़की की काव्य जो खुद सहम जाती थी शादी के नाम से अब ओर सहम सी गयी, इन चीखों को नजरअंदाज करके अपने कानो में इयरफोन लगा वो बिस्तर पर लेटे लेटे छत पर लगे पंखे को देखती रही. |||सुबह उठकर काव्य ने रोज की तरह अपनी खिड़की खोली पर उसके सामने वाली खिड़की बंद थी.... काव्य काव्य नीचे से आवाज आयी "जल्दी चाय पि ले रमेश के यहाँ चलते है फिर उसने शादी मे न बुलाया पर मुँह दिखाई तो देके आनी ही पड़ेगी " अपने सवालों को लिये काव्य अपनी माँ के साथ जाती है खिड़कियों से हुए काव्य ओर उसे लड़की के बीच हुए मुस्कान के आदान प्रदान से उन दोनों के बीच जैसे कोइ रिश्ता सा बन गया है......... (जारी ) #पंखुड़ी भाग 2
#पंखुड़ी भाग 2
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पंखुड़ी (भाग 1) प्रातः सूरज की किरणे, पक्षियों की चहचहाहट, बारिश की बूंदे, इंद्रधनुष के रंग, हवाओं के झोंको से खिड़की खुलती है प्रकृति की ओर.. |||||||||| काव्य को अपनी खिड़की से बाहर की दुनियां बड़ी प्यारी लगती है |रोज की तरह वो उठी अपनी आँखों को मलते हुए.उसे अंगड़ाइयां लेते देख ऐसा लगता है मानो जैसे उसकी अँगड़ाइयों से आजाद होकर ही सूरज की किरणें आसमां में बिखर रही हैं | काव्य उठ कर जाती है खिड़की की ओर, हवाओं के झोंको को महसूस करते हुए उसका ध्यान जाता है अपने सामने वाले घर की खिड़की पर.. एक लड़की जो देखने में नयी नवेली दुल्हन सी लग रही थी खिड़की के उस पार ख़डी थी, वो भी काव्य जैसे ही हवाओं के झोंको को महसूस कर रही थी |||||||||||| (काव्य दौड़ के माँ के पास जाती है ) "माँ वो सामने वाले घर मे लड़की कौन आयी है पता है क्या तुमको"? अरे वो रमेश है न वो ब्याह के लाया है.."हींग लगी न फिटकरी रंग चोखो "चार आदमी गये ओर ले आये ब्याह के | ब्याह के !!! (काव्य ने आश्चर्य से कहा ) पर वो लड़की तो मुझसे भी कम उम्र की लग रही है देखने से ओर रमेश तो अठ्ठाइस बरस का है माँ, ऊपर से नशा भी करता है वो दुनियां भर की खराब आदते है उसमे.. अनाथ है बेचारी बोझ समझ ब्याह दी होगी बिना छान बीन करे..अब यही भाग बेचारी का माँ पर.... उसके सवालों पर अपनी करछी दिखाते हुए काव्य की माँ ने कहा, "हाथ मुँह धो आ दोबारा चाय नहीं बनाउंगी अब " काव्य अपने भीतर उठ ते सवालों को लिये चाय पीने लगती है अगला भाग जारी..... #पंखुड़ी
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