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Best बनूँ Shayari, Status, Quotes, Stories

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Rajendra Prasad Pandey Kavi

#बनूँ शिल्पी अगर कोई तो तेरा अक्स ले आऊँ।

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Rajendra Prasad Pandey Kavi

#बनूँ शिल्पी अगर कोई तो तेरा अक्स ले आऊँ।

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Lata Sharma सखी

#Yaad #Zid

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Suyashi Mishra

मेरे ग़ज़लों के रहबर बन जाओ❤ #ग़ज़ल #मुसाफिर #शायरी nojoto #nojotoshayri #lovepoem

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मैं बनूँ तुम्हारा सफर कोई
तुम मेरे मुसाफिर बन जाओ

मैं कल-कल बहती नदी कोई
तुम मेरा किनारा बन जाओ

मैं रेगिस्तान की उड़ती धूल कोई
तुम बारिश की बूंदें बन जाओ

मैं बेजार रूह का गीत कोई
तुम उसकी सरगम बन जाओ

मैं दर-दर भटकता किरदार बनूँ
तुम मेरी कहानी बन जाओ

मैं सिद्दत से जब इश्क लिखूँ
तुम ग़ज़लों के रहबर बन जाओ मेरे ग़ज़लों के रहबर बन जाओ❤
#ग़ज़ल
#मुसाफिर
#शायरी 
#nojoto
#nojotoshayri
#lovepoem

कनक लता " ज़ज्बात "

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मैं रमणी महाकाली की
किस भाव मैं तेरी राधा बनूँ
मैं जोगिनी जटाधारी की
किस भाव मैं तेरी मीरा बनूँ
हर भाव तो हृदय का जला दिया तुमने
किस भाव मैं तेरे भाव धरूँ
मेरी अनाड़ी बुद्धि से जितना समझी तुम्हें
प्रयास किया
हर प्रयास में तुमने कभी गलत
कभी अपराधी बना दिया
क्षण - दिवस - मास - वर्ष बीता
प्रतिक्षण तुमने मेरा एक - एक भाव रीता
जब अस्तित्व ही नहीं मेरा
तुम्हारी दृष्टि में कुछ भी
अब भावना का क्या भाव सखे !

aamil Qureshi

#गहरारिश्ता Priya Sarita Rani Vinod Kumar Singh Monika Renu Sihag @NJ@LI AHI®

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मैं लफ्ज़ बनूँ तेरे  ,तू मेरी जुबां बन जाना 
मैं क़दम बनूँ तेरे, तू मेरे  निशां बन जाना


हमे देख कर हैरां हो ये सब दुनिया वाले 
दो जिस्म दिखें हम ,पर एक ही जां बन जाना

आमिल 


 #गहरारिश्ता Priya Sarita Rani Vinod Kumar Singh Monika Renu Sihag  @NJ@LI AHI®

Sarthak dev

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कल के सुनहरे भविष्य का राज मैं आज बनूँ
किसी बेटी का संम्मान बनूं 
आज बेटा कल पिता महान बनूँ
कुछ बनु या न बनूँ 
मगर एक अच्छा इंसान बनूं ।

Ashwani Dixit

मैं विलीन होकर मुझमें #dixitg

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मैं अदम्य अद्भुद अनुपम अतुलित अलौकिक अंश बनूँ
जिस सरोज में नित नए पंकज नवल कड़ी का वंश बनूँ

प्राणों में श्वांस समान बहे, ऊर्जा धमनी में बहती हो
हर प्रातः परिष्कृत पूर्ण बने, संध्या संरचना रहती हो

मैं पूर्ण बनूँ मैं निष्कलंक, कलुषित बंधन को तोडूं मैं
मैं निराकार में बस जाऊं, मिथ्या भौतिकता छोडूं मैं

मैं विलीन होकर मुझमें, मुझको मुझसे ही जोड़ रहा
जो भव बंधन सब मिथ्या थे, एक एक कर तोड़ रहा मैं विलीन होकर मुझमें

#dixitg

Change4 Thoughts

हर एक को लगता है कि मैं खास बनूं, 
इस एहसास से की मैं भी एक इतिहास बनूँ 

हर एक को बनाना है खास मेरा,
जिंदगी में, किसी की चाहत है खास बनूँ

बिन वादों के थामना चाहता हूँ मैं हाथ तेरा
 बिना सोचे, जहाँ तक तू ले चले संग चलना चाहता हूँ
ये मान कर आखिरी एहसास मेरा,मैं लिखता हू
 और हर लेखनी में करता हूँ ज़िक्र तेरा,

बन के अल्फाज मेरे कविता की, तू बोलती रहे और 
मैं पढता रहूँ ,सुनता रहूँ, जिनगुनाता रहूँ
और ज़िन्दगि यूँही बस चलती रहे। 💭 #quote #quotes #lifequotes #quotestags #instatags @insta.tags #instaquote #quoteoftheday #quotestagram #instaday #instanote #funnyquotes #life #writing #meme #quotesdaily #quotesgram #quotesofinstagram #instamood #instalike #igers #daily #feeling #instadaily #true #wisewords #special #words

रजनीश "स्वच्छंद"

त्रिशंकु।। नियत और नियति के महासमर में, बन त्रिशंकु डोल रहा। निजकर्मों की हर एक आहट पर, भविष्य द्वार हूँ खोल रहा। जब उठना था बैठा रहा,

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त्रिशंकु।।

नियत और नियति के महासमर में,
बन त्रिशंकु डोल रहा।
निजकर्मों की हर एक आहट पर,
भविष्य द्वार हूँ खोल रहा।

जब उठना था बैठा रहा,
जब चलना था ठहर गया।
दम्भ काल्पनिक पाले था,
सच देखा तो सिहर गया।
कब सपनों का साथ रहा,
वृत्ताकार बस चलना था।
तिनके चुन चुन जो बुने थे,
ठेस लगी और बिखर गया।
कोई जुगत नहीं संयोग नहीं,
रहा अनुकूल ये योग नहीं।
चिंगारी बन जलता दर्द रहा,
वैद्य कहे है कोई रोग नहीं।
आंसू भी छलक अब सूखे हैं,
बिन पानी दरिया में डूबे हैं।
आकंठ रहा अहसास मुझे,
भँवर में तैर रहे किस बूते हैं।
चपल हुआ अब चपल भी नहीं,
सफल तो रहा है सफल भी नहीं।
आस के धागे बस रहे उलझते,
भविष्य नहीं कोई कल भी नहीं।
कब सार थी गर्भित इन शब्दों में,
बस बजता ढोल रहा।
नियत और नियति के महासमर में,
बन त्रिशंकु डोल रहा।

एक आस पुंज की ज्योति लिए,
तमद्वार उलाहना चलती रही।
दिन के उजियारे तपन बड़ी थी,
जीवन मे रात उतरती रही।
सूरज का उगना भी मेरे,
राहों को रौशन कब कर पाया।
वृक्ष लगाए ताड़ के बैठा,
कैसे मिले फिर कोई छाया।
बिन आयाम ही मैं बहुआयामी था,
तज सारे कर्म बना फलकामी था।
ना बुद्ध चन्द्रमा मंगल सूर्य,
फ़नकाढे शनि ही ग्रहों का स्वामी था।
आस्तिक बनूँ या बनूँ नास्तिक,
दे दस्तक खुद को बोल रहा।
नियत और नियति के महासमर में,
बन त्रिशंकु डोल रहा।

©रजनीश "स्वछंद" त्रिशंकु।।

नियत और नियति के महासमर में,
बन त्रिशंकु डोल रहा।
निजकर्मों की हर एक आहट पर,
भविष्य द्वार हूँ खोल रहा।

जब उठना था बैठा रहा,
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