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ठाकुर नीलमणि
चिंगारी ------------------------------------------------------- ये उजलि ये काली, धुआ संग लाली, लपटो से बिखरती हूई ये चिंगारी, बस्ती को जला के मचल क़्यो रही है ! कभी इस गली तो कभी उस मोहल्ले , हवा मैं तैरती हुई चल रही है, घरो से निकलकर , तो छत से फिसलकर,, चौराहे पे जा के .... सभंल क़्यो रही है! ये उजली ये काली..............................रही है! लपलपाती जिभ से कच्चे घरो को , छोटे - बडो को , दरवाजे से निकलकर तो, खिड्र्की से फिसलकर, खूद मे लपेटे निगल क़्यो रही है! जख्मि झुलसे बदन ये, चिथड्रो से कफन ये, रातो को घरो से, निकल कंधो पर बोझ , चल क़्यो रही है! करुणा का नजारा , था किसका दोस सारा, अजनबी मैं बेचारा , पूछ्ता किससे कि ये... बस्ती जल क़्यो रही है! ये उजली ये काली........................................रही है! by - Nilmani Thakur #चिंगारी
Pradeep Kalra
“सख़्त ज़रूरत है” क्यों घुटन ज़िन्दगी में, दबे हुए सारे ज़ज़्बात है, बच्चों वाली शरारत की, अब सख्त ज़रूरत है, क्यों मुरझाते चेहरों में, झुकी झुकी से नज़र है, उठी उठी निगाहों की, अब सख्त ज़रूरत है [7] क्यों वापस लौटाते नहीं, लेते जो प्रकृति से है, #कविता
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया
read moreslni
हो रातों का अंधियारा या दिन की उजली धूप हो ना घूरे मुझको तीखे नैन ना आंखे उनकी धूर्त हो कोमल नहीं मै अबला नहीं लेकिन नारी का सम्मान हूं उड़ना मुझे ऐसे जहां में जहां बेटी होना आशाओं का एक दीप हो ना जमाने की कातर नज़रों का खौफ हो ना कोख में ही दफन होने का डर बस मिल जाएं वो पंख कि पापा मै भी चिड़िया सी उड जाऊं और बेखौ फिरूं मै फिर चाहे हो रातो का अंधियारा दिन की उजली धूप हो "सलोनी" #बेखौफ
Nikhil Kumar
क्या लिखूँ तुम्हें ओ हृदय प्रिये, उजली काया कंचन लिख दूँ, फूलों का पुष्पाहार लिखूँ, या फूलों का उपवन लिख दूँ, पुरवा की ठण्डी हवा लिखूँ, या तूफाँ का मंजर लिख दूँ, मधु लिखूँ तुम्हें मीठेपन सा, या नशे की मधुशाला लिख दूँ, नैनों को झील समान लिखूँ, या अमृत का प्याला लिख दूँ, क्या लिखूँ तुम्हें ओ हृदय प्रिये, उजली काया कंचन लिख दूँ। @निखिल क्या लिखूँ तुम्हें....
क्या लिखूँ तुम्हें.... #poem
read moreMansoor Adab Pahasvi
#OpenPoetry 😍 कुछ दोहे आपके लिए 😍 तुमने काँटे बो दिए , रख कर सर पर ताज दौलत शोहरत भूख में, खा जाती हैं लाज मंज़िल तक आ ही गये, भरते भरते आह जिसकी जितनी चाह थी, उसकी उतनी राह उजली उजली सुब्ह से, कहनी थी ये बात डरा नहीं पाई हमें, वो अंधियारी रात क्या पंडत क्या मौलवी, करते फिरते जाप मन के अंदर मैल था, कैसे मिटते पाप #दोहे
Lata Sharma सखी
मन बंजारा सा दिल आवारा सा, ये मेरा मन बंजारा सा, है दिल तेरा आवारा सा, भटकता है बस तेरे लिए, ढूँढता है बस तुझको ही, हां ये मन पागल सा दिल दीवाना सा, कबसे तरस रहा प्यार को तेरे, तडप रहा दीदार को तेरे... ये मन सयाना सा, दिल मासूम सा, जी रहा तुझ बिन संतोष करके, जिद कर रहा कि एक रोज मिलोगे तुम, ये मन मेरा चाँद सा दिल तेरा चाँदनी सा, रह रहा यादों में उजली उजली, बहक रहा रातों में संदली संदली। ©सखी #मन #मेरा #दिल #तेरा
Pragati Shukla
कोशुर( कश्मीर) पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। कोशुर( कश्मीर) पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। "केसरी होते बादलों से मैंने पूछा, कोशुर का नजारा?
कोशुर( कश्मीर) पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। "केसरी होते बादलों से मैंने पूछा, कोशुर का नजारा?
read morePihoo
देखा क्या तुमने उस घटा को जो बरस कर गई है आसमां सुथरा सा लगता हर किरन उजली सी लगती उस घटा से पूछना क्या घने बादल थे आए बिजलियां सीने में कड़की फिर पवन भी शीत लाए सर्द रातों का वो आलम होंठ भी थे कपकपाते देख बादलों का अंधेरा मौत भी धुंधली सी लगती आसमां सुथरा सा लगता हर किरन उजली सी लगती pihoo..❤ आसमां उजला सा लगता हर किरन सुथरी सी लगती...#my #poetry#❤# 😘