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Raj choudhary "कुलरिया"

#कदम्ब Amita Tiwari vks Siyag Roshani Thakur deepti Pushpvritiya Harlal Mahato Sandip rohilla

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तू कदम्ब का... दरख़्त जानम
पत्ते पत्ते...
विचर लूँ क्या ?
शीतल सुनहरी... छाँव है तेरी
कुछ पल ...यहां सर
धर लूँ क्या ?
बरसो पड़ी....विरह में नैना
कर काजल...प्रियम तुझको
सुकूंन लोचन....
भर लूँ क्या ?
हिम हिमालय....हसीन वादियां
तुझमे सबको....
हर लूँ क्या ?
अनकही सी....सहस्त्र बाते
तुझ संग...अब मैं
कर लूं क्या ?
तुझमे जीवन सब ढूंढे....
तुझ पर खुद से....
मर लूँ क्या ?
तू कदम्ब का दरख़्त जानम....
पत्ते पत्ते...
विचर लूँ क्या ?

©Raj choudhary "कुलरिया" #कदम्ब
 Amita Tiwari  vks Siyag Roshani Thakur deepti Pushpvritiya  Harlal Mahato Sandip rohilla

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 50 - ये असुर अभी कल तेजस्वी रोष में आ गया था। वह दाऊ का हाथ पकडकर मचल पड़ा था - 'तू उठ और लकुट लेकर मेरे साथ चल! मैं सब असुरों को - सब राक्षसों को और उनके मामा कंस को भी मार दूंगा।' नन्हे तेजस्वी को क्या पता कि कंस कौन है। वह राक्षसों का मामा है या स्वयं दाऊ का ही मामा है। कंस बुरा है; क्योंकि वह ब्रज में बार-बार घिनौने असुर भेजता है, इसलिए तेजस्वी उसे मार देना चाहता था। उसे कल दाऊ ने समझा-बहलाकर खेल में लगा लिया। लेकिन तेजस्वी की बात देवप्रस्थ के मन में जम गयी लगती है। अब यह आज

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।।श्री हरिः।।
50 - ये असुर

अभी कल तेजस्वी रोष में आ गया था। वह दाऊ का हाथ पकडकर मचल पड़ा था - 'तू उठ और लकुट लेकर मेरे साथ चल! मैं सब असुरों को - सब राक्षसों को और उनके मामा कंस को भी मार दूंगा।'

नन्हे तेजस्वी को क्या पता कि कंस कौन है। वह राक्षसों का मामा है या स्वयं दाऊ का ही मामा है। कंस बुरा है; क्योंकि वह ब्रज में बार-बार घिनौने असुर भेजता है, इसलिए तेजस्वी उसे मार देना चाहता था। उसे कल
दाऊ ने समझा-बहलाकर खेल में लगा लिया। लेकिन तेजस्वी की बात देवप्रस्थ के मन में जम गयी लगती है। अब यह आज

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 75 - करुणा 'कनूं, तुझे किसने मारा है?' सुकुमार कन्हाई की पीठ पर कटिदेश में एक नन्हीं-सी खरोंच आ गयी है। रक्त आया नहीं है किंतु छलछला आया-सा लगता है। नन्हीं खरोंच-किंतु श्याम कितना सुकूमार है। दाऊ के कमल-दल के समान सहज अरुण नेत्र सर्वथा किंशुकारुण हो उठे हैं और उनमें जल भर आया है। भ्रूमण्डल कठोर हो गये हैं और मुख तमतमा आया है। उसके रहते कोई उसके भाई की ओर अंगुली उठा सकता है। कौन है वह? 'कहां ?मुझे किसने मारा?' श्याम को पता ही नहीं कि उसे खरोंच भी आयी। 'यह क्या है?' दाऊ के नेत्र

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|| श्री हरि: ||
75 - करुणा

'कनूं, तुझे किसने मारा है?' सुकुमार कन्हाई की पीठ पर कटिदेश में एक नन्हीं-सी खरोंच आ गयी है। रक्त आया नहीं है किंतु छलछला आया-सा लगता है। नन्हीं खरोंच-किंतु श्याम कितना सुकूमार है। दाऊ के कमल-दल के समान सहज अरुण नेत्र सर्वथा किंशुकारुण हो उठे हैं और उनमें जल भर आया है। भ्रूमण्डल कठोर हो गये हैं और मुख तमतमा आया है। उसके रहते कोई उसके भाई की ओर अंगुली उठा सकता है। कौन है वह?

'कहां ?मुझे किसने मारा?' श्याम को पता ही नहीं कि उसे खरोंच भी आयी।

'यह क्या है?' दाऊ के नेत्र

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 67 - मनुहार 'दादा, तू आज उदास क्यों है?' श्यामसुंदर आया और बड़े भाई का हाथ अपने हाथ में लेकर पास बैठ गया है। 'तू खेलता तो है नहीं।' 'कनूं तू खेल। मेरा जी खेलने को नहीं होता।' आज दाऊ गुमसुम बैठा है। पता नहीं किसकी व्यथा ने इसे क्षुब्ध किया है आज। 'मैं नाचूं? देखेगा तू?' मोहन देखता है कि आज हठ करने से कोई लाभ नहीं। कहने से दाऊ खेलने भी लगे तो ऐसे बेमन के खेलने में भला, क्या आनंद आना है।

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|| श्री हरि: ||
67 - मनुहार

'दादा, तू आज उदास क्यों है?' श्यामसुंदर आया और बड़े भाई का हाथ अपने हाथ में लेकर पास बैठ गया है। 'तू खेलता तो है नहीं।'

'कनूं तू खेल। मेरा जी खेलने को नहीं होता।' आज दाऊ गुमसुम बैठा है। पता नहीं किसकी व्यथा ने इसे क्षुब्ध किया है आज।

'मैं नाचूं? देखेगा तू?' मोहन देखता है कि आज हठ करने से कोई लाभ नहीं। कहने से दाऊ खेलने भी लगे तो ऐसे बेमन के खेलने में भला, क्या आनंद आना है।


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