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Best वाम Shayari, Status, Quotes, Stories

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Chetan malviya

जो इश्क़ में होते है वो वाम होते है..,

बाकी सारे उनके सामने आम होते है..।। #वाम #आम #इश्क़ #जमाना #yqbaba #yqquotes #yqfeelings #yqhindiurdu

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 50 - ये असुर अभी कल तेजस्वी रोष में आ गया था। वह दाऊ का हाथ पकडकर मचल पड़ा था - 'तू उठ और लकुट लेकर मेरे साथ चल! मैं सब असुरों को - सब राक्षसों को और उनके मामा कंस को भी मार दूंगा।' नन्हे तेजस्वी को क्या पता कि कंस कौन है। वह राक्षसों का मामा है या स्वयं दाऊ का ही मामा है। कंस बुरा है; क्योंकि वह ब्रज में बार-बार घिनौने असुर भेजता है, इसलिए तेजस्वी उसे मार देना चाहता था। उसे कल दाऊ ने समझा-बहलाकर खेल में लगा लिया। लेकिन तेजस्वी की बात देवप्रस्थ के मन में जम गयी लगती है। अब यह आज

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।।श्री हरिः।।
50 - ये असुर

अभी कल तेजस्वी रोष में आ गया था। वह दाऊ का हाथ पकडकर मचल पड़ा था - 'तू उठ और लकुट लेकर मेरे साथ चल! मैं सब असुरों को - सब राक्षसों को और उनके मामा कंस को भी मार दूंगा।'

नन्हे तेजस्वी को क्या पता कि कंस कौन है। वह राक्षसों का मामा है या स्वयं दाऊ का ही मामा है। कंस बुरा है; क्योंकि वह ब्रज में बार-बार घिनौने असुर भेजता है, इसलिए तेजस्वी उसे मार देना चाहता था। उसे कल
दाऊ ने समझा-बहलाकर खेल में लगा लिया। लेकिन तेजस्वी की बात देवप्रस्थ के मन में जम गयी लगती है। अब यह आज

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 48 - गौ-गणना आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है। सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

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।।श्री हरिः।।
48 - गौ-गणना

आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है।

सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 42 - कुछ बात है आज कन्हाई वन में आकर बहुत थोड़ी देर खेलता रहा है। यह बालकों का साथ छोड़कर अकेले मालती-कुञ्ज में आ बैठा है। दाऊ तो प्राय: अकेले बैठ जाता है; किंन्तु कृष्ण इस प्रकार अकेले चुपचाप बैठे, यह इस चपल के स्वभाव के अनुकूल तो है नहीं। इसलिए अवश्य कुछ बात है। मालती ने चढ़कर तमाल को लगभग आच्छादित कर लिया है। नीचे से ऊपर तक इस प्रकार छा गयी है कि भूमि से तमाल के शिखर तक केवल हरित मन्दिर दीखता है। इसमें भीतर जाने का द्वार भी छोटा ही है। अवश्य इतने छिद्र मध्य में हैं कि वायु तथा

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।।श्री हरिः।।
42 - कुछ बात है

आज कन्हाई वन में आकर बहुत थोड़ी देर खेलता रहा है। यह बालकों का साथ छोड़कर अकेले मालती-कुञ्ज में आ बैठा है। दाऊ तो प्राय: अकेले बैठ जाता है; किंन्तु कृष्ण इस प्रकार अकेले चुपचाप बैठे, यह इस चपल के स्वभाव के अनुकूल तो है नहीं। इसलिए अवश्य कुछ बात है।

मालती ने चढ़कर तमाल को लगभग आच्छादित कर लिया है। नीचे से ऊपर तक इस प्रकार छा गयी है कि भूमि से तमाल के शिखर तक केवल हरित मन्दिर दीखता है। इसमें भीतर जाने का द्वार भी छोटा ही है। अवश्य इतने छिद्र मध्य में हैं कि वायु तथा

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 35 - क्या करेगा? 'कनूँ ! तू खो जाय तो क्या करेगा?' तोक दौड़ा-दौडा आया और कन्हाई का दक्षिण कर पकड़कर पूछ बैठा। आपको यह प्रश्न बहुत अटपटा-असंगत लग सकता है। यह तो ऐसा ही प्रश्न है जैसे कोई पूछे कि 'सूर्य आकाश में खो जाय तो क्या करे?' भला यह व्रजराजकुमार वृन्दावन में खो कैसे सकता है? लेकिन तोक तो गोपकुमारों में सबसे छोटा है। उसके लिए कोई प्रश्न अटपटा नहीं है। कृष्ण के समान ही इन्दीवर सुन्दर, वैसी ही घुंघराली अलकों में मयूर-पिच्छ लगाये, पीताम्बर की कछनी-उत्तरीयधारी वनमाली तोक केवल, आ

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।।श्री हरिः।।
35 - क्या करेगा?

'कनूँ ! तू खो जाय तो क्या करेगा?' तोक दौड़ा-दौडा आया और कन्हाई का दक्षिण कर पकड़कर पूछ बैठा।

आपको यह प्रश्न बहुत अटपटा-असंगत लग सकता है। यह तो ऐसा ही प्रश्न है जैसे कोई पूछे कि 'सूर्य आकाश में खो जाय तो क्या करे?' भला यह व्रजराजकुमार वृन्दावन में खो कैसे सकता है? लेकिन तोक तो गोपकुमारों में सबसे छोटा है। उसके लिए कोई प्रश्न अटपटा नहीं है।

कृष्ण के समान ही इन्दीवर सुन्दर, वैसी ही घुंघराली अलकों में मयूर-पिच्छ लगाये, पीताम्बर की कछनी-उत्तरीयधारी वनमाली तोक केवल, आ

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 26 - सेवा इस कन्हाई की सेवा ही सबसे अटपटा काम है। इसने तो जैसे छठी में से सीखा है कि सेवा इसी को करनी है - सबकी करनी है और इसकी सेवा करने का प्रयत्न करो तो ऐसे टरका देता है कि मत पूछो बात। धर-पकड कर इसकी सेवा करनी पड़ती है। नन्हा था तब से बाबा के कहने से पूर्व उनके वस्त्र लोटा या लकुट अथवा दोहनी सिर पर रख कर उसके पास पहुंचता था - 'बाबा! तुम स्नान करोगे? पूजा करोगे? गोचारण को जाओगे। गाय दुहोगे?' जब इसे जो सूझ जाय तब मानो बाबा को वही करना है। कोई ऋषि-मुनि या ब्राह्माण भवन में पध

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|| श्री हरि: ||
26 - सेवा

इस कन्हाई की सेवा ही सबसे अटपटा काम है। इसने तो जैसे छठी में से सीखा है कि सेवा इसी को करनी है - सबकी करनी है और इसकी सेवा करने का प्रयत्न करो तो ऐसे टरका देता है कि मत पूछो बात। धर-पकड कर इसकी सेवा करनी पड़ती है।

नन्हा था तब से बाबा के कहने से पूर्व उनके वस्त्र लोटा या लकुट अथवा दोहनी सिर पर रख कर उसके पास पहुंचता था - 'बाबा! तुम स्नान करोगे? पूजा करोगे? गोचारण को जाओगे। गाय दुहोगे?' जब इसे जो सूझ जाय तब मानो बाबा को वही करना है।

कोई ऋषि-मुनि या ब्राह्माण भवन में पध

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 11 - गोपाल 'कनूँ तू देवता है?' 'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे। पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।

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|| श्री हरि: || 
11 - गोपाल
'कनूँ तू देवता है?'

'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे।

पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।


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