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S Ram Verma (इश्क)
#OpenPoetry प्रेम पाना तुम्हारा ! मैंने कभी नहीं चाहा पाना प्रेम तुम्हारे सिवा किसी और का ; मैंने तो चाहा भी और माँगा भी प्रेम एक सिर्फ तुम्हारा ही ; तुम मुझे प्रेम करो और करे उतना ही प्रेम मुझे तुम्हारी संतति भी ; मैं चाहता हूँ प्रेम देना भी सिर्फ एक तुम्हे और तुम्हारी संतति को ही ; तुमको प्रेम करने और तुम्हारा प्रेम पाने के लिए लड़ रहा हूँ ; मैं आज भी इस ज़माने से और लड़ता रहूँगा कल भी क्योकि मैंने कभी नहीं चाहा प्रेम पाना किसी और का ! #प्रेम #पाना #तुम्हारा
Pravin Tripathi
_*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1* *संतति को देता सदा, गहन वृक्ष सम छाँव।* *कष्ट न हो संतान को, खुद लग जाता दाँव।।2* *पर्दे के पीछे करे, संतति के सब काम।* *देकर उनको हर खुशी, करता वह विश्राम।।3* *जीवन की हर जटिलता, करता रहता दूर।* *बिन पाले वह लालसा, दे ख़ुशियाँ भरपूर।।4* *संकट यदि हो सामने, बन जाता दीवार।* *दृढ़ता से वह हो खड़ा, सह लेता हर वार।।5* *सही गलत में फर्क कर, दिखलाता वह राह।* *बच्चे गलती मत करें, इतनी रखता चाह।6* *ऊपर से वह शुष्क अरु, दिखता बहुत कठोर।* *अंदर सागर नेह का, लेता सदा हिलोर।।7* *प्रेम प्रदर्शन कर सके, पितु का नहीं स्वभाव।* *आवश्यकता पूरी करे, खुद सह सर्व अभाव।।8* *अनुशासन की नींव को, पिता करे मजबूत।* *संयम से कैसे जियें, दे खुद नित्य सुबूत।।9* *शुद्ध विचारों से सदा, जीवन बने पवित्र।* *देकर दंड उलाहना, संयत करे चरित्र।।10* *मातु पिता समतुल्य हैं, सच्ची है यह बात।* *दोनो परम अमूल्य हैं, माता हो या तात।।11* *जीवन के संग्राम में, पिता सदा है साथ।* *हिम्मत देता है हमें, और पकड़ता हाथ।।12* *माता संस्कारित करे, समझे अपना अंग।* *रह अदृश्य हरदम पिता, सदा जिताता जंग।।13* *बच्चों को शिक्षा दिला, दिखलाता वह राह।* *बच्चे बस उन्नति करें, मन में रखता चाह।।14* *ऋण न चुका पाये कभी, हो कोई संतान।* *वृद्धावस्था में मिले, बस थोड़ा सा मान।।15* *प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 16 जून 2019* _*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1* *संतति को देता सदा, गहन वृक्ष सम छाँव।* *कष्ट न हो संतान को, खुद लग जाता दाँव।।2*
_*पितृ दिवस पर सभी पिताओं को समर्पित कुछ दोहे...*_ *देवतुल्य है हर पिता, वह जीवन का मूल।* *वह पराग के तुल्य है, जिससे खिलते फूल।।1* *संतति को देता सदा, गहन वृक्ष सम छाँव।* *कष्ट न हो संतान को, खुद लग जाता दाँव।।2*
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*विगत सप्ताह _माँ_ पर सृजित दोहों का संकलित रूप। सुधार के लिए सुझाव का प्रार्थी हूँ....* *अम्मा मैया मातु सब, जननी के हैं नाम।* *माता बिन कब बन सका, जग में कोई काम।।1* *माता जीवनदायिनी, माता सुखद फुहार।* *संतति संकट में पड़े, लेती सदा उबार।।2* *माता पालनहार है, ममता की प्रतिमूर्ति।* *खुद से पहले वह करे, सबकी इच्छापूर्ति।।3* *मैया का ऋण है बड़ा, उऋण न होगे आप।* *उसके ही आशीष से, बढ़ता पुण्यप्रताप।।4* *माता का पद ब्रह्म सम, माता अम्ब समान।* *माता के आशीष बिन, हो न सके कल्यान।।5* *जननी है जगवाहिनी, मैया पालनहार।* *माता की लें चरण रज, होगा बेड़ा पार।।6* *संस्कारों के बीज बो, संतति पाले मात।* *रचती दृढ़ व्यक्तित्व माँ, खटती है दिन रात।।7* *जीवन झंझावात से, जननी लड़ती नित्य।* *संतानें जब हों सफल, होती वह कृत कृत्य।।8* *निज संतति फूले-फले, रखे यही मन आस।* *करे निछावर वह सभी, जो है उसके पास।।9* *वो विचलित होती नहीं, भले कठिन हो राह।* *बच्चों पर विपदा न हो, हर जननी की चाह।।10* *खुद निर्धनता में रही, पर पहनाया ताज।* *चुका सकेंगे क्या कभी, ऋण को बच्चे आज।।11* *भूलें मत कर्तव्य हम, माँ का हो सम्मान।* *उनकी लाठी हम बनें, चले यही अभियान।।12* *यत्न करें कितना भले, जीवन भर हमलोग।* *चुका न पायें मातृ ऋण, भले करें उद्योग।।13* *नतमस्तक हों हम सभी, करके माँ की याद।* *प्रथम मातृ सम्मान हो, बाकी उसके बाद।।14* *पीकर जिसका दूध हम, हुए बड़े बलवान।* *करें नमन उस मातु को, मनुज और भगवान।।15* *प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 10 जून 2019*
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