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Prerna Singh
जिंदगी को समझने की कोशिश करोगे तो उलझ के रह जाओगे। बस इतना जान लो कि तुम्हें यहाँ टाइम पास करना हैं। फिर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करना हैं। तब तक कुछ ऐसा कोई काम करना, जिस से किसी को तकलीफ न हो और न तुम्हें हो.... ©Prerna Singh जिंदगी को समझने की कोशिश करोगे तो उलझ के रह जाओगे। बस इतना जान लो कि तुम्हें यहाँ टाइम पास करना हैं। फिर अपने गंतव्य की ओर #प्रस्थान करना है। तब तक कुछ ऐसा कोई काम करना जिस से किसी को तकलीफ न हो और न तुम्हें हो.... #mountainsnearme
जिंदगी को समझने की कोशिश करोगे तो उलझ के रह जाओगे। बस इतना जान लो कि तुम्हें यहाँ टाइम पास करना हैं। फिर अपने गंतव्य की ओर #प्रस्थान करना है। तब तक कुछ ऐसा कोई काम करना जिस से किसी को तकलीफ न हो और न तुम्हें हो.... #mountainsnearme
read moreअदनासा-
हमारी यह सुंदरता प्रकृति के कारण है प्रकृति की सुंदरता हमारे कारण नही है सूर्य, जल, स्थल पवन एवं वन से प्राण है अन्यथा स्वर्ग लोक में प्रस्थान आसान है ©अदनासा- #हिंदी #प्रकृति #सुंदरता #हम #प्राण #स्वर्ग #प्रस्थान #Instagram #Facebook #अदनासा प्रकृति हमारी मां की तरह ही नही अपितु मां ही है, वह हमें प्रेम, स्नेह एवं ममता से पाल-पोस कर बड़ा करती है, हमें वह सबकुछ प्रदान करती है जिसकी हमें आवश्यकता है, लेकिन हम उस नालायक बेटे की तरह, उसका अपमान करते है, परंतु मां का अपमान देखकर ब्रम्हांड की एक महाशक्ति क्रोधित होती है एवं हमें दंडित करती है, जिसे हम प्राकृतिक आपदा कहते है।💐💐🌹🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳
#हिंदी #प्रकृति #सुंदरता #हम #प्राण #स्वर्ग #प्रस्थान #Instagram #Facebook #अदनासा प्रकृति हमारी मां की तरह ही नही अपितु मां ही है, वह हमें प्रेम, स्नेह एवं ममता से पाल-पोस कर बड़ा करती है, हमें वह सबकुछ प्रदान करती है जिसकी हमें आवश्यकता है, लेकिन हम उस नालायक बेटे की तरह, उसका अपमान करते है, परंतु मां का अपमान देखकर ब्रम्हांड की एक महाशक्ति क्रोधित होती है एवं हमें दंडित करती है, जिसे हम प्राकृतिक आपदा कहते है।💐💐🌹🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 7 - निष्ठा की विजय 'मैं महाशिल्पी को बलात् अवरुद्ध करने का साहस नहीं कर सकता।' स्वरों में नम्रता थी और वह दीर्घकाय सुगठित शरीर भव्य पुरुष सैनिक वेश में भी सौजन्य की मूर्ति प्रतीत हो रहा था। वह समभ नहीं पा रहा था कि आज इस कलाकार को कैसे समभावें। 'मेरे अन्वेषक पोतों ने समाचार दिया है कि प्रवाल द्वीपों के समीप दस्यु-नौकाओं के समूह एकत्र हो रहे हैं। ये आरब्य म्लेच्छ दस्यु कितने नृशंस हैं, यह श्रीमान से अविदित नहीं है और महाशिल्पी सौराष्ट्र के
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 17 - सात्विक त्याग कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन। संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।। (गीता 18।9)
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 9 - देखे सकल देव 'भगवन! मैं किसकी आराधना करूं!' वेदाध्ययन पूर्ण किया था उस तपस्वी कुमार ने महर्षि भृगु की सेवा में रहकर। महाआथर्वण का वह शिष्य स्वभाव से वीतराग, अत्यन्त तितिक्षु था। उसे गार्हस्थ्य के प्रति अपने चित्त में कोई आकर्षण प्रतीत नहीं हुआ। 'वत्स! तुम स्वयं देखकर निर्णय करो!' आज का युग नहीं था। शिष्य गुरुदेव के समीप गया और उसके कान में एक मन्त्र पढ दिया गया। वह अपने गुरुदेव के सम्प्रदाय मे दीक्षित हो गया। यह कौन सोचे कि उस जीव का भ
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