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Mukesh Poonia
चाकू, खंजर, तीर और तलवार लड़ रहे थे कि कौन? ज्यादा गहरा घाव देता है, शब्द... पीछे बैठे.... मुस्कुरा रहे थे। . ©Mukesh Poonia #चाकू, #खंजर, #तीर और #तलवार लड़ रहे थे कि कौन? ज्यादा #गहरा #घाव देता है, #शब्द... पीछे बैठे.... #मुस्कुरा रहे थे।
सुसि ग़ाफ़िल
आदमी - आदमी से मिलता है , दिल कम जिस्म ज्यादा मिलता है| भूल जाता है पिछली मुलाकात को, फिर वही कर्मकांड करने को मिलता है| भूख ज्यादा बढ़ रही है अब , इश्क़ पानी से कम खून से ज्यादा मिलता है| फूल भी मुरझा जाते हैं प्रेमियों के हाथों में, इस तरह का इश्क आजकल भरपूर मिलता है| दुकानदार हो गए हैं या फिर भाड़े पर आता हैं, इश्क में फसाने वाला सरेआम नजरें मिलाता है| "सुशील" प्रेमियों के हाथों में गुलाब नहीं मिलता, मिलते चाकू छुरी जिंदगी भर साथ नहीं मिलता है| आदमी - आदमी से मिलता है , दिल कम #जिस्म ज्यादा मिलता है| भूल जाता है पिछली मुलाकात को, फिर वही #कर्मकांड करने को मिलता है| भूख ज्यादा बढ़ रही है अब , इश्क़ पानी से कम #खून से ज्यादा मिलता है|
Aarv;
🇮🇳Aarvi😊 ये चेहरे पर पर्दा लगाकर आखिर किसे परख़ रही है जब इसकी खूबसूरती सारी इसके आँखों मे झलक रही है ! #Eyes #चाकू तो बेवजह बदनाम है thriller कत्ल तो आंखे करती हैं😊
हेमंत कुमार "अकेला"
न लाल न नीली न काली हैं उसकी, आंखे बड़ी जहरीली है उसका! न कोई चाकू न ही तलवार रखती है, वो जुल्फे खोल लेती है होठ कर लाल रखती है! कत्ल करने का भी अलग अंदाज है उसका, वो अपने केशो को गालो पर डाल रखती है! न कोई चाकू रखती है न ही तलवार रखती है! वो जब नजरे झुकाती है पलक उपर उठाती है, मयखाने भूल जाओगे ऐसी मदीरा पिलाती है! अपने उड़ते हुए केशो को जब हल्के से सहलाती है, बिना सावन बिना बादल दिल मे बरसात लाती है! कानो मे झुमके रखती है पांव मे पायल रखती है, अपनी कातिल अदाओ से तुम्हे कर घायल रखती है! बिना मांगे बिना बोले वो तुमको लूट जाती है, नहीं समझे वही है जो तुम्हे जानू बुलाती है! ~ Alone_hemant #dilsekalamtak
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 12 - भगवान ने क्षमा किया ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।
read moreSamar Shem
kabir sinhg movie meri najaro m बहुत बहस हो चुकी है कबीर सिंह पर। मुझे बहस नहीं करनी है। साबित करने वालों ने उसे बुरा भी साबित कर दिया और बहुत अच्छा भी। मुझे बात करनी है लड़कों की। फिल्म देखकर निकले हुए मुश्किल से 2 घंटे हुए थे। भिवाड़ी से घर जाने के लिए ई रिक्शा का इंतजार था। ई रिक्शा आया उसमें आमने सामने लड़का-लड़की बैठे थे। मैं ई रिक्शा में बैठने लगा। झट से लड़का उठा और लड़की की तरफ बैठ गया। मैं भी उधर ही बैठ रहा था, क्योंकि ड्राइवर के जस्ट पीछे वाली सीट के मुकाबले सबसे पीछे वाली सीट आरामदायक होती है। लड़का लड़की को सिक्योर करते हुए मुझसे बोला कि उधर बैठ जाओ। ये लड़का कबीर सिंह नहीं था, क्योंकि कबीर तो गुस्से पर कंट्रोल नहीं कर सकता था। हां अगर मैंने उस लड़की को छू भी दिया होता तो यकीनन वो कबीर सिंह बन जाता। अगर इस बात पर यकीन ना हो तो किसी लड़के के सामने छूकर देख लेना। जबरन रंग लगाने पर कबीर सिंह ने भी वही किया जो गुस्से में एक इंसान कर पाता है। मैंने लड़कों को देखा है, अपनी प्रेमिकाओं की फिक्र करते हुए। भीड़ से बचाते हुए मेट्रो में, लिफ्ट में। बस में। उसे अपने आगे ऐसे खड़ा करते हैं ताकि कोई और उसको टच ना कर पाए। पता है क्यों खड़े होते हैं। क्योंकि वो लड़का है। उसे पता है लड़के लड़की को देखकर क्या सोचते हैं। उसे पता है लड़के कहां टच करना चाहते हैं। उसे पता है लड़की के साथ वो क्या चाहते हैं। कबीर सिंह भी जानता है ये बात। तभी तो दुपट्टा संभालने को कह देता है, ताकि कोई उसकी छाती का नाप दूर से ही ना ले सके। अब ये सवाल मत करना कि लड़की ही क्यों छाती छिपाए। लड़के क्यों नहीं। ये सवाल ऐसे लगते हैं ज़मीन ही नीचे क्यों रहे आसमां क्यों नहीं। औरत वो ज़मीन है, जिसने हर भार अपने ऊपर उठाया है, मर्द का भी। उससे ताकतवर कोई नहीं। बस उस ताकत को ही पहचानना है। कबीर सिंह औरत की ताकत को जानता है। तभी तो वो उस दर्द को जानता है, जिसपर कोई समाज खुलकर बात भी नहीं करता। पीरियड्स का दर्द। वो बताता है कैसे प्रेमिका को गोद में बैठाकर पुचकारना है। ये दर्द मेरे आसपास के लड़के नहीं जानते। उन्हें प्यार के नाम पर सिर्फ सेक्स करना आता है। लड़की का बैग कंधे से उतारना नहीं आता। कबीर आंसू पोंछता है, बैग संभालता है। ये प्यार है। मैंने तो ये देखा है कि मर्द लड़की का बैग पकड़ना शर्म का काम समझते हैं। कबीर लड़की को सिखाता है कि वो अपने परिवार से अपनी चॉइस की बात करे। वो अपने परिवार को प्यार और ज़िंदगी का फलसफा समझाता है। तभी तो कहता है कि पैदा होना, प्यार करना और मर जाना। 10 पर्सेंट ज़िंदगी यही है, बाकी तो 90 पर्सेंट रिएक्शन है। दुनिया रिएक्शन है। कबीर प्रेमी है। वो प्रेमी जो दूरी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा। इसलिए कबीर नशा ले रहा है। नहीं तो प्यार में कोई मर जाता है। कोई भाग जाता है। कोई भूखा रहकर मर जाना चाहता है। कोई लड़की को नुकसान पहुंचाता है। ये सुकून वाला था इतने गुस्से वाला कबीर जानता है कि प्यार क्या होता है। तभी तो वो लड़की के घर वालों को प्यार के मायने समझा रहा है। वो लड़की को चोट नहीं पहुंचाता। वो उसके घर वालों को नहीं पीटता। बल्कि लड़की के भाई के गाल को चूमकर किस के मायने समझा देता है। कबीर प्यार में है तभी तो कहता है कि ये उसकी बंदी है। बिल्कुल वैसा ही लगा जैसे कह रहा हो, खबरदार अगर मेरी बहन की तरफ आंख उठाकर देखी तो..। ये मेरी मां है। ये मेरी दादी है। ये मेरे पापा हैं। ये मेरा भाई है...। हां ये मेरी बंदी है कहना इसलिए अजीब लगता है कि अभी लड़की ये नहीं कहना सीख पाई है कि ये मेरा बंदा है। जैसे एक औरत दूसरी औरत से लड़ जाती है कि ये मेरा पति है। दूर रहना। डोरेे डाले तो आंखें नोच लूंगी। प्यार पैमाना साथ लेकर नहीं किया जा सकता कि पहले माप लें कि कहीं अधिकारों का तो उल्लंघन नहीं हो रहा है। चाकू उठाकर कपड़े उतरवाने वाला कबीर देखते हैं तो हमें रेप की कोशिश लगती है। मैंने लड़कों से सुना है कैसे उन्होंने लड़की की सलवार का नाड़ा तोड़ दिया। वो पकड़ती और रोकती रह गई। लेकिन उसके बाद लड़की विरोध नहीं करती। बस ये कहती रही, अभी जाओ कोई देख लेगा। फिर कभी करेंगे ये। लेकिन फिर भी दोनों छिप छिपकर करने वाले प्यार का सुख भोग लेते हैं। शायद राइटर ने भी लड़कों से ये बातें सुनी होंगी। तभी उसने जबरन वाला सीन लिख दिया। सिनेमा में समाज का सच दिखाने की हिम्मत होनी चाहिए, ताकि सही गलत की बहस शुरू हो सके। और वो इस सीन पर हुई भी। ये फिल्म की कामयाबी है। शादी का झांसा देकर रेप करने की खबरों से अखबार भरे रहते हैं। अगर कबीर जबरन रेप करने वाला होता तो हीरोइन के साथ में उस वक़्त सेक्स करने से रुक नहीं जाता, जब हीरोइन कहती है- आई लव यू कबीर। ये सुनकर क्यों रुका कबीर। वो तो चाकू की नोंक पर कपड़े उतरवा रहा था। फिर उसे क्यों लगा कि ये हीरोइन के साथ धोखा होगा। जो कह रहे हैं कि कबीर सिंह देखकर समाज पर बुरा असर पड़ेगा तो मैं तो चाहता हूं वो कम से कम कबीर ही बन जाएं। जो लड़की को पहले ही बता दें कि उसे फिजिकल सपोर्ट चाहिए। और ये सपोर्ट लेने के लिए लड़की की हां का इंतजार करे। जब लड़की उसे आई लव यू बोले तो सेक्स तभी करें जब वो भी उससे प्यार करते हो। नहीं तो कबीर की तरह ये सोचकर रुक जाएं कि उसके साथ धोखा है। अगर ऐसा हो तो शादी का झांसा देकर रेप की खबरों से अखबार नहीं भरेंगे। मुझे कबीर में वो कई लड़के नज़र आए, जो लड़की को देखकर सिर्फ अपने ज़हन में उसके साथ सेक्स करने की हसरत पालते हैं। जो किसी लड़की को अपनी बपौती समझते हैं। जो तथाकथित प्रेमी सनकी हो जाते हैं। इन्हीं वजहों से हमें कबीर का फेमिनिज्म, कबीर का प्रेम, कबीर का ज़िंदगी जीने का नज़रिया नज़र नहीं आता। इसलिए हम कबीर को अपने पैमाने से मापकर आदर्श देखना चाहते थे, कबीर ने हमारे ज़हन के दरीचे खोले। लोगों ने उसपर बहस की, इस फिल्म से और क्या चाहिए समाज को। ये ही तो दर्पण है। हां बस कोई लड़की प्रीति ना बने, जो हर मौके पर चुप रह जाए। लड़का टच करे तो पलटकर जवाब न दे। परिवार वाले अपनी मर्ज़ी थोपें तो ये ने बता सके कि उसका फैसला क्या है। लड़के ज़बरदस्ती करें तो पुलिस स्टेशन तक ना जा सके! samar shem। kabir singh movie meri najro m बहुत बहस हो चुकी है कबीर सिंह पर। मुझे बहस नहीं करनी है। साबित करने वालों ने उसे बुरा भी साबित कर दिया और बहुत अच्छा भी। मुझे बात करनी है लड़कों की। फिल्म देखकर निकले हुए मुश्किल से 2 घंटे हुए थे। भिवाड़ी से घर जाने के लिए ई रिक्शा का इंतजार था। ई रिक्शा आया उसमें आमने सामने लड़का-लड़की बैठे थे। मैं ई रिक्शा में बैठने लगा। झट से लड़का उठा और लड़की की तरफ बैठ गया। मैं भी उधर ही बैठ रहा था, क्योंकि ड्राइवर के जस्ट पीछे वाली सीट के मुकाबले सबसे पीछे वाली सीट आरामदा
kabir singh movie meri najro m बहुत बहस हो चुकी है कबीर सिंह पर। मुझे बहस नहीं करनी है। साबित करने वालों ने उसे बुरा भी साबित कर दिया और बहुत अच्छा भी। मुझे बात करनी है लड़कों की। फिल्म देखकर निकले हुए मुश्किल से 2 घंटे हुए थे। भिवाड़ी से घर जाने के लिए ई रिक्शा का इंतजार था। ई रिक्शा आया उसमें आमने सामने लड़का-लड़की बैठे थे। मैं ई रिक्शा में बैठने लगा। झट से लड़का उठा और लड़की की तरफ बैठ गया। मैं भी उधर ही बैठ रहा था, क्योंकि ड्राइवर के जस्ट पीछे वाली सीट के मुकाबले सबसे पीछे वाली सीट आरामदा
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 श्री हरिः 5 - सच्ची पुकार 'तुम प्रार्थना करने आये थे अल्फ्रेड?' सभ्यता के नाते तो कहना चाहिये था, 'मि० वुडफेयर' किंतु विल्सन राबर्ट में जो सहज आत्मीयता है अपने अल्प परिचितों के प्रति, उसके कारण वे शिष्टाचार का पूरा निर्वाह नहीं कर पाते और न उसे आवश्यक मानते हैं। उसका पूरा नाम है अल्फ्रेड जॉनसन वुडफेयर। चौंककर उसने पीछे मुड़कर देखा। समुद्र किनारे के इस छोटे से गांव में उसे जानने वाला, उसका नाम लेकर पुकारने वाला कौन है? उसे यहाँ आये अभी दो ही सप्ताह तो ह
read moreRajesh Raana
बीते सारे मंज़र याद आएंगे , चाकू छुरे खंज़र याद आएंगे । दुनिया झोली में लेकर चलने वाले , पीर फ़क़ीर कलंदर याद आएंगे। हम तो ठहरे बेघर मुहाज़िर लोग , हमको भी अपने घर याद आएंगे। एक घूंट में दरिया को पीने वाले , प्यासे को समंदर याद आएंगे । जीत लो दुनिया तुम सारी पर तय है , हारने वालें सिकन्दर याद आएंगे। - राणा © बीते सारे #मंज़र याद आएंगे , #चाकू #छुरे #खंज़र याद आएंगे । #दुनिया #झोली में लेकर चलने वाले , #पीर #फ़क़ीर #कलंदर #याद आएंगे। हम तो #ठहरे #बेघर #मुहाज़िर लोग , हमको भी अपने #घर याद आएंगे।
Aaliya
चाकू.....खंजर,तीर और तलवार लड़ रहे थे.....की..... कौन......जायदा गहरा घाव देता है, शब्द पीछे बैठे मुस्कुरा रहे थे, ये सोच कर की उनसे गहरा घाव कोई नहीं देता..!! क्यूंकि चाकू,तीर और तलवार के घाव तो वक़्त बड़ने के साथ भर जाते है..!! पर शब्द के घाव जिंदगी भर नहीं भरते ना ही वक़्त के साथ सूखते है.....! #चुभते हुए शब्द
#चुभते हुए शब्द
read moreAnil Siwach
श्री हरिः 5 - सच्ची पुकार 'तुम प्रार्थना करने आये थे अल्फ्रेड?' सभ्यता के नाते तो कहना चाहिये था, 'मि० वुडफेयर' किंतु विल्सन राबर्ट में जो सहज आत्मीयता है अपने अल्प परिचितों के प्रति, उसके कारण वे शिष्टाचार का पूरा निर्वाह नहीं कर पाते और न उसे आवश्यक मानते हैं। उसका पूरा नाम है अल्फ्रेड जॉनसन वुडफेयर। चौंककर उसने पीछे मुड़कर देखा। समुद्र किनारे के इस छोटे से गांव में उसे जानने वाला, उसका नाम लेकर पुकारने वाला कौन है? उसे यहाँ आये अभी दो ही सप्ताह तो हुए हैं और एक खेतों में फसल काटने वाला मजद
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