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Mď Âĺfaž" "Šयरी Ķ. दिवाŇ."

#LoveOnline #आँखों में #अश्क #ओठों पर #मुस्कान रखते हैं।

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sanat Baghel

एक प्याला।

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मुझे वो दिन याद हैं
जब पहली दफा चाय पीने गए थे
चाय तो ठंडी हो गया था
लेकिन उनके ओठों से 
शायद बहुत कुछ जल पड़ता
बहूत अर्शे हो गया है
उस कप के प्याले को 
ओठों से  लगाये
आज भी वह प्याला 
उसी टेबल पर पड़ी हैं।
                 @Baghel एक प्याला।

vaibhav sakunde

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#OpenPoetry लिखता हूँ आज भी अगर
लिख नहीं पाता हूँ। 

फिर भी हृदयपर रखकर पत्थर
कलम आज मैं रगड़ता हूँ । 

लिखकर आज मैं किस्सा 
मोहब्बत का भूलाना चाहता हूँ। 

हज़ार बार खोलंके ये दिल 
ना भूला पाता हूँ।ना बता पाता हूँ।

चाहता हूँ आज तोड़ दू सारी रंजिशे
फिर बांध लेती हैं जमाने के बंदिशे। 

बोल के सच,दबाकर झूठ मैं
फिर को ओठों को जलाता हूँ ।

जलाकर ओठों को फिर मैं हँसाता हूँ ।
बेचके नींद मैं ख्याबो कों सुलाता हूँ ।

हँसाकर आपको मैं हँस नही पाता हूँ ।
मर कर भी मैं मर नहीं पाता हूँ ।

रो कर आज मैं इतना ही लिख पाया हूँ ।
तोड़कर कलम आज फिर मैं जिंदिगी से हारा हूँ।

Aghori amli

#Love, #romance, #amliphilosphy शीर्षक - मोहब्बत का शीतकालीन सत्र भाग 1 💕💕✍️💕💕 आज मेरा मन मस्तिष्क अशांत था ऊपर से यह सर्द हवाओं का छू कर निकल जाना, एक सुखमय प्रहार था परंतु कांपते हुए इन हाथों में जैसे ही तुम्हारा हाथ आया सब कुछ धीरे धीरे शांत सा हो गया, मस्तिष्क की अंतिम से अंतिम कोशिकाओं तक रक्तचाप सही कर रहा है तुम जो यह धीरे धीरे अपने उंगलियों से मेरे जिस्म रुपी तारों को धीरे धीरे छू रही हो, यह फिजाओं में संगीतमय धुनों का आगाज हो रहा है यह मेरी रूह तुम्हारी रूह में ही कैद रहने का विचा

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 #love, #romance, #amliphilosphy 
शीर्षक - मोहब्बत का शीतकालीन सत्र भाग 1 💕💕✍️💕💕  
आज मेरा मन मस्तिष्क अशांत था
ऊपर से यह सर्द हवाओं का छू कर निकल जाना, 
एक सुखमय प्रहार था 
परंतु कांपते हुए इन हाथों में जैसे ही तुम्हारा हाथ आया सब कुछ धीरे धीरे शांत सा हो गया,
मस्तिष्क की अंतिम से अंतिम कोशिकाओं तक रक्तचाप सही कर रहा है 
तुम जो यह धीरे धीरे अपने उंगलियों से मेरे जिस्म रुपी तारों को धीरे धीरे छू रही हो, यह फिजाओं में संगीतमय धुनों का आगाज हो रहा है यह मेरी रूह तुम्हारी रूह में ही कैद रहने का विचा


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