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प्रीति प्रभा
ज़िन्दगी की गुल्लक में सब कुछ भरता रहता है चाहे अनचाहे, जाने अनजाने सब अच्छा लगता है गुल्लक की फांस से झांकना उसे हिलाना ज़िन्दगी के बीते लम्हों का याद दिलाना ©प्रीति प्रभा ज़िन्दगी #ankahi.baatein__ #प्रीतिप्रभा #life #Happiness #gullak #hindikavita #poetrycommunity #instawriters #fb #writer
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संतान के लिए मांँ की चिंता छुपती नहीं और पिता का प्रेम दिखता नहीं..। ©प्रीति प्रभा #Connections #प्रीतिप्रभा #mother_Love
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लिखने बैठो तो मन व्याकुल हो उठता है शब्दों के सागर में भावनाओं के अनेक रंग निखर के आता है लिख कर पढ़ कर स्वयं के ही कविताओं को नैनों में अश्रु भर जाता है सोचती हूंँ अगर कभी किताब हाथ ना आती मेरे तो क्या मैं इन शब्दों से परिचित हो पाती या शब्दों के रूप में अपने भाव पन्नो पर उकेर पाती शायद नहीं कर सकती थी कभी घर संभालना, रिश्ते निभाना यहीं सिखाया गया बचपन से फिर भी एक उम्मीद हुई कुछ आंखों में नए सपने सजे स्त्री हूंँ अक्षरों से साक्षात्कार करने में समय लगा ©प्रीति प्रभा #प्रीतिप्रभा #Poetry
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स्याही का काम नहीं अब अब कलम घर कौन लाता है मोबाईल की बैटरी काफ़ी बस इतना ही उंगलियों को नाचता है अब ख़त कौन लिखता है डाकखाना कौन जाता है सब व्यस्त है मशीनी मानव सुख दुःख कोई नहीं पूछता पहले अपनापन होता था आज वह कहीं दिखता नहीं है अब ख़त कौन लिखता है ©प्रीति प्रभा #खत #प्रीतिप्रभा
प्रीति प्रभा
उड़ान मर्यादाओं की सीमा में बंध कर रह जाती उड़ान है हर बार पैरों तले कुचला जाता जिसका स्वाभिमान है इस संसार में क्या स्त्री रूप में जन्म लेना अपमान है फिर क्यों स्त्री का क़ैद किया जाता यहांँ उड़ान है क्या उनकी ख्वाहिशों में नहीं होती कोई जान है मिलती क्यों नहीं स्त्री को भी बराबर का सम्मान है स्त्री की भी होती एक अपनी अलग पहचान है दो घरों को जोड़कर चलना कहांँ इतना आसान है स्त्री को आगे बढ़ते देख कुछ पुरुष हो जाते परेशान है स्त्री और पुरूष दोनों का हक जीवन में एक समान है ©प्रीति प्रभा उड़ान #प्रीतिप्रभा
उड़ान #प्रीतिप्रभा
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सुकन्या एक छोटे से गांव से शहर आई पढ़ने के लिए, जितनी पढ़ने में वो होशियार थी उतनी ही खूबसूरत मगर गरीब घर से होने के कारण शहर के कॉलेज में छात्रवृत्ति लेकर पढ़ने आई। छात्रावास में उसके साथ दो ओर लड़की रहती थी जो अमीर परिवार से थी। सुकन्या के स्वभाव के कारण उसकी दोस्ती उन दोनो से हो गई, जहां भी जाती तीनों एक साथ जाती थी। एक दिन वो दोनों सुकन्या को पब में लेकर गई वहां की शोर गुल में पहले तो अच्छा नहीं लगा फिर भी रुकी रही अपने दोस्तों के लिए। धीरे धीरे ऐसे ही वक्त गुजरता रहा और सुकन्या शहर के रंग में ढलने लगी। जो सुकन्या अपनों के लिए जीती थी वो अपने लिए जीने लगी जो आदतें उसे नहीं पसंद वो भी उसे पसंद आने लगी अपने दोस्तों के साथ पब जाना शॉपिंग करना। शहर के चकाचौंध में अपने शहर आने की उद्देश्य को भी भूलने लगी। ©प्रीति प्रभा #प्रीतिप्रभा
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