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Rakesh frnds4ever
White कुछ गैरों से कहा तुमने कुछ गैरों से सुना तुमने काश ,, कुछ हमसे कहा होता कुछ हमसे सुना होता,,, कहना / सुनना जो भी था रहना सहना जो भी था हम दोनों के दरमयां था फिर और कोई गैर कोई क्यों शामिल हुआ हम दोनों के दरमयां,,,,, ©Rakesh frnds4ever #कुछ #गैरों से कहा तुमने कुछ गैरों से सुना तुमने #काश कुछ हमसे सुना होता,,, कहना / सुनना जो भी था रहना सहना जो भी था #हम_दोनों के दरमयां था फिर और #कोई गैर कोई
Shubham Bhardwaj
दूरियाँ-नजदीकियां, इश्क़ में शामिल कर लो। बेखौफ फिर हँसकर इश्क़ को हासिल कर लो।। ©Shubham Bhardwaj #lalishq #दूरियां #नजदीकियां #इश्क #में #शामिल #करके #लो
- Arun Aarya
गुश्ताखी आँखे कर सकती है मग़र ,ये दिल नहीं करेगा ! जो नहीं है मेरे क़ाबिल , उसे ये दिल शामिल नहीं करेगा..!! - अरुन आर्या ©- Arun Aarya #Iqbal&Sehmat #शामिल नहीं करेगा
Rabindra Kumar Ram
" चल इश्क ये मंज़ूर किया जाये , दुश्वारियों का दौर हैं उन्हें मुहब्बत बेइन्तहा किया जाये , चल तुझे मेरे मयस्सर में जार - बेजार किया जाये , तु ही एक शक्श मेरी खामोशियों में बदस्तूर शामिल हैं . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " चल इश्क ये मंज़ूर किया जाये , दुश्वारियों का दौर हैं उन्हें मुहब्बत बेइन्तहा किया जाये , चल तुझे मेरे मयस्सर में जार - बेजार किया जाये , तु ही एक शक्श मेरी खामोशियों में बदस्तूर शामिल हैं . " --- रबिन्द्र राम #मंज़ूर #दुश्वारियों #मुहब्बत #बेइन्तहा
" चल इश्क ये मंज़ूर किया जाये , दुश्वारियों का दौर हैं उन्हें मुहब्बत बेइन्तहा किया जाये , चल तुझे मेरे मयस्सर में जार - बेजार किया जाये , तु ही एक शक्श मेरी खामोशियों में बदस्तूर शामिल हैं . " --- रबिन्द्र राम #मंज़ूर #दुश्वारियों #मुहब्बत #बेइन्तहा
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" चल इश्क ये मंज़ूर किया जाये , दुश्वारियों का दौर हैं उन्हें मुहब्बत बेइन्तहा किया जाये , चल तुझे मेरे मयस्सर में जार - बेजार किया जाये , तु ही एक शक्श मेरी खामोशियों में बदस्तूर शामिल हैं . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " चल इश्क ये मंज़ूर किया जाये , दुश्वारियों का दौर हैं उन्हें मुहब्बत बेइन्तहा किया जाये , चल तुझे मेरे मयस्सर में जार - बेजार किया जाये , तु ही एक शक्श मेरी खामोशियों में बदस्तूर शामिल हैं . " --- रबिन्द्र राम #मंज़ूर #दुश्वारियों #मुहब्बत #बेइन्तहा
" चल इश्क ये मंज़ूर किया जाये , दुश्वारियों का दौर हैं उन्हें मुहब्बत बेइन्तहा किया जाये , चल तुझे मेरे मयस्सर में जार - बेजार किया जाये , तु ही एक शक्श मेरी खामोशियों में बदस्तूर शामिल हैं . " --- रबिन्द्र राम #मंज़ूर #दुश्वारियों #मुहब्बत #बेइन्तहा
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" मुझे मालूम हैं तुम्हें कुछ मालूम ना होगा , ये इश्क मुहब्बत में तेरा हामी कहीं शामिल ना होगा , अब किस बात से इन्कार किया जाये इस लहजे में , मुहब्बत तो जरा तुम्हें भी हैं इसका यकीन अभी तुम्हें नहीं . " --- रबिन्द्र राम Pic : pexels.com " मुझे मालूम हैं तुम्हें कुछ मालूम ना होगा , ये इश्क मुहब्बत में तेरा हामी कहीं शामिल ना होगा , अब किस बात से इन्कार किया जाये इस लहजे में , मुहब्बत तो जरा तुम्हें भी हैं इसका यकीन अभी तुम्हें नहीं . " --- रबिन्द्र राम
Pic : pexels.com " मुझे मालूम हैं तुम्हें कुछ मालूम ना होगा , ये इश्क मुहब्बत में तेरा हामी कहीं शामिल ना होगा , अब किस बात से इन्कार किया जाये इस लहजे में , मुहब्बत तो जरा तुम्हें भी हैं इसका यकीन अभी तुम्हें नहीं . " --- रबिन्द्र राम
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" कोई ख्वाब आंखों में मचलता हैं , अब कौन सी तक्सीम बनाई जाये , लहजे मुहब्बत का एहसास पाल रखा है , इसमें उसकी मनमर्जियां शामिल हैं भी की नहीं ." --- रबिन्द्र राम Pic: pexels.com " कोई ख्वाब आंखों में मचलता हैं , अब कौन सी तक्सीम बनाई जाये , लहजे मुहब्बत का एहसास पाल रखा है , इसमें उसकी मनमर्जियां शामिल हैं भी की नहीं ." --- रबिन्द्र राम
Pic: pexels.com " कोई ख्वाब आंखों में मचलता हैं , अब कौन सी तक्सीम बनाई जाये , लहजे मुहब्बत का एहसास पाल रखा है , इसमें उसकी मनमर्जियां शामिल हैं भी की नहीं ." --- रबिन्द्र राम
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" तेरा ख्याल ही अंजुमन रहा, काफिर तु ही नदारत रही , मिलती तु कि मिलता मैं कहीं , हर ज़र्रे में तु इस तरह शामिल रही ." --- रबिन्द्र राम " तेरा ख्याल ही अंजुमन रहा, काफिर तु ही नदारत रही , मिलती तु कि मिलता मैं कहीं , हर ज़र्रे में तु इस तरह शामिल रही ." --- रबिन्द्र राम #ख्याल #अंजुमन
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
वो लफ्ज़ लफ्ज़ में मेरे बसता है जिसने कभी पढ़ा ही नहीं मुझे...! वो साँस-साँस सा मुझमें ही धड़कता रहता है, जिसने शामिल भी न किया ज़िंदगी में कभी।। पल, दिन, महीने, साल और तारीख बढ़ते रहे, यूँ तन्हाइयों पर जैसे कितने ही कर्ज़ चढ़ते रहे, वो हँसी- हँसी सा मुझमें ही महकता रहता है, जिसने शामिल भी न किया ज़िंदगी में कभी।।
वो साँस-साँस सा मुझमें ही धड़कता रहता है, जिसने शामिल भी न किया ज़िंदगी में कभी।। पल, दिन, महीने, साल और तारीख बढ़ते रहे, यूँ तन्हाइयों पर जैसे कितने ही कर्ज़ चढ़ते रहे, वो हँसी- हँसी सा मुझमें ही महकता रहता है, जिसने शामिल भी न किया ज़िंदगी में कभी।।
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