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Magical Words ( rupali yadav)
जब चलाई गई होगी साइकिल पहली बार, तब चलाने वाले ने भरी होंगी लंबी उड़ाने। उसने टटोली होंगी कई संकरी गलियां साइकिल से। पकड़ी होगी रफ़्तार अपने शहर की खाली सड़कों पर। खोजी गई होंगी रोज नई कहानियां सुनाने को। साइकिल के टायरों ने छोड़े होंगे निशान अपनी यात्रा में। साइकिल के चक्के घूमते -घूमते घुमा लाये होगें उस व्यक्ति को ब्रम्हांड का एक हिस्सा। चाहा होगा उसने भी बैठाना अपने किसी प्रिय को साइकिल पर। जब चलाई गई होगी साइकिल पहली बार, तब किसी चलाने वाले ने तो चाहा होगा सूरज का करना पीछा। सोचा होगा सबको पीछे छोड़ जाना मीलों तक साइकिल के साथ। ©Magical Words ( rupali yadav) जब चलाई गई होगी साइकिल पहली बार, तब चलाने वाले ने भरी होंगी लंबी उड़ाने। उसने टटोली होंगी कई संकरी गलियां साइकिल से। पकड़ी होगी रफ़्तार अपने शह
जब चलाई गई होगी साइकिल पहली बार, तब चलाने वाले ने भरी होंगी लंबी उड़ाने। उसने टटोली होंगी कई संकरी गलियां साइकिल से। पकड़ी होगी रफ़्तार अपने शह #Quote #कविता #कविताएं #nojatohindi #treanding #rupaliyadav #यात्राएं #magicalwords0903 #cyclepoem
read moreरिंकी✍️
वीरान खण्डर सी नजर आती हैं अब मेरे गाँव की सभी इमारतें सब पलायन हुए यहां से शहर की तरफ यहाँ रह गए हैं कुछ बूढ़े , कुछ खेत और कुछ औरतें और रह गई है वो सुनसान सड़क जहाँ नही दिखता कोई दूर दूर तलक सुनी है खेतो की पगडंडियाँ सूनी– सूनी सी है वो नदियाँ रही न अब वो बच्चो की शरारतें जहाँ जमघट लगती थी वो अब आम का बगीचा तो है मगर टायरों के झूले नजर नही आते वो खिलखिलाती हँसी नजर नही आती आंगनों से आंगन में चूल्हा तो नजर आता है मगर घर की औरतें नजर नही आती आती है बस रातों को झींगुरों की आबाज़ सन्नाटे का शोर और अकेले पन से चुभता ये घर ✍️रिंकी वीरान खण्डर सी नजर आती हैं अब मेरे गाँव की सभी इमारतें सब पलायन हुए यहां से शहर की तरफ यहाँ रह गए हैं कुछ बूढ़े , कुछ खेत और कुछ औरतें
वीरान खण्डर सी नजर आती हैं अब मेरे गाँव की सभी इमारतें सब पलायन हुए यहां से शहर की तरफ यहाँ रह गए हैं कुछ बूढ़े , कुछ खेत और कुछ औरतें #यकदीदी #यकबाबा #यकबेस्टहिंदीकोट्स #बिछड़तेवक़्त #यकफ़ीलिंग्स #छूटागाँव
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
मेरा एक यार रहता था।। इस गली के, उस चौक पे, मेरा एक यार रहता था। मेरी तन्हाइयों का दस्तक, मेरा साया मेरा सार रहता था। वर्षों बीते, पर याद धूमिल, अभी ताजी है। उसने, उसी छोटू नाई की दुकान पर, कटवाए थे बाल अपने। वो छोटू नाई, जो लिए उस्तरा आज सड़कों पर, पत्थरों से पटी सड़कें, लाठी, तलवार, भाले, पेट्रोल भरे जलते बोतल, चारों ओर बिखरे थे। विलाप का स्वर भी नहीं, किसी आतंक का ज्वर भी नहीं। आग और धुएं की लपटें, मानो प्रतिस्पर्धी हुए थे। कर खाक, जिंदगियां, लहराते आसमां छुए थे। बदहवास सड़क पर, मैं बस भागता जा रहा। हाय, आज मेरा धर्म ही सालता जा रहा। वो सीमेंट का चबूतरा, हमारे जवान होने का गवाह। कहीं लाल, कहीं कालिख रंग सना, मानो दर्द में डूबा हो अथाह। कलेजा मुख को, धड़कनों की आवाज़ सन्नाटा चीरती। कहाँ गयी वो दार जी की आवाज़, जो देख हमें साथ थी चीखती। सन्न हुआ, नज़रें कुछ खोज रहीं थी, हवाएं, नासिका में, गोलियां बोज रहीं थीं। लगता है कुछ है वहां, कुर्ते का बाजू, रंग बदल लाल हुआ था। टायरों संग भुनती गोश्त की बदबू, आग की लपटों से जो लाल हुआ था। मैं आधा खड़ा देखता, आधा टायरों में फंस जल रहा था। अपने आप को मानो कह अलविदा, किसी और सफर पर चल रहा था। आज मैं हार गया अपने आप से, थे अलग दोनों बस नाम से। किसकी हत्या का दोषी हूँ मैं, हुंकारता रावण है पूछता राम से। अश्रुधार पलकों से पहले सूख गए, ये दृश्य देखने से पहले। मैं था अकेला नहीं, जमीं आसमां दोनों थे दहले। हृदय का घाव था गहरा, लिख रहा भर कलम में स्याही। मैं ही मरा, मैं ही खड़ा था, कौन था दोषी, कौन देता गवाही। ©रजनीश "स्वछंद" मेरा एक यार रहता था।। इस गली के, उस चौक पे, मेरा एक यार रहता था। मेरी तन्हाइयों का दस्तक, मेरा साया मेरा सार रहता था। वर्षों बीते, पर याद ध
रिंकी✍️
मुझे गांव पहुँचा दो माँ 👇 कविता अनुशीर्षक में पढ़े हवा सुनहरी , बहती थी जहाँ जहाँ कल कल नदिया बहती थी हरियाली की चादर ओढ़े जहाँ धरती मेरी रहती थी हरे हरे लहराते खेतों से फिर से आज मिलवा दो म
हवा सुनहरी , बहती थी जहाँ जहाँ कल कल नदिया बहती थी हरियाली की चादर ओढ़े जहाँ धरती मेरी रहती थी हरे हरे लहराते खेतों से फिर से आज मिलवा दो म #प्रकृति #बहुतहुआ #यकदीदी #यकबाबा #गांव_और_मैं
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