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Tarakeshwar Dubey
वसुंधरा की पूरी हो अभिलाषा जब जब इस पावन धरती पर मानवता अकुलाती है, पाप अषीम बढ़ जाता है, त्राहि त्राहि मच जाती है, पिचासिनीयां करती है नर्तन, असूर रुद्र हो जाते है, व्याधि बिकल होकर के जब मानव को तड़पाते है, यज्ञ बाधित होता है जब निशाचरों के महातांडव से, मयूर नाचने लगते है जब खुंखार गिद्धों के भय से, जब अन्याय अत्याचार के खंजर तले न्यायी काटे जाते है, जब भलमनसाहत के मस्तक पर भष्मासूर चढ़ जाते है, तब तब वसुंधरा के उद्धार हेतु कष्ट उठाना पड़ता है, देवी हो या देव रुप धर इस धरती पर आना पड़ता है। इतिहास बताता है हमें आततायियों के विनाश की गाथा, न्याय सदा होवे अमर यही वसुंधरा की रही अभिलाषा।। जब भारत की महाभूमि पर पाप शीष चढ़ जाता है, नारी के अस्तित्व पर जब घोर प्रश्न उठाया जाता है, जब कौरवों की कुटिलता चौसर की बिसात बिछती है, राजमोह जब अंधमार्ग चुन पापी के साथ विचरती है, जब गुरुजन शीष झुकाकर के अन्याय पर दंभ भरते हैं, पूजनीय ज्ञानीजन भी जब आंखे मींचे चूप रहते हैं, जब महासभा के बीच लज्जा का चीर उठाया जाता है, निर्लज्जता की वेदी पर नारी को नंगा नचाया जाता है, तब धर्म की रक्षा के लिए पूण्य गांडीव उठाना पड़ता है, संग्राम भूमि में कस कमर अर्जून को आना पड़ता है। वेद व्यास की वाणी में रचित है महाभारत की महागाथा, न्याय सदा होवे अमर यही वसुंधरा की रही अभिलाषा।। (क्रमश:) ©Tarakeshwar Dubey वसुंधरा
वसुंधरा #कविता
read moreTarakeshwar Dubey
वसुंधरा की पूरी हो अभिलाषा (शेष भाग) जब माता के आंखो के आगे बच्चे तड़प तड़प बिलखते है, मुंह के निवाले छीन आतंकी महिषासुर सा हर्षनाद करते है, जब तथाकथित सभ्य समाज में अबलायें तड़पाई जाती है, वृद्ध पिता के कंधों पर जब बच्चो की अर्थी उठाई जाती है, जब भरे सड़क पर किसी बहन की मर्यादा निलाम होती है, आजादी के आंगन मे जब मां की हृदय तार तार हो रोती है, जब प्रशासक बन संहारक दुष्ट गुण्डों का साथ निभाते हैं, न्याय के संरक्षक भी जब बैरी आदम भक्षक बन जाते है, तब बहन की रक्षा के लिए भाई को समर में आना पड़ता है, मातृत्व की रक्षा के लिए स्वर को हथियार बनाना पड़ता है। रचे कोई इतिहास यह नहीं मेरी रही कभी भी अभिलाषा, न्याय सदा होवे अमर, हो वसुंधरा की पूरी सारी अभिलाषा।। ©Tarakeshwar Dubey वसुंधरा
वसुंधरा #कविता
read moreManmohan Dheer
ऐ सशक्त लेखन के धनी, एक गान लिख रुदन लिख क्रंदन कह बेध सके जो ह्रदय व्योम का आकाश का तू वंदन लिख ऐसा कोई स्पंदन लिख ऐ कवि..... . ऐ मधुर कंठ के स्वामी तू मार्ग दे इस व्यथा को चीर दे सुरों से अपने स्वर के दर्द को अन्दर तक अपने अधरों से तू पीड़ा गा ऐ मधुर कंठ के स्वामी .... . ऐ विस्तार के पर्याय आकाश सुन रहे हो तो सुन लो ये गान तुम्हें विवश करेगा व्याकुल कर देगा ऋतू मर्यादा तोड़ तू अहंकार सूर्य का छोड़ तू दे निमंत्रण श्यामवर्णी मेघों को तप्त अधरों को तृप्त कर दे . ये वसुंधरा पुकारती....... . धीर वसुंधरा पुकारती
वसुंधरा पुकारती
read moreGanesh Din Pal
🌹घटाएं धरती से मिलने को आतुर हैं, यह धरती का दिल कहता है। हमारा दिल भी कुछ ऐसा ही है , जो आपसे मिलने को व्याकुल है।🌹 ©Ganesh Din Pal #वसुंधरा की चाहत
#वसुंधरा की चाहत
read moreVasundhara Jadhav
हम बात रखने का हुनर रखते है आप तो छुपाके खंजर रखते है कांटे जितने भी राह में बिछांओ पाँव में फुलोंका मंजर रखते है क्या पता कल का, गले मिल लो दोस्त दिल जानसे सबकी कदर रखते है लगावो तुम प्यार से गोते यूंही दिलों में गहरे समंदर रखते है तुम कितना भी जाओ पार नजरके हम भी तो बाज़ की नजर रखते है वसुंधरा जाधव ©Vasundhara Jadhav #हुनर##वसुंधरा जाधव#
Jitendra Shinde
Vasundhara Jadhav
सय ग्रिष्माची जुनी जाणती बहाव्यासंग फिरून येती तू शिशिरासम पर्णहीन मी ग्रिष्मासह फुलून येती थेंब कोवळा शमवतो अग्नी थरथरे उगा कांचन कांती अंबराची तरूल झुंबरे तप्त सोनसळी जणू ओघळती मी शोधू आठवण कोणती जर्द बहाव्यासंग उतरती उन्हास देता एक आडोसा बहावा उगा जणू खुणावती - वसुंधरा ©Vasundhara Jadhav #बहावा#वसुंधरा जाधव
#बहावा#वसुंधरा जाधव #मराठीकविता
read moreVasundhara Jadhav
आपल्यासमोर आपलं सगळं जग कोसळत असतं..... कोलमडत जमिनदोस्त होत असतं... आणि आपण फक्त बघत राहतो, राळ उडत राहते आणि जीव गुदमरत राहतो ...... आपण एकटे उरतो....... फक्त एकटेचं वसु जग# वसुंधरा जाधव
जग# वसुंधरा जाधव
read moreRahul Shastri worldcitizens2121
Safar July 10,2019 सत्संग का अर्थ होता है गुरु की मौजूदगी! गुरु कुछ करता नहीं हैं, मौजूदगी ही पर्याप्त है। ओशो सत्संग का अर्थ
सत्संग का अर्थ
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