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Ravichandra Dhule
अलगद का होईना तुझा हात तू माझ्या हातात दिला होतास काहि काळ का असो माझ्या खान्द्याचा तू आधार घेतला होतास.... प्राणपाखरा...
प्राणपाखरा...
read moreRavichandra Dhule
खुशी कहा हम तो गम चाहते है. खुशी तो उन्हे दो जिसे हम चाहते है.... प्राणपाखरा..
प्राणपाखरा..
read moreR.K.
झाडांची जंगले कापून सिमेंटचे जंगल उभे करणे म्हणजे विकास असेल तर असा विकास नको आम्हाला, कारण आम्हाला नैसर्गिक हवा घेऊन जगायचे आहे नाही की पाठीवर प्राणवायूचे सिलेंडर घेऊन। -R.K. #जंगल #प्राणवायू
Ravichandra Dhule
असे कितीतरी बंध जुळले असतील तुझ्या आयुष्यात… एक बंध माझ्याही मैत्रीचे जपशील का शेवट पर्यंत तुझ्या मनात… माझ्या प्राणपाखरा...
माझ्या प्राणपाखरा...
read moreBabli Gurjar
जंगलों की कमी पूरी इस तरह करेंगे पृथ्वी पर तीव्रतम विकास की कीमत भरेंगे सोचेंगे आने वाली पीढ़ियां के बालक कितने स्वार्थी रहे थे हमारे पूर्वज सांस तक लेना कितना दुर्भर है जीवन प्राणवायु की खरीदी पर निर्भर है बबली गुर्जर ©Babli Gurjar प्राणवायु
प्राणवायु #कविता
read moreshubham tiwary
क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये अब अनल लग जाए तुझ बिन मेरे हर एक ख़्वाब में तू नहीं तो जिंदगी भी सूनी पड़ी किसी राह में क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये एक तेरे होने से, थे कितने ख़्वाब जिंदा अब तो तुझ बिन लग रहा जी के भी नहीं हैं हम जिंदा क्या करूं अपने लिए अब तुम ना रहीं जिंदगी में क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये तुम जो थी मेरी प्राणअधार तुझ बिन हो गया निराधार ना मोड़ पर, ना राह पर ना मिले कोई अब यार मैं बेख़याली हो गया हूं बिन प्राण का है ये तन क्या विसंगति ज़िन्दगी जिए तुझ बिन मेरे प्राण प्रिये #विसंगतियाँ_ज़िन्दगी_की_01 #अनल #प्राणअधार
#विसंगतियाँ_ज़िन्दगी_की_01 #अनल #प्राणअधार #poem
read moreअशोक द्विवेदी "दिव्य"
बाबू सोना इज टेम्पररी प्राणनाथ इज परमानेंट ©अशोक द्विवेदी "दिव्य" #प्रेम #प्राणनाथ #प्रेमी
Tarakeshwar Dubey
लग जा गले परदेशी प्राणनाथ ...................... मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। परदेश भ्रमण बहुत हो चुकी, आओ स्वदेश अब लौट चलें। पश्चिम की लगी हवा ऐसी, अपना सब कुछ भूल गए। पिज्जा बर्गर बस भाए मन, लिट्टी चटनी सब भूल गए। पढ़ते रहते टाम ऐण्ड जेरी, पौराणिक कथाएँ न याद रही। माम ऐण्ड डैड के चक्कर में, पितृ-मातृ प्रेम अब भूल गए। अपनी संस्कृति न आई याद, न्यू ईयर मानस में शेष रहे। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। सरसो के पीले खेत खिले, हमें बांहें फैलाए बुलाते हैं। गन्ने के हरे भरे खेत प्यारे, स्वागत में शीश झुकाते हैं। लाल टमाटर हरी मिर्ची, प्यारी मन को भाती है। आलू कोभी धनिया की मेल, सबके मन को रिझाते है। संक्रांति की त्योहार की चलो, मिलकर तैयारी विशेष करें। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। यदा कदा रहट की आवाज, कूपों पर सुनाई देती है। कभी कभी बैलों के गले की, घंटी गलियां कह देती है। हलवाहों के कंधे पर जब, हल व हेंगे सज जाते है। ऊसर पड़ी भूमि में भी, हरी फसलें लहलहाती है। दादी नानी की कथाओं से, बच्चे विद्या में प्रवेश करें। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। नाहर में जब जल भर जाए, खेतों में दौड़े हरियाली। फसलें लहलहाए जब पके, छट जाए गम की बदली काली। खलिहानों के गर्भ में जब, लगती अनाजों की ढेरी। तब चलता है कल का पूर्जा, और सीमा पर तनती गोली। उपवन में कोयल की बोली से, बसंत अभिवादन निर्विशेष करें। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। ©Tarakeshwar Dubey परदेशी प्राणनाथ #dilkibaat
परदेशी प्राणनाथ #dilkibaat #कविता
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