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नीता चौधरी
झंडा मायूस है। आज फैराया झंडा मैंने, वो थोडा मायूस है। देख अपने देश की हालत, वो भी थोडा , गंभीर है। बलात्कार, भ्रष्टाचार मंहगाई,बेरोजगारी और मची है ,चित्कार। पूंजीवाद की धूम मची है गरीब है लाचार। अधिकार सबने जान लिए कर्तव्य से है , नादान। बना आज संविधान तो.... कहा गयी सबकी शान। बस झंडा भी कह गया ऊचा लहराना ही क्या मेरी शान है। झंडा भी आज,मायूस है----नीता चौधरी © #कविता,#समाज और संस्कृति #RepublicDay
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read moreनीता चौधरी
विदेशों में पहचानी जाऊ, वहा मै सम्मान,भी पाऊ। फिर क्यो ?अपने ही देश में मैं बस बोलने भर की,रह पाऊं। सदियो से मैं , प्रतिकार सहू राष्ट्रभाषा होकर भी , मैं मातृभाषा भी ना रह पाऊं। बेरोजगारी की जड से मैं नौकरी से,वंचित हो जाऊं फिर कैसे मैं,विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं पाऊ?----नीता चौधरी © #कविता,#समाज और संस्कृति,# #worldhindiday
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read moreनीता चौधरी
प्यार का मार्केट कपडे हो ना हो,दूसरे से मांग लाऊंगा। हनी सिंह,तो कभी रणबीर मैं बन जाऊंगा। एक फूल,चोकलेट तुम्हे घुमाकर,घर छोडने की कुछ दिन परंपरा निभाऊगा। फिर धीरे-धीरे ही सही विश्वास अपना ,तुम पर जगाऊंगा। मौका मिलते ही, अधिकार तुम पर जताऊगा। सुनसान जगहो पर,छूना तुमको चाहूंगा। बिन किस किये तो,प्यार नही बिकता मै जिस्मानी संबंध,तुमसे बनाऊंगा। फिर तुमको मै,हमेशा के लिए मजबूरी बताकर,छोड चला जाऊंगा। प्यार का नया मार्केट है यारो यहा सारे इमोशन की बोली मै बेचकर,खाऊगा।----नीता चौधरी © #लव और रोमांस,#समाज और संस्कृति#कविता #BooksBestFriends
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read moreHemant Rai
दीवारें और मर्द! मैंन अपना पूरा बचपन, यौवन, और उसके बाद की भी अवस्था, या एक कच्ची मिट्टी से भरी पूरी ईंट बनने,तक का सफ़र तय किया है, एक-एक दीवार बनाने में और दूसरी दीवारो को बनते हुए देखा भी है, अलग-अलग स्तिथि में,अलग-अलग तरह की, कुछ ऊंची, कुछ नीची, कुछ पतली और कुछ मोटी, कुछ..... जब मैंने उन ऊंची जाति की, उन ऊंची-ऊंची दीवारों पर चढ़ना चाहा, तो उसके ऊंचेपन ने मुझे छोटेपन का एहसास करवाया। जब, हम पेशे, हम गरीब और परिवार कहने वाली उन हम समान नीची दीवारो को लांघना चाहा तो, उन्होंने तो नीचे से मेरे शरीर के भीतर झांकने की अभद्र,अश्लील कोशिश की। जब उन ठेकेदारों की उन मोटी-मोटी दीवारो के पार जाना चाहा तो, उन्होंने मुझे सर से पांव तक निचोड कर ही रख दिया। और जब थक-हार कर ज़रूरत पड़ने पर बची हुई कमजोर वर्ग की पतली दीवारो का सहारा लिया तो, वो दीवार सहारा देने का बजाए उलट मुझ पर ही गिर गई। अंततः अब वो भरी पूरी ईंट पुनः बिखरी हुई भूरी, मिट्टी हो चुकी है, इस दौरान हर स्तिथि में मुझे दर्द ही मिला, जैसे, ज़िन्दगी के हर मोड़ पर, दीवार, दीवार ना रहकर कोई मर्द ही मिला। ~हेमंत राय। #दीवारें और #मर्द!!! #कविता #nojoto #जात #पात #समाज #ठेकेदार
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read moreमनोज कुमार मिश्रा एडवोकेट
विष क्या है ? आज का समाज? अमृत क्या है? किसी के मीठे दो बोल? कष्ट क्या है? किसी से कोई इच्छा रखना? तकलीफ क्या है? कोई बात जहन में होना पर कह न पाना? सवाल अधिक है जिंदगी के मुक्ति क्या है? जवाब मृत्यु नही।जीवन भी एक मुक्ति है। जैसे जिनी है खुद के हाथ में है उससे बरी मुक्ति और कुछ नही।। ©Munna Kumar #woshaam #समाज #कविता #विचार
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read morePushpendra Maurya
कविताएं समाज की रचना करती हैं कविताओं में जीती हैं जिंदगियां कविताओं में प्रेम होना चाहिए कविताओं में स्नेह होना चाहिए कविताओं में होने चाहिए वे मानवीय गुण जो जरूरी है इंसान के लिए इसलिए कविताएं लिखी जाती रहनी चाहिए कविताएं इंसान के सुख की कविताएं दुख की कविताएं वेदना की कविताएं शोक की कविताएं चेतना की कविताएं जिनमें सामाजिक मूल्यबोध हो कविताएं जो नैतिकता सिखाएं कविताएं जो इंसान बनाएं कविताएं लिखी जाती रहनी चाहिएं। ©Pushpendra Maurya #कविता #विचार #समाज #AWritersStory
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