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Stories related to अनिश्चित काळासाठी

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Parasram Arora

अनिश्चित और असुरक्षित जीवन #विचार

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असुरक्षित है अस्तित्व... अनिश्चित है जिंदगी
एक प्रवाह है जिंदगी
सब कुछ सरक रहा प्रतिपल
सब कुछ रूपांतरित हो रहा प्रतिपल
लेकिन तुम्हे ये संसार अजनबी लगता है
तों इसमें  भयभीत होने वाली कोई बात नहीं है
तुम्हें तो जाना है आगे और आगे
मत देखना पीछे मुड़ कर
यही अनिचितता सौन्दर्य बन जाने वाली है एक दिन
मृत्यु भी आएगी मुआफ़ी मांगेगी और लौट जायेगी एकदिन बिना रोडमैप के चलने का अभ्यास कर लो
सारे आदर्श और अनुशासन के बोझ क़ो भी उतार  फेंको 
अच्छा होगा तुम नदी के साथ बहना सीख लो.
ये नदी ही तुम्हे सागर के दूसरे किनारे तक पहुंचाने मे
सक्षम होगी
निश्चित  ही तालमेल बैठने लगेगा तुम्हारा अनिशचितता से
और  असुरक्षा से एक  दिन

©Parasram Arora अनिश्चित और असुरक्षित जीवन

अदनासा-

अविनाश कुमार

" अनिश्चित क्रियाएँ " . #breeze #प्रेम #विरह #Love #BreakUp #audio #Poetry #Hindi #hindikavita #कविता

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Garima Singh

जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वास्तु का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जात #पौराणिककथा

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Srinivas

#skill कौशल एक शाश्वत वफादार दोस्त है जो कभी निराश नहीं करता है, जबकि पैसा एक अनिश्चित दोस्त है जो कभी लंबे समय तक नहीं टिकता है। #Knowledge

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Satish Chandra

क्या कहें, कैसे कहें लेखक हैं, सीखे जा रहे हैं चले जा रहे एक अनिश्चितकालीन समय के लिए एक अनिश्चित रास्ते पर। #yqdidi #नववर्ष_लेखक #Funny #sattypun #Punchayat

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नववर्ष में हम एक लेखक के तौर पर
ये निश्चय करेंगे कि हम कुछ भी निश्चय
नहीं करेंगे क्यूँकि "भैंस की आँख"
जो निश्चय करते हैं वो
एक अनिश्चितकालीन समय
के लिए अनिश्चित हो जाता है।

-©अनिश्चितलेखक क्या कहें, कैसे कहें
लेखक हैं, सीखे जा रहे हैं
चले जा रहे एक अनिश्चितकालीन समय के लिए
एक अनिश्चित रास्ते पर।

#YQdidi

#नववर्ष_लेखक

Dr Jayanti Pandey

अनकही या मन की कही,जो कह न सके वो भी सही अनजान अनिश्चित काल में यह भी सही ,वह भी सही #jayakikalamse #yqdidi #yqbaba #yqaestheticthoughts # #yqhindi

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अपेक्षाएं  मिटा देती हैं  मिठास, समझता हूं मैं
जब भी तेरी फीकी पड़ी यादों से गुजरता हूं मैं
थक गया हूं पिंजरे की दीवारों से टकरा-२ कर
परिंदों के मानिंद क़ैद में बेबस और तन्हा हूं मैं

सोचता हूं अब एक कॉपी भी अपने पास  रखूं
जिस में अपनी हर एक सांस का हिसाब  रखूं
तेरे बगैर जो ली गयी,रुकी रही या छोड़ दी मैंने
उन हर सांसों की सब वजहें साफ- साफ  रखूं

भटकता है मन, न  मालूम  इसे तलाश क्या है
किस मंजिल को पाना है,पाने का रास्ता क्या है
तुम को पुकारना है भी तो पुकारें किस हक से
मुझे पता ही नहीं अब तुमसे मेरा रिश्ता क्या है! अनकही या मन की कही,जो कह न सके वो भी सही
अनजान अनिश्चित काल में यह भी सही ,वह भी सही

#jayakikalamse 
#yqdidi #yqbaba #yqaestheticthoughts #

Arsh

आनेवाले कल की आशा में हमें अपने आज के जीवन की परिभाषा नहीं बदलनी चाहिए। कल जो होगा वह उस समय पर होगा, हम उसे तब हीं जी पाएंगे जब हम सशरीर #Fire #Love #story #Hindi #lust #nojotohindi #Arsh

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आनेवाले कल की आशा में हमें अपने आज के जीवन की
परिभाषा नहीं बदलनी चाहिए।

कल जो होगा वह उस समय पर होगा, हम उसे तब हीं जी पाएंगे
जब हम सशरीर उस समय में पहुँच जाएंगे।
इसलिये भविष्य में जो हम होने या बनने की इच्छा रखते हैं
यानी कि कल को लेकर हमारे जो सपने हैं
हमें उनकी रसमाधुरी में इतना भी नहीं डूब जाना चाहिए कि हम आज अपने कर्म अर्थात कर्तव्यों से विमुख हीं हो जाएं और वक़्त हमें अनैक्षिक भविष्य में घसीटते हुए ला पटके।

समझिए, भविष्य अनिश्चित है और जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित की ओर जाता है, उसका अनिश्चित तो निश्चित हैं हीं साथ में निश्चित भी अनिश्चित बन जाता है आनेवाले कल की आशा में हमें अपने आज के जीवन की परिभाषा नहीं बदलनी चाहिए।

 कल जो होगा वह उस समय पर होगा, हम उसे तब हीं जी पाएंगे जब हम सशरीर

saurabh

उसकी बातों को समझो क्या क्या अंकन है तुम केवल इक जिद्द करते हो , जो बंधन है.......... ! वह चाह रही है तुमसे एक अनिश्चित दूरी तुम भुजंग से

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हम तो नाराज भी होने का हक नहीं रखते
उसके अल्फ़ाज़ बताते हैं हम नहीं हैं कुछ 
 उसकी बातों को समझो क्या क्या अंकन है 
तुम केवल इक जिद्द करते हो , जो बंधन है..........  ! 
वह चाह रही है तुमसे एक अनिश्चित दूरी
तुम भुजंग से

Pradeep Kumar

#Nature क्यूँ उलझाता हैं? अदृश्य, अंधेरो में पड़ें अनिश्चित भविष्य के जीवन को। रे मन, तू भी चल कभी अतीत के दर्शन क़ो।। वो बचपन, वो आँगन, न

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क्यूँ उलझाता हैं? अदृश्य, अंधेरो में पड़ें अनिश्चित भविष्य के जीवन को।
रे मन, तू भी चल कभी अतीत के दर्शन क़ो।।

नन्हा कदम थक कर,निद्रा-वश जब ढूँढता तेरा आँचल।
तू कहती ठहर जा, पहले कुछ खाने को चल।।
नींद से भरी आँखों को, जब मिल जाता तेरी गोद।
आँखें भी तभी खुलती थीं , जब हो जाता था भोर।।

चाहत यही फिर, मिलें गोद तेरा, मिले वहीं मिट्टी , मिले वही सवेरा।
हैं मेरी ये स्मृति, जिया है मैंने जिस जीवन क़ो।
रे मन, तू भी कभी चल अतीत के दर्शन को।। #Nature क्यूँ उलझाता हैं? अदृश्य, अंधेरो में पड़ें अनिश्चित भविष्य के जीवन को।
रे मन, तू भी चल कभी अतीत के दर्शन क़ो।।

वो बचपन, वो आँगन,

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