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Prakash Vidyarthi
White "दिल की जज्बात " ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: इस मौसम में लिखूं तो किस मौसम में लिखूं। कि मुझे तुमसे ईश्क हैं। फिर क्यों कैसा रिश्क है।। इस सावन में न कहूं तो किस सावन में कहूं। की ये दिल बेकरार हैं। हां मुझे तुमसे प्यार हैं।। अब न चाहूं तो फिर बोलो कब तुम्हे चाहूं। जब दूसरो की चाहत हो जाओगी किसी अनजाने की अमानत बन जाओगी ।। ऐसे न रूठूं मनाऊं तो फिर कैसे रूठूं मनाऊं। यहीं तो सच्चा प्रेम मोहब्बत हैं। ईश्वर की मर्जी और कुर्बत हैं।। अब न तुमसे मिलूं तो फिर कब तुमसे मिलूं। इसी से तो नजदीकिया बढ़ेगी। गहरे रिश्ते की भावना जगेगी।। इस बारिश में न बोलूं तो किस बारिश में बोलूं। की तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा। प्यार से भीं प्यारा हैं प्यार हमारा।। अभी इजेहार न करूं तो कब इजहार करूंगा। मान या न मान मै तेरा मेहमान। हम दो दिल और एक हैं जान।। आज तुम्हें मन की बात न बताऊं तो फिर कब बताऊं। बोलूं की I love you जानेमन । कसम से हम तुम्हारे हैं सनम।। स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी। (पोएट्री लवर्स) भोजपुर बिहार ©Prakash Vidyarthi #love_shayari #पोएट्रीलवर्स #कविताएं
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White " हर हर महादेव" ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: प्रीत प्रेम सूर्य चंद्रमा अदृश्य ऊर्जा स्वरूपा। जो नष्ट भयो न कभी, बदला हैं बसरूपा ।। जस संलयित तसही बढै भई विखण्डितभावभूपा । लागे ह्रदय वीरान महल असित भग्न गुफा ।। रब रूठा या जग झूठा प्रियतम का संघ जो छूटा। भाए नहीं उज्जवल प्रकाश लागे विद्यार्थी कलूटा।। मोह भंग से नीर नेत्र का अथाह विरह वेदना फूटा। हर्षित जीवन का कोई अर्थ नहीं स्नेह स्वपन्न जो टूटा।। समय का चक्र चला ऐसे जैसे त्रिदेव धुआं हों उठा। छीन भिन्न अंग बना तीर्थ स्थल मां का अंश जहां जुटा।। रूदन मन को शांत करने देवता देवी सब जुटा। हुऐ शांत एकान्त प्रभु अब गुफा में तप करने घुसा।। सती प्रेम देख प्रकृति ब्रह्मांड भीं ब्यथित थर्रा हो उठा। तब श्रृष्टि कल्याण हेतु रंग पार्वती रचना रचू रूपा।। स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: ©Prakash Vidyarthi #sawan_2024 #कविताओं #पोएट्रीलवर्स
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White शीर्षक "टी20 वर्ल्ड कप" अथवा " विश्व विजेता विजवी भारत" क्या मौसम के मोहब्ब्त ने, कैसा मानसून लाया हैं। मेरे भारत के आंगन में, खुशियों का बूंद बरसाया है।। बोलो बम बम भोले के संघ सावन भी झुमके गाया है। टी20 वर्ल्ड कप जीतकर, भारत मां को हर्षाया है।। 17 वर्षो बाद विजवी भव: , का संदेश सुनाया है। इंडियन टीम ने भारत को, विश्व विजेता बनाया है।। देखो इतिहास के पन्नों में, फिर ये नाम कमाया है। शहर क्या गावों की गली गली, स्वर्णिम पर्व मनाया हैं।। शूरवीर सूर्या का गौरव, सबके मन को लुभाया है। गेंद पकड़ा हाथों में वैसे, जैसे खुशियों को पाया है।। रोहित के टीम नीति प्रदर्शन , राष्ट्र विराट बनाया है।। चैंपियन बन दुनियां में,हार्दिक शुभकामना पाया है। प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट, जसप्रित प्राण लगाया है। स्वर्णाक्षरो में अक्षर ने, देश का नाम लिखवाया हैं।। ऋषभ ने राष्ट्रीय रन में , धुरंधर बढ़त दिलाया है। कुलदीप ने कर्तव्य पथ पर,क्या कमाल दिखाया है।। शिवम् दुबे ने सत्यम , सुंदरम का पाठ पढ़ाया हैं । अर्शदीप के मेहनत ने, खुशियों का रंग जमाया हैं ।। जडेजा मोहम्मद भीं ने देश का खुब मान बढ़ाया है। हिन्दुस्तान का झंडा जग में, तिरंगा फहराया हैं।। सबने साथ मिलकर के , क्या खूब साथ निभाया है। जमी से आसमा तक जय हिन्द,का नारा गुंजवाया हैं।। साहित्य प्रेमी प्रकाश विद्यार्थी, सबके मन को भाया है। आर्यावर्त आर्या पब्लिकेशन दिल में संस्कार समाया है।। स्वरचित -: प्रकाश विद्यार्थी ©Prakash Vidyarthi #t20_worldcup_2024 #पोएट्रीलवर्स #कविताएं
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White "नि:श्छल प्रेम रूठा विद्यार्थी" लगता हैं आजकल वो हमसे रूठ सी गई हैं। बिना किसी खता के कहीं टूट सी गई है।। लगता है........ करती नही सांकेतिक भाषा का इनदिनों प्रयोग मस्ती की अपनी महफिल में व्यस्त शान्त चुप हों गईं हैं। लगता हैं.......... हैं बड़ी मतवाली अनुपम नखरेवाली दिलवाली पर पता नहीं क्यों उसकी पलके अब झुक सी गई हैं। लगता हैं..... करता हूं अक्सर उस कली मनचली की तारीफें। इसलिए शायद अब भाव खाने लगी है किसी दुनियां में लुप्त हों गई है। लगता हैं...... दिया करती थीं उत्तर मेरे प्रश्नों के कभी पर प्रतीत होता हैं की सबकुछ भूल रूप गई हैं! लगता हैं..... सोचता हूं क्या कुछ गलती हुईं हैं हमसे जो खुली किताबें देखकर भी मंजिले गुप्त हों गई हैं.! लगता हैं.... चुराने लगी है नज़रे अब पढ़ने की आदत लगाकर दूसरो को वाचाल बनाकर खुद मितभाषी सुसुप्त हों गईं हैं। लगता हैं..... ताकते रहते हैं उसको लाल लाल मेरे नैन। मिले न चैन दिन क्या रैन यादें उसकी लुफ्त हो गईं हैं। लगता...... क्या करे क्या न करे समझ हमे कुछ आता नहीं। झंझावत संघर्ष पथ मे जीवन जैसे लूट गई हैं। लगता हैं........ हैं मनचला विश्वासी ये सारथी स्नेह सागर का तैराकी अबोध निश्छल बालक विद्यार्थी फिर क्यों वो रथ छूट गई हैं लगता हैं.... हैं कारण तो बताओं सही एकांत में मत इतराओ कहीं दिल की बात बतलाओ जरा क्या विद्यार्थी के प्रेम से अब ऊब गई हैं! लगता है....... स्वरचित!-: प्रकाश विद्यार्थी ©Prakash Vidyarthi #Yoga #पोएट्रीलवर्स #कविताएं
Prakash Vidyarthi
White .......पिता मेरे अस्तित्व.... ***************************************** कहो पिता पर मैं क्या लिखूं जिसने खुद मुझे लिखा और फिर कुछ लिखना सिखाया मां की गोद से उठाकर जो अपने कंधे और सर पे बिठाया उस शख्स को मै क्या समझूं कहो पिता पर मैं क्या लिखुं ।। उन्होंने मेरी किसी ख्वाइशो को कभी अधूरा नहीं रखा। मेरे हर जिद को पूरा करते रहे वे बनकर मेरा मित्र सखा।। दुनियादारी का ज्ञान उनसे ही सिखूं कहो पिता............................. स्त्रियों के जैसे कभी उन्होंने अपना आंसू नहीं दिखाएं नहीं घबराएं जीवन के मेले में गुम हों जानें पर भीं मुझे वो पिताश्री ढूंढ लाए ! वो मिलता गया जिसके लिए मैं तरसू कहो पिता................................ कठोर स्वरूप विशाल ह्रदय रखनेवाले खुद भूखे रहे पर मुझे खिलाएं मेरी खुशियों की खातिर वो बाप का हर एक फर्ज़ निभाए।। मैं उस इन्सान को कैसे परखू। कहो पिता......................... जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे कुचले हुए दिए की तरह जो निरंतर जलते हैं। भूखा न रहे परिवार कभी बीबी बच्चे सबके के लिए कठिन श्रम करते हैं।। जी करता उन्हें सदा पलकों पे रखूं कहो पिता............................ कभी डाटते हैं फटकारते है आंखों से डराते सही। मेरे रूठ जानें पे मनाते भी वहीं हैं वो प्यार के अनंत निशब्द महा सागर भले ही खुलकर जताते नहीं।। मैं पुत्र विद्यार्थी उनको गुरु गोविन्द जैसे पूजूं कहो पिता....................................... ©Prakash Vidyarthi #fathers_day #कविताएं #पोएट्रीलवर्स
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White "अभिलाषा मन की " ************************************************************* हैं यहीं अभिलाषा मेरे मन की ऐसा ताला बन जाऊं। सुरो के साज श्रृंगार तेरे गले का वर्णमाला हों जाऊं।। जो तू होती कोरा कागज़ मैं अक्षर काला बन जाऊं। मात्राओ से सवरकर स्वर व्यंजन का प्याला कहलाऊं।। संचार के सारे साधनों के युग में इतना शोभा बढ़ाऊं । मिटाने से भी न मिटे कभी ऐसी अमर पहचान बनाऊं।। डिजिटल नए जमाने में ऑफलाइन का याद दिलाऊं। ऑनलाइन के डायरी में भी अपना ही नाम छपवाऊं ।। घुल मिल अमिट स्याहि के संग मे मेंहदी सा रंग रचाऊं। रंग बिरंगी पतंग तितलियां पौधे आदि चित्रकला बनाऊं।। शुद्ध अशुद्ध वर्तनी पहचानें ,अपनी लिखावट दिखाऊं। वर्णों के सही मेल जोल कराकर नए नए शब्द गढ़ाऊं।। अक्षरों का सही क्रमिक समूह संजोकर सार्थक शब्द बन जाऊं। फिर शब्दों के उपरोक्त प्रक्रिया से वाक्य उपवाक्य बन इतराऊं।। मुहावरा कहावतों लोकोक्ति के रूप में हर भाषा में घुस जाऊं। व्याकरण नियम का पालन करू मैं कभी अपवाद कहलाऊँ।। कथा साहित्य और कहानियों में खुद को अक्सर मैं पाऊं। इतिहास भूगोल भाषा के पन्नों में भीं सर्वदा छपता जाऊं।। ग्रन्थ और पुस्तकों में छपकर छंद रस दोहा लेखन लिखवाऊं । अखबारों में प्रकाशित होकर मैं देश विदेश का ख़बर सुनाऊं।। गीत ग़ज़ल कविता चौपाई बनकर मधुर संगीतमय होता जाऊं। दादी नानी मां के स्वर में सजकर बच्चों को लोरिया सुनाऊं।। शायरों की शौक़ शायरी में रचकर आशिको का दिल बहलाऊ। अच्छे सुविचार मैगज़ीन संग्रह संस्करण में सबके मन को भाऊ।। #प्रकाश विद्यार्थी ©Prakash Vidyarthi #life_quotes #पोएट्रीलवर्स #कविताएं #गीत #स्टोरीऑनलाइन
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White " गरीबों के फल बाढ़ बरसात फ़सल ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। चित्र में तेरे चेहरे की चहकती चंचलता देखकर इस वीरान सी जंगल में नाव खेकर मुझे मरुस्थल की जहाज़ याद आती हैं। मगरूर बेशर्म ज़माना में भी मुझे झूलती नौका ठिठूरती कापती नंगी वृद्ध बदन में भीं एक बेमिसाल ऊर्जा भरी तेरी यौवन्ता भाती हैं।। किसी को लगता है समझ नादानी हैं ये नई जवानी है नई रवानी हैं उमंग सयानी हैं । पर कोई क्या जानें ये बुढ़ापे की भावुक कहानी हैं जोश पुरानी हैं ,पेशा खानदानी हैं ।। सजा मठ हाथों में है लंबी लठ माथे पर मुसीबत का हठ और डगमगाती रथ रवानी हैं अनपढ़ अंगूठा छाप पर शून्य भाव ईमानदारी हैं, ह्रदय में न कोई कल छल बेईमानी है ।। चारों तरफ बाढ़ बरसात का भरा पानी ही पानी हैं हे केवट फिर आप कैसे वहन करते हों। चुभते कांटों के बीच झकझोरती असहनीय तीक्ष्ण पछुआ हवाएं ये सब कैसे सहन करते हों ।। मलिन सा मुख पर तेजता जिगर में साहस और निडरता। चूंगते तोड़ते हुए फलों को और पेड़ के पत्तों को निहारता।। बरबाद न हों जाय यूंही कहीं सालों की ये कच्ची जमा पूंजी इसीलिए शायद कभी - कभी ये बात अपने मन में विचारता।। कड़कती बिजली से भीं भयमुक्त परिवार को भरण पोषण करनेवाले मेंहनतकश आप वीर ही नहीं महावीर लगे। हां अपने बागों के रखवाले ऐसी बेरहम बेदर्द मौसम में भीं फलचुनने वाले हे दीनहीन महापुरुष आप अधीर लगे।। न खुद की फिकर है तुम्हें , न ही ख़ुद की हैं कोई खबर कैसे करते हों इतने कठिन काम ये हैं आराम की उमर।। आता भीं नहीं बाबा कहीं आपको विषैले जीवजन्तु नज़र। झाँकता हूं जो तेरे अंदर बड़ा मुश्किल लगा तेरा गुजर बसर।। मालूम है तुम ये कच्चे पक्के अमरूद खुद खाओगे नहीं। बेच आओगे सस्ते दामों पर बाजारों में शर्माओगे नहीं। तरुवर फल नहीं खात हैं पंक्ति जचता हैं तुम्हारे ऊपर। स्वयं भूखे रह जाओगे पर एक आह तक कर पाओगे नहीं।। कभी कभार हमे मोह लगता हैं तेरी बदनसीबी देखकर । तरस आता हैं तेरी मशुमियता पर धुंधली लकीरे पढ़कर।। कमर में लिपटी एक लूंगी फटी एड़ियां तलवे इधर उधर रोना आता हैं तेरी तकदीर पर पाता हूं सबको निरूतर।। क्या गरीबों की गरीबी। बेची नहीं जा सकती , क्या अमीरों की अमीरी खरीदी नहीं जा सकती।। क्या दरिद्र होने का बस यहीं मोल हैं। क्या संसार मे गरीब का कुछ नहीं रोल हैं ।। कोई भटके बंजारे बनकर वन वन को शर्म आता है सोचकर आदमी की अदमीयता पर । क्यों कब और कैसे उठते हैं ऊंगली जब किसी की काबिलियता पर अश्लीयता पर ।। प्रशन हैं क्या फलविक्रेता की दुर्दिन व्यथित दशा फलखाने वाले साहब लोगों को समझ नहीं आती।। चखते हैं परखते हैं खट्टे मीठे स्वाद खरीदने से पहले लोग क्या तराज़ू का वजन बराबर नहीं हों पाती।। स्वरचित -, प्रकाश विद्यार्थी ©Prakash Vidyarthi #sad_shayari #पोएट्रीलवर्स #कविताएं
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ये खूबसूरत पल ये खूबसूरत नजारे कभी तुम थे मेरे कभी हम तुम्हारे ©Guddu Muneri sikandrabadi #Sunhera #सुनहरादिन #दिल❤ #दिल_की_कलम_से #लव❤ #पोएट्रीलवर्स
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कुछ मोहब्बत के अफसाने, कुछ भीगी पलकें जो आपको अपने जीवन में ले जाती है और भी बहुत कुछ आज ही खरीदे ©Guddu Muneri sikandrabadi #रीडिंग #रीडर #राइटर #बुक #बुक_lover #लव_फीलिंग #बेवफा #जीवनकाअफ़साना #शायरी❤️से #पोएट्रीलवर्स
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गुड्डू मुनीरी ( सिकंदराबादी) की और विशेष कोट्स एंड पोएट्री , शायरी और कविताओं को पढ़ने के लिए नोजोटो पर फॉलो करे या फिर बुक पढ़े । ©Guddu Muneri sikandrabadi #duniya #सीखना #पढ़ना_भी_जरूरी_है #ज्ञान #इल्म #शिक्षा #शायरी #कोट्स #पोएट्रीलवर्स