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Vivek Kumar Singh
तेरी आँखें यहाँ हों, निगाहें कहीं और हों, धड़कनें यहाँ हों , पर साँसें कहीं और हों। गर तुम आना मेरे पास तो पूरी तरह आना, ऐसा नहीं कि राही यहाँ, राहें कहीं और हों।। आना #vks #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqmuzaffarpur #yqgudiya #yqvks
Vivek Kumar Singh
जो देखना हो हिज्र का फलसफा, मेरा चेहरा देखना। उनके होठों पर खिलती हुई मुस्कुराहट आज भी है। फेंक दिए उसने मेरे सारे पत्र, सारे तोहफ़े सड़क पर, लेकिन, मेरे कानों में उनके शब्दों की आहट आज भी है। वो हैं किसी और को अपनाकर बहुत खुश आजकल, मुझमें उनकी एक झलक पाने की छटपटाहट आज भी है।। छटपटाहट #vks #yqbaba #yqhindi #yqdidi #yqgudiya #yqmuzaffarpur #yqvks
Vivek Kumar Singh
मेरे से अच्छा तेरे शहरवालों का नसीब है, तू मुझसे बहुत दूर है और उनके करीब है। हैं अमीर वो, जो तुझे हर दिन देखते हैं, अब बता, यहाँ मुझ सा कौन गरीब है ? मांगने वालोें को तो यहाँ जहर भी नहीं देते, इस ज़माने का तरीका भी बड़ा अज़ीब है।। नसीब #yqbaba #yqhindi #yqdidi #vks #yqmuzaffarpur #yqvks #yqgudiya
Vivek Kumar Singh
आफ़ताब की महताब पर फ़तह न होने दूंगा, जो तू रात भी बनकर आए, सुबह न होने दूंगा। दिल से चाहा है तुम्हें, दिखावा नहीं किया मैंने, कुछ भी कर, तुझे नफ़रत की वजह न होने दूंगा। मुझे पसंद है सदा से, ऊँची परवाज़ परिंदों की, तुम्हें रोकूंगा नहीं, परस्पर कलह न होने दूंगा।। कुछ बातें #vks #yqbaba #yqhindi #yqdidi #yqmuzaffarpur #yqgudiya #yqvks
Vivek Kumar Singh
तुम्हारे पास शब्द नहीं हैं या नीयत ही खोटी है? संदेश पढ़कर मुस्कराते तो हो पर जवाब नहीं देते। नीयत #yqbaba #yqhindi #yqdidi #yqgudiya #vks #yqmuzaffarpur #yqvks
Vivek Kumar Singh
मेरी नज़र का ठिकाना बनोगी क्या? मेरे प्रेम का नज़राना बनोगी क्या? जिसे मैं गुनगुनाता रहूँ रात-दिन, मेरे होंठों का वो तराना बनोगी क्या? मेरे सौभाग्य का परवाना बनोगी क्या? मेरी सफलता का ताना-बाना बनोगी क्या? मैं भी अपना लूँ ज़िन्दगी को खुशी-खुशी, मेरा और ज़िन्दगी का याराना बनोगी क्या? तुम #vks #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqgudiya #yqmuzaffarpur #yqvks
Vivek Kumar Singh
इश्क में कुछ ऐसा भी व्यवहार हो जाता है, प्रिय का जन्मदिन भी त्योहार हो जाता है। गुब्बारों और झालरों से कमरा सजाया जाता है, कार्ड बनाकर, बाज़ार से केक भी लाया जाता है। बारह बजे तक का लंबा इंतज़ार हो जाता है, प्रिय का जन्मदिन भी त्योहार हो जाता है। बारह बजते ही उनको फोन लगाया जाता है, फिर उनकी तस्वीर को केक खिलाया जाता है। उस रात का हर लम्हा यादगार हो जाता है, प्रिय का जन्मदिन भी त्योहार हो जाता है।। प्रिय का जन्मदिन #vks #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqmuzaffarpur #yqvks
Vivek Kumar Singh
गरीब आशिक बारहा सिफर में रहते हैं। मुर्दे भी कहाँ देर तक घर में रहते हैं। जब कुछ नहीं बचता तो गाँव लौटते हैं, जब तक कमाते हैं, शहर में रहते हैं। होता है ज़िक्र उनका ही, हर महफ़िल में, मैं जहाँ भी रहूँ, वो नज़र में रहते हैं। खुश होते हैं वो कि बहुत दूर हैं मुझसे, पर मेरे सपने उनके सफ़र में रहते हैं। वो कामयाब हुए जो बाहर निकल गए, हम तो आज भी इसी खंडहर में रहते हैं।। गरीब आशिक #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqbhaijan #vks #yqmuzaffarpur #yqgudiya #yqvks
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एक बार मैं रेलगाड़ी से वडोदरा से पटना जा रहा था। जब रेलगाड़ी आगरा पहुँची तो पेठों का एक ठेला दिखा। मैंने सुन रखा था कि आगरे का पेठा मशहूर होता है। इसलिए मैंने स्टेशन पर उतरकर दो पैकेट पेठे ले लिए और वापस आकर अपनी जगह पर बैठ गया। पेठों के बक्से मैंने अपने थैले में रख लिए। उस थैले में पहले से कुछ किताबें रखी हुईं थीं। थोड़ी देर में रेलगाड़ी चलने लगी और मैं खिड़की से बाहर झाँकने लगा। एक घंटा हुआ होगा कि अचानक झोले में सनसनाहट होने लगी और झाग निकलने लगा। सब डरकर खड़े हो गए। उसी समय आर.पी.एफ. का एक गश्ती दल भी वहाँ पहुँचा। उनमें से एक ने मुझसे पूछा कि इसमें क्या है? मैंने बताया कि कुछ किताबें और दो पैकेट पेठे हैं। फिर उनमें से एक सिपाही ने झोले को खोलकर देखा तो किताबें गीली थीं और उनके पन्ने नारंगी रंग के हो गए थे। पेठों के एक पैकेट से रस निकल रहा था। मैं झेंप गया। बहुत शर्म आ रही थी। सब हँस रहे थे। बात यह थी कि किताब वाले झोले में मैंने ऑरेंज फ्लेवर वाले ईनो कि तीन पुड़ियाँ रखी हुईं थीं। उनके खोल कागज़ के बने हुए थे। तो हुआ ये कि पेठे के बक्से से रस निकला और उससे खोल पिघलने लगे। जब खोल पिघल गए तब रस पाउडर में जा मिला और सनसनाहट के साथ झाग बनने लगा। फिर मैं बिना कुछ कहे उठा और झोले को खिड़की के पास सूखने के लिए टांग दिया। पेठों के पैकेट #yqbaba #yqhindi #yqgudiya #yqmuzaffarpur #vks #yqdidi #yqvks
Vivek Kumar Singh
तब 3-4 साल का रहा होउंगा। मेरे क्वार्टर के थोड़ा आगे एक रेलवे लाईन थी और उसके आगे सी.आई.एस.एफ. के क्वार्टर्स। सबसे आगे वाली लाईन में बीच में ही था क्वार्टर नं. 18। उसमें एक अंकल अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहते थे। एक का नाम था चंचल और दूसरी का तोता। दूसरी वाली का नाम कुछ और था पर जन्म के समय उसके होंठ कुछ ज्यादा लाल थे, इसलिए उसका घर का नाम तोता ही पड़ गया था। दोनों की दोनों मुझसे बड़ी थी, पर मेरी पक्की वाली दोस्त थीं। हर शाम वो दोनों मेरे साथ खेलने आतीं थीं। मैं भी उनसे काफ़ी घुल-मिल गया था। जब भी कभी गाँव जाता तो वहाँ से ज़ल्दी वापस लौटने की ज़िद करता रहता। वो दोनों भी चिट्ठियाँ भेजकर बतातीं कि मेरे बिना क्या-क्या खेला और कहाँ-कहाँ घूमे। पर सी.आई.एस.एफ. के जवानों का तबादला जल्दी होता रहता है। एक बार गाँव से आया तो देखा उनके क्वार्टर पर ताला लगा था। पास वाली आंटी ने बताया कि वो लोग तो अब यहाँ से चले गए। लेकिन उनकी बेटियाँ बहुत रो रहीं थीं। यह सुनकर मैं भी रोने लगा। फ़िर दादी मुझे घर लेकर आ गईं और बहुत समझाया। फ़िर भी मैं बहुत दिनों तक उन्हें याद करके रोने लगता था। क्वार्टर वालों का जीवन ही कुछ ऐसा है। न चाहते हुए भी जाना ही पड़ता है। कितने भाग्यशाली होते हैं न वो लोग, जो जहाँ जन्म लेते हैं, वहीं बड़े होते हैं और वहीं मिट्टी में मिल जाते हैं। क्वार्टर का जीवन #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqmuzaffarpur #yqgudiya #yqvks