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भाग्य श्री बैरागी
संदूक में यादों के महकते गुलाब हैं, वहाॅं बचपन की यादें और ढेरों ख़्वाब हैं। मैं माॅंग लूॅं दुआ में बचपन का प्यार, अम्मा का लाड़ पापा का गुस्सा बेहिसाब है। सारे बच्चों में मैं सबसे खुशनसीब थी, दादा की दुध-रोटी में मेरा ही मेरा रुआब है। काजल-टीका मेरी माॅं के हाथ का, बड़ी माॅं की गोद में चंदा और आफताब है। पापा की गोद में बाज़ार की सैर, पापा उस ज़माने से मेरे पक्के अहबाब हैं। 'भाग्य' कोई लुटाता हो बचपन तो ले लूॅं, बचपन गया जिम्मेदारियाॅं अब अज़ाब है। #kkबैरागीश्री #kkकविसम्मेलन3 #kkकविसम्मेलन #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #मेरी_बै_रा_गी_कलम #एक_और_ग़ज़ल
भाग्य श्री बैरागी
इश्क में फना हो, मैं बादल हो जाऊॅं, तू करे जो मेरी आस मैं पागल हो जाऊॅं। तुम मुझपर असर की बात करते हो, मैं ठंडी रातों में लहराता आँचल हो जाऊॅं। एक प्रेमी के ख़्वाबों का घर, प्रेमिका की ऑंखों का काजल हो जाऊॅं। प्रेमाश्रय में बिखरी रोशनी सी, या तितली सी रंगीन और चंचल हो जाऊॅं। तुम इश्क की राहों के मुसाफ़िर, मैं तुम्हारे पीछे चुपके से पैदल हो जाऊॅं। 'भाग्य' नज़्मों की शौकीन अगर, मैं नज़्मों में बेहतर सी ग़ज़ल हो जाऊॅं। ❤️❤️❤️❤️❤️❤️4/5❤️❤️❤️❤️❤️ #kkबैरागीश्री #kkकविसम्मेलन3 #kkकविसम्मेलन #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #मेरी_बै_रा_गी_कलम
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चेहरों पर मुखौटो के सौ ढंग, देख कर हमें जो बदला करते हैं रंग। मन में अदावतों का डेरा, मुख पर मुस्कान की रखते हैं तरंग। पीठ को छलनी करते हैं, अपनी कामयाबी से जिया में भुजंग। बदहाली की कामना कर, कहते हैं हमें तुम रहो सदा खुशरंग। रिश्तों के मायने बदल देते, और नाचते शान में जैसे हो सारंग। झूठों का सहारा लेकर वो, घूमे इस जग में होकर दबंग। हमारी नाकामयाबी का दुःख जता, ले राग हमारा पीटते ढिंढोरा और मृदंग। ☘️☘️☘️☘️☘️3/5☘️☘️☘️☘️ #kkबैरागीश्री #collabwithकोराकाग़ज़ #kkकविसम्मेलन3 #kkकविसम्मेलन #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #मेरी_बै_रा_गी_कलम
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वो आकर बैठे थे पहलू में पर मुझसे तो बात न हुई, मैं एकटक निहारती रही उन्हें पर मुलाकात न हुई। उन्होंने तो लुटाया इश्क ही इश्क शाम-ए-फिज़ा में, सबने लूटा बस मेरे लिए उस शाम की रात न हुई। थी शादियाॅं उस रोज़ उन्होंने भी निकाह कुबूला था, घर सबके दमके थे बस मेरे घर कोई बारात न हुई। इश्क के जनाज़े में शबभर हम फूट-फूट के रोते रहे, इकतरफा इश्क अधर में ही रहा उसकी जात न हुई। मुकम्मल हुई सबकी दुआऍं, मेहबूब सबके साथ थे, हर सफ़र में अकेली रही मेरे हिस्से ये सौगात न हुई। ज़िंदगी तो मैंने उसके सदके में कब की वार दी थी, मुझे गम है कि मौत की मेरे हिस्से तहकीकात न हुई। मुझको गिले-शिकवे तो उसे जताना है बहुत 'भाग्य', पर उससे मिलूॅं दुबारा ऐसी किस्मत की खैरात न हुई। #kkबैरागीश्री ✨✨✨✨✨✨*2*✨✨✨✨✨✨ वो आकर बैठे थे पहलू में पर मुझसे तो बात न हुई, मैं एकटक निहारती रही उन्हें पर मुलाकात न हुई। उन्होंने तो लुटाया इश्क ही इश्क शाम-ए-फिज़ा में,
#kkबैरागीश्री ✨✨✨✨✨✨*2*✨✨✨✨✨✨ वो आकर बैठे थे पहलू में पर मुझसे तो बात न हुई, मैं एकटक निहारती रही उन्हें पर मुलाकात न हुई। उन्होंने तो लुटाया इश्क ही इश्क शाम-ए-फिज़ा में,
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मौसम बदलते जा रहे, ये कैसे कहर हैं, तालाब सिमटे ख़ुद में नदियाॅं जैसे नहर हैं। इंसां का प्रकृति दोहन ही कुछ इस कदर है, तूफ़ान के आगोश में रोते रहें जैसे शजर हैं। भूमि की कोख काट, तत्त्व भी पाना दूभर है, जिसने पाला अमृत उसकी गोद में ज़हर है। पहाड़ों पर जमी बर्फ की, टूटती कमर है, जंगल की आग से जलते हज़ारों जानवर हैं। फसलें गल जाती हैं, बेमौसम बरसे बदर हैं, क्रोध बरपाया माॅं ने क्यों सवाल हर अधर है। ओजोन क्षरण, अम्ल वर्षा में प्रेम किधर है? किया छलनी सीना और पूछे प्रेम किधर है। वक्त और प्रकृति का न्याय एक ही जैसा है, जो बोया वही काटो सिद्धांत सदा अमर है। 'भाग्य' सब भूलते क्यों हैं प्रकृति एक माॅं है, हमने सताया उसे, हम भोगें अपना कहर हैं। #kkबैरागीश्री ☘️☘️☘️🏞️🏞️*1*🏕️🏕️☘️☘️☘️ मौसम बदलते जा रहे, ये कैसे कहर हैं, तालाब सिमटे ख़ुद में नदियाॅं जैसे नहर हैं। इंसां का प्रकृति दोहन ही कुछ इस कदर है,
#kkबैरागीश्री ☘️☘️☘️🏞️🏞️*1*🏕️🏕️☘️☘️☘️ मौसम बदलते जा रहे, ये कैसे कहर हैं, तालाब सिमटे ख़ुद में नदियाॅं जैसे नहर हैं। इंसां का प्रकृति दोहन ही कुछ इस कदर है,
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