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Best KKकविसम्मेलन3 Shayari, Status, Quotes, Stories

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Krish Vj

इश्क़ कैद में है, यह जैल बिखर जाएँ तो अच्छा है 
इश्क़ में सबकी तक़दीर,  सँवर जाएँ तो अच्छा है 

सुकून दिल का है, 'इश्क़' ठहर जाएँ तो अच्छा है 
दर्द ही दर्द है, यूँ  उधर नज़र ना जाएँ तो अच्छा है 

यूँ तो सागर बड़ा गहरा 'प्रेम' का यहाँ 'कृष्णा' है 
कुछ डूब गए है, तो कुछ निखर जाएँ तो अच्छा है 

साथ उसका कमाल का, मगर जाएँ तो अच्छा है 
यादों का क्या करूँ? उम्र गुजर जाएँ तो अच्छा है  कवि सम्मेलन 3 पंचम ग़ज़ल 

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Krish Vj

ग़ज़ल:_ विधवा


आह!आह! करती रही वो 'ज़िन्दगी' ने ना तरस खाया 
चिंतित मन बेचारा उसका, कहा उसने  यूँ सुकून पाया 

छिन गई माथे की बिंदिया,  रंग लाल, सफ़ेद हो आया 
वक़्त का  सितम कहूँ?  इसे मैं या कहूँ कर्मों का साया 

अपशकुनी,डायन और कुल नाशीनी यही नाम है पाया
अश्क मोती बन झलकते रहें, कौन! इन्हें है पोंछ पाया 

आया बसंत बन पतझड़ यूँ,  पिया मुखड़ा देख ना पाया 
बर्बाद हुई, लाचार हुई, सफ़र में ही हमसफ़र खो आया 

विधवा हूँ, कुछ नहीं मैं कर सकती,'ज्ञान' सबने सुनाया 
सिमट गई 'ज़िंदगी' अँधेरों संग, उजाला भी दूर लौटाया  कवि सम्मेलन 3 चतुर्थ ग़ज़ल:_ विधवा 

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Krish Vj

ग़ज़ल:_ दास्तान-ए-ग़म 

ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी है, कुछ नहीं है सोचने के लिए 
यूँही बहता लहू 'अश्क' बन, कोई नहीं पोछने के लिए 

हर हाथ की उंगलियां उठती है, जिस्म नोचने के लिए 
हर ये आँखे उठती है, इज्ज़त तार-तार करने के लिए 

बेटी,बहन, कोई भी रिश्ता नहीं, हवस मिटाने के लिए 
मानसिकता का दोष या बहाना है बस सताने के लिए 

हमबिस्तर करना चाहत सभी की सिर्फ़ वस्तु सी हूँ मैं 
इज्ज़त लेना, देना नहीं, सिर्फ़ हूँ मैं आज़माने के लिए 

किस से रूठे हम यूँ, कोई तो हो ? हमें मनाने के लिए 
पल भर साथ है, कोई नहीं है उम्र भर निभाने के लिए 
 कवि सम्मलेन 3 तृतीय ग़ज़ल 
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Krish Vj

तू कहे या ना कहें...

तू कहे  या ना कहे हमने कर दिया इश्क़ का इज़हार है
दिल मेरा  यह तेरी 'प्रेम' की इन बातों से ही गुलज़ार है 

ना था कोई और  ना होगा कोई, 'प्रेम' की यह दीवार है
निगाहे बंद करूँ  या  खोलू मैं, होता बस तेरा दीदार है 

जहाँ तक जाती यह नज़र वहाँ तक इश्क़ की मीनार है
रहनुमा है  इस दिल का तू, बिन तेरे यह दिल बीमार है 

मानता हूँ मैं,जानता हूँ कि इश्क़ की हर राहे पुरख़ार है
मोहब्बत समंदर है 'दर्द' का मुझे इस से कहाँ इन्कार है 

इश्क़ में नटखटपन, होती रहती छोटी-छोटी तकरार है
तू कहे या ना कहे पर, बिन तेरे यह जीना मेरा बेकार है कवि सम्मेलन-3 प्रथम ग़ज़ल 

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भाग्य श्री बैरागी

संदूक में यादों के महकते गुलाब हैं,
वहाॅं बचपन की यादें और ढेरों  ख़्वाब हैं।

मैं माॅंग लूॅं दुआ में बचपन  का प्यार,
अम्मा का लाड़ पापा का गुस्सा बेहिसाब है।

सारे बच्चों में मैं सबसे खुशनसीब थी,
दादा की दुध-रोटी में मेरा ही मेरा रुआब है।

काजल-टीका मेरी माॅं के हाथ का,
बड़ी माॅं की गोद में चंदा और आफताब है।

पापा की गोद में बाज़ार  की सैर,
पापा उस ज़माने से मेरे पक्के  अहबाब हैं।

'भाग्य' कोई लुटाता हो बचपन तो ले लूॅं,
बचपन गया जिम्मेदारियाॅं अब अज़ाब है। #kkबैरागीश्री 
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भाग्य श्री बैरागी

इश्क में फना हो, मैं बादल हो जाऊॅं,
तू करे जो मेरी आस मैं पागल हो जाऊॅं।

तुम मुझपर असर की बात करते हो,
मैं ठंडी रातों में लहराता आँचल हो जाऊॅं।

 एक  प्रेमी  के  ख़्वाबों  का  घर,
प्रेमिका की ऑंखों का काजल हो जाऊॅं।

प्रेमाश्रय  में  बिखरी  रोशनी  सी,
या तितली सी रंगीन और चंचल हो जाऊॅं।

तुम इश्क की राहों के मुसाफ़िर,
मैं तुम्हारे पीछे  चुपके से पैदल हो जाऊॅं।

'भाग्य' नज़्मों  की  शौकीन अगर,
मैं नज़्मों में बेहतर सी ग़ज़ल हो जाऊॅं। ❤️❤️❤️❤️❤️❤️4/5❤️❤️❤️❤️❤️
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भाग्य श्री बैरागी

चेहरों पर मुखौटो के सौ ढंग,
देख कर हमें जो बदला करते हैं रंग।

मन में अदावतों का डेरा,
मुख पर मुस्कान की रखते हैं तरंग।

पीठ को छलनी करते हैं,
अपनी कामयाबी से जिया में भुजंग।

बदहाली की कामना कर,
कहते हैं हमें तुम रहो सदा खुशरंग।

रिश्तों के मायने बदल देते,
और नाचते शान में जैसे हो सारंग।

झूठों का सहारा लेकर वो,
घूमे  इस  जग  में  होकर  दबंग।

हमारी नाकामयाबी का दुःख जता,
ले राग हमारा पीटते ढिंढोरा और मृदंग। ☘️☘️☘️☘️☘️3/5☘️☘️☘️☘️
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भाग्य श्री बैरागी

#kkबैरागीश्री ✨✨✨✨✨✨*2*✨✨✨✨✨✨ वो आकर बैठे थे पहलू में पर मुझसे तो बात न हुई, मैं एकटक निहारती रही उन्हें पर मुलाकात न हुई। उन्होंने तो लुटाया इश्क ही इश्क शाम-ए-फिज़ा में,

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वो आकर बैठे थे पहलू में पर मुझसे तो बात न हुई,
मैं एकटक निहारती रही उन्हें  पर  मुलाकात न हुई।

उन्होंने तो लुटाया इश्क ही इश्क  शाम-ए-फिज़ा में,
सबने लूटा बस मेरे लिए उस शाम  की  रात न हुई।

थी शादियाॅं उस रोज़ उन्होंने भी निकाह  कुबूला था,
घर सबके दमके थे बस मेरे घर  कोई  बारात न हुई।

इश्क के जनाज़े में शबभर हम फूट-फूट के  रोते रहे,
इकतरफा इश्क अधर में ही रहा उसकी  जात न हुई।

मुकम्मल हुई सबकी दुआऍं, मेहबूब सबके  साथ थे,
हर सफ़र में अकेली रही मेरे हिस्से ये  सौगात न हुई।

ज़िंदगी तो मैंने उसके सदके में कब  की  वार  दी थी,
मुझे गम है कि मौत की मेरे हिस्से  तहकीकात न हुई।

मुझको गिले-शिकवे तो उसे जताना  है  बहुत 'भाग्य',
पर उससे मिलूॅं दुबारा ऐसी किस्मत की खैरात न हुई। #kkबैरागीश्री 

✨✨✨✨✨✨*2*✨✨✨✨✨✨

वो आकर बैठे थे पहलू में पर मुझसे तो बात न हुई,
मैं एकटक निहारती रही उन्हें  पर  मुलाकात न हुई।

उन्होंने तो लुटाया इश्क ही इश्क  शाम-ए-फिज़ा में,

भाग्य श्री बैरागी

#kkबैरागीश्री ☘️☘️☘️🏞️🏞️*1*🏕️🏕️☘️☘️☘️ मौसम बदलते जा रहे, ये कैसे कहर हैं, तालाब सिमटे ख़ुद में नदियाॅं जैसे नहर हैं। इंसां का प्रकृति दोहन ही कुछ इस कदर है,

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 मौसम  बदलते जा रहे,  ये  कैसे  कहर हैं,
तालाब सिमटे ख़ुद में नदियाॅं जैसे नहर हैं।

इंसां का प्रकृति दोहन ही कुछ इस कदर है,
तूफ़ान के आगोश में रोते रहें जैसे शजर हैं।

भूमि की कोख काट, तत्त्व भी पाना दूभर है,
जिसने पाला अमृत उसकी गोद में  ज़हर है।

पहाड़ों पर जमी  बर्फ की,  टूटती  कमर  है,
जंगल की आग से जलते हज़ारों जानवर हैं।

फसलें गल जाती हैं, बेमौसम  बरसे बदर हैं,
क्रोध बरपाया माॅं ने क्यों सवाल हर अधर है।

ओजोन क्षरण, अम्ल वर्षा में  प्रेम किधर है?
किया छलनी सीना और पूछे  प्रेम किधर है।

वक्त और प्रकृति का न्याय एक ही जैसा है,
जो बोया वही काटो सिद्धांत सदा अमर है।

'भाग्य' सब भूलते क्यों हैं प्रकृति एक माॅं है,
हमने सताया उसे, हम भोगें अपना कहर हैं। #kkबैरागीश्री

☘️☘️☘️🏞️🏞️*1*🏕️🏕️☘️☘️☘️

मौसम  बदलते जा रहे,  ये  कैसे  कहर हैं,
तालाब सिमटे ख़ुद में नदियाॅं जैसे नहर हैं।

इंसां का प्रकृति दोहन ही कुछ इस कदर है,

Dr Upama Singh

                  “इश्क़ का खुदा”
                   ग़ज़ल –5

पहली बार देखा तो दिल तेरी ओर झुकने लगा।
दिल मेरा आपसे जुड़ने के लिए बेकरार रहने लगा।

धीरे धीरे आपको अपना ज़िन्दगी बनाने लगा।
दिल मेरा आपको ही सब कुछ मानने लगा।

बस इक तेरे में खोकर ज़माने को भूलने लगा।
दिल मेरा थोड़ा ख़ुदगर्ज होकर बस तेरे खयालों में खोने लगा।

मैंने तुझे अपना सनम दिलबर और जानम नाम देने लगा।
मैंने तो आपको ही अपना इश्क़ का खुदा मानने लगा। #कोराकाग़ज़ 
#kkdrpanchhisingh 
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