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Mayaank Modi
ये जो पत्ते के सिरे पर टिकी है । ओस की आखिरी बूँद । मैं सोचता हूँ की इसे, कब तक सम्भाल पाएगा पत्ता । इनदोनों के बीच तो कोई, करार भी नहीं हुआ होगा । कि उम्र भर साथ निभाना है ।। पर कितना खुबसूरत है न, कुछ पलों का साथ इनका ।। कभी - कभी सूरज की रौशनी पड़ने से, बुँद चमक उठती है ।। बस इतनी सी, इतनी - सी ही बात है । पर सोचना तो पड़ता है, कि कब तक सम्भाल पाएगा पत्ता ।। कब तक ?? #ओस #पत्ता #सिरे #yqbaba #yqhindi #yqshayari #yqkavita
Bambhu Kumar (बम्भू)
रोज़ अखबारों में पढ़कर यह ख़्याल आया हमें इस तरफ़ आती तो हम भी देखते फ़स्ले-बहार मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार -दुष्यंत कुमार मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार #Jindgi #DushyantKumar #HindiKavita
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार #jindgi #dushyantkumar #hindikavita
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हाँ हाँ सब सब उलझा ही हुआ है मुझ मैं तू,तुझ में मैं, ख़ुशियों में ग़म ग़मों में खुशियां दिल में तू ,लकीरों में नहीं पास है पर पास नहीं आस है साँस नहीं इश्क़ है पर इज़हार नहीं मंजिल है हमसफ़र नहीं जो ख़ास है वो पास नहीं जो पास है वो ख़ास नहीं दिल बैचैन है,मन व्याकुल सब है पास पर फिर भी अधूरापन कैसी है ये उलझन समझे न मन ।। #नोजोटोहिंदी#व्याकुल#मन#अधूरापन#साँस#आस#इश्क़#गीत #मनमीत#उलझन #कभी लाइफ में सब उलझा हुआ और अधूरा सा लगता है,किस सिरे से समेटों इन बिख़र गये क़िस्सों को ये अक़्सर दिमाग समझ नहीं पाता और बस उधेड़बुन में कई ताने बाने बुनता रहता है बस इक छोटे से सिरे की तलाश में ।।
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 12 - अर्थार्थी 'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से उन्होंने डांटा। 'पासमें तो महज एक बूढा ऊँट है ओर हिम्मत इतनी।' 'कसूर माफ हो।' अरब अपमान सह नहीं सकता। अगर उसे रोशन का खयाल न होता तो तेग बाहर चमकती होती। लेकिन वह समझ नहीं सका था कि उसने गलती क्या की है। आखीर वह काना-कुबड़ा नही है। बदशकल भी नहीं है ओर कमजोर भी नही है। अरब न तो रोजगार करता और न खेती। किसी नखलिस्तान की चढ़ाई में वह भी दुशमन से आधे दर्जन ऊँट
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मन का एक कोना.... मन के भीतर एक कोना है.... मैं जाती हूँ, जब रोना है। एक सिरे पर रखी है मैंने, मेरे बचपन की यादें उजली, कुछ सीपे, कुछ टूटे खिलौने, इक गुड़िया है और एक तितली, कुछ बीज भी रखें हैं ऐसे,
मन का एक कोना.... मन के भीतर एक कोना है.... मैं जाती हूँ, जब रोना है। एक सिरे पर रखी है मैंने, मेरे बचपन की यादें उजली, कुछ सीपे, कुछ टूटे खिलौने, इक गुड़िया है और एक तितली, कुछ बीज भी रखें हैं ऐसे,
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|| श्री हरि: || 28 - स्पर्धा कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो। अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी। 'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी
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|| श्री हरि: || 12 - अर्थार्थी 'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से उन्होंने डांटा। 'पासमें तो महज एक बूढा ऊँट है ओर हिम्मत इतनी।' 'कसूर माफ हो।' अरब अपमान सह नहीं सकता। अगर उसे रोशन का खयाल न होता तो तेग बाहर चमकती होती। लेकिन वह समझ नहीं सका था कि उसने गलती क्या की है। आखीर वह काना-कुबड़ा नही है। बदशकल भी नहीं है ओर कमजोर भी नही है। अरब न तो रोजगार करता और न खेती। किसी नखलिस्तान की चढ़ाई में वह भी दुशमन से आधे दर्जन ऊँट और बडा-सा तम्बू छीन सकता है। सरदार के ऊँट
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