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Best धारी Shayari, Status, Quotes, Stories

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Anuradha Narendra Chauhan

जनम लियो नंदलाला
गोकुल में धूम मची
सांवला सलोना गोपाला
यशोमती मैया मुख चूम रही
नन्हे हाथों में पहन कंगना
घनश्याम खेलें नंद के अंगना
ढुमक-ढुमक चले पहन पैंजनी
रत्न जड़ित बंधी कमर करधनी
सांवला सलोना गोपाला
यशोमती मैया मुख चूम रही
गले पहन माल बैजयंती
तोड़न लागे माखन मटकी
भोली सूरत कर माखन चोरी
कहें मैया से नहीं मटकी फोड़ी
सांवला सलोना गोपाला
यशोमती मैया मुख चूम रही
नटवर नागर कृष्ण कन्हैया
नाच नचाएं बंशी बजैया
बंशी की धुन पर झूमते-गाते
सबके मन को कृष्ण रिझाए
सांवला सलोना गोपाला
यशोमती मैया मुख चूम रही
नीलवर्ण पीताम्बर धारी
 रास रचाए गोवर्धन धारी
झूमे ब्रज झूमे बरसाना
बड़ा नटखट नंद का लाला
सांवला सलोना गोपाला
यशोमती मैया मुख चूम रही

***अनुराधा चौहान***स्वरचित ✍️ #कृष्ण #कन्हैया

Pranav Parashar

देह के शिकारी...

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देह के शिकारी हम है दैत्य देह धारी हम है
देह के शिकारी, देह के शिकारी....

जिस माँ ने देके अपना दूध हमको सींचा
उसी माँ का आज हमने आँचल है खींचा

क्रूरता लज्जित है देख वासना हमारी 
देह के शिकारी हम है दैत्य देह धारी 
हम है देह के शिकारी, देह के शिकारी.... 


रक्षा का वचन लिया था बांध करके धागा
उस बहन को कर दिया है हमने ही अभागा

काम मे अंधे हुए, गई ज्योति हमारी 
देह के शिकारी हम है दैत्य देह धारी 
हम है देह के शिकारी देह के शिकारी.... 

जो बेटियाँ कहती थी दुनिया पिता है हमारी 
उस पिता ने आज उनकी दुनिया उजाड़ी

पार कर दी आज हमने सीमाएं सारी 
देह के शिकारी हम है दैत्य देह धारी 
हम है देह के शिकारी देह के शिकारी.... 

                                   ~  प्रणव पाराशर देह के शिकारी...

Vaibhav patel

#शिववर्णन ❤🔱 सर पर है गंगा न्यारी , रखे ललाट पे,वो ऊर्जा सारी हाथो में डमरू,त्रिशूल धारी, माथे पे चंद्रमा गले में सर्प धारी

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#OpenPoetry सर पर है गंगा न्यारी ,
रखे ललाट पे,वो ऊर्जा सारी  

हाथो में डमरू,त्रिशूल धारी,
माथे पे चंद्रमा गले में सर्प धारी 

टोली है उसकी भूतो की,
लगाते है भभूत वो लोगो की 

रंग से नीले स्वभाव से भोले ,
करे तांडव तब सारी दुनिया डोले

खुद उठाते है भक्तो का भार,
किया है जिस ने सृष्टि का सर्जनहार

खुद पिया विष का प्याला,दिया सबको अमृत पानी ,
तब जाके दुनिया उसको देवो के देव 'महादेव' से जानी

~ वैभव #शिववर्णन ❤🔱

सर पर है गंगा न्यारी ,
रखे ललाट पे,वो ऊर्जा सारी  

हाथो में डमरू,त्रिशूल धारी,
माथे पे चंद्रमा गले में सर्प धारी

Anirudh Sinwal

#धारी देवी मंदिर।nojoto

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 #धारी देवी मंदिर।#nojoto

NG India

ज़िंदा हूँ बस एक तेरे आधारी ।

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ओ मेरे स्वामी क्यों दूरी धारी, जल्दी करो मेरी सुधि लो सम्हारी ।
जिन्दा  हूँ  बस  तेरे  आधारी, बही जात नैया  लगालो पारी ।।टेर।।

हिरदे के अन्दर लगी है पुकारी,तेरे सिवा अब कोई न सहारी ।
जल्दी सम्भालो गहो हाथ आरी ,डूब  रहा  है  बेड़ा  मंझधारी (1)

शब्दों के तुम हो भण्डार भारी,भेजो  दया  कर  उद्धार धारी ।
लगूँगी उनके संग में मैं जारी ,आके पडूँ  मैं  तेरे  ही द्वारी (2)

नहीं झाकूँगी मैं किसी को निहारी ,तेरे  ही  संग  में  लगी  मेरी यारी ।
याते  रही  मैं  पुकार  पुकारी ,सुनो मेरी अब तुम ही गुहारी (3)

राधास्वामी  मेरे सच्चे करतारी ,शब्दों का देना मुझको आहारी ।
लगी है  बाजी  प्राणों की भारी ,चाहो जितावो नहीं जाऊँ हारी (4)

                   *राधास्वामी* ज़िंदा हूँ बस एक तेरे आधारी ।

Shubhanjali

#नारी,,,,

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फूल समझ के तोड़ ना देना ,
मै दृ़संकल्प की धारी हूं ।
मै ही दुर्गा मै ही काली ,
समझ ना मै सिर्फ नारी हूं।
मै धरती की सुंदर काया, 
मै ही दुष्ट संघारी हूं।
चंचल नयनों में नीर लिए ,
मै सबला व्रत धारी हूं ।
कंठ सजल संगीत लिए ,
मै ही रण में हुंकारी हूं ।
मेरे पद जो पड़े , वहां फूल खिले ,
मै बसंत ऋतु की अवतारी हूं।
फूल समझ के तोड़ ना देना,
मै दृ़संकल्प की धारी हूं। #नारी,,,,

NG India

चेत कर नर चेत कर ।

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मेरे प्यारे कर ले चेता, तेरे बात भले की कहता (1)
                        सतगुरू का करले खोजा, जो करते शब्द संग मौजा (2)
उन सेवा में लग जाना, ले मालिक उनको जाना (3)
                         साकार रूप स्वामी आये, वे शब्द की न्यामत लाये (4)
सेवा से खुश कर लेना, तन मन धन चरनन देना (5)
                         कर चरनामृत का पाना, तेरे पाप सभी नश जाना (6)
उन परशादी नित खाना, तेरे भर्म सभी हट जाना (7)
                        तूँ आरत उनकी करना, उन रूप हिये में धरना (8)
वे कहें सोई तुम करना, हो जाओ उनकी शरणा (9)
                        खुश होके देंगे नामा, तुम घट में नित्त कमाना (10)
नित भजन ध्यान तू करना, सुमिरन में मन को ज़रना (11)
                       उन बिन दीखे ना कोई, दिन रात रहो उन जोई (12)
सब जीवन को सुख देना, मन वचन शुद्ध कर लेना (13)
                       सब में है स्वामी अंशा, तूँ गहले हँसा भेषा (14)
मन के विकार तज देना, तब नाम अमी रस लेना (15)
                        मद्य माँस त्याग तुम देना, खाना निज हक़ का लेना (16)
पर हक़ को नाहीं खाना, नहीं चौरासी भरमाना (17)
                        सतसंग में करले चेता, कर दर्शन गुरू का हेता (18)
त्राटक कर निरखो नैना, फिर प्रेम सहित सुनो बैना (19)
                        फिर बैठो नित उन ध्याना, तब अन्तर छबि को पाना (20) 
राधास्वामी नाम करो जापा, त्यागो तुम मन का आपा (21)
                        जब चित्त शुद्ध होय तेरा, सतगुरू कर लेंगे डेरा (22)
देंगे तुझे अन्तर झांकी, खोलेंगे तीसर आँखी (23)
                        छुट जावे जग की भटकन, पत्थर और पानी अटकन (24)
गुरू भक्ति गहलो धारी, तब पावो अन्तर धारी (25)
                        घट शब्द की आती धारा, नभ उलट चढ़ो भव पारा (26)
दल सहँस कँवल लख लेना, फिर त्रिकुटी शब्द सुन लेना (27)
                         कर लेना सुन्न को पारी, ऊपर आती सत धारी (28)
फिर ऊपर को चढ़ धाना, गढ़ अलख अगम को पाना (29)
                         राधास्वामी नाम धियाना, वह सच्चा तेरा ठिकाना (30)
तज देना पिछली टेका, राधास्वामी धाम लो देखा (31)
                        राधास्वामी पुरुष पुराना, तुम उसमें जाय समाना (32)
राधास्वामी जी
प्रीति बानी 1-197 चेत कर नर चेत कर ।

Nishi Sharma

maan udas hai

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सीखा तो हर इंसान को वक़्त ही देता है क्योंकि हमारी सिख दुनिया के तानो बानो से धारी की धारी रह जाती है maan udas hai

NG India

निज्ज घर अपने चालिए ।

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सूरत पाया घर बार । शब्द भरतार, राधास्वामी भारी ।
             बच गई अब उसकी ख्वारी ।।टेर।।

बहु भटकी सूरत घर घर । चौरासी चोले धर धर ।।
अज्ञान अवस्था बहकर । लुट  गई  भारी (1)

अब धुर का जागा भागा । सतगुरू से नाता लागा ।
कर दया उन दिया सुहाग । स्वामी      पाया री (2)

सतगुरू ने किरपा धारी । मोहिं अन्तर दीन्ह सहारी ।।
कर्मों का छुट गया भारी । सत्तदेश पाया  री (3)

सत्तपुरुष का पाया दरशा । चेतन्य अंग से परसा ।।
सत्त शब्द की होती बरषा । अमृत   धारी (4)

राधास्वामी धाम समाई । राधास्वामी द्याल को पाई ।।
हरदम उनके गुण गाई । पिव  पाया री (5)
                   "राधास्वामी"               
राधास्वामी प्रीति बानी 3-53 निज्ज घर अपने चालिए ।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 13 - आशा - उचित-अनुचित 'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा पीले कपड़े वाले नम्बरदार ने। दूसरे बैरेकों से भी इसी प्रकार की पुकारें लगभग उसी समय उठी। यह कारागार का तृतीय श्रेणी का बैरेक नम्बर सात है। संध्याकालीन भोजन हो चुकने पर बंदी अपने फट्टे(मुँज की रस्सी से बनी चटाइयाँ), कम्बल, कपड़े लपेटे, तसला-कटोरी लिये दो पंक्तियों में बैठ गये थे। उनकी गिनती की गयी और फिर भरभराकर वे बैरेक में घुस गये।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
13 - आशा - उचित-अनुचित

'नम्बर सात ताला-जंगला सब ठीक है।' बड़े ऊंचे स्वर में पुकारा पीले कपड़े वाले नम्बरदार ने। दूसरे बैरेकों से भी इसी प्रकार की पुकारें लगभग उसी समय उठी।

यह कारागार का तृतीय श्रेणी का बैरेक नम्बर सात है। संध्याकालीन भोजन हो चुकने पर बंदी अपने फट्टे(मुँज की रस्सी से बनी चटाइयाँ), कम्बल, कपड़े लपेटे, तसला-कटोरी लिये दो पंक्तियों में बैठ गये थे। उनकी गिनती की गयी और फिर भरभराकर वे बैरेक में घुस गये।
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